PMLA Act: 2005 में लागू होने के बाद कड़ा होता गया पीएमएलए कानून, जानें नेताओं पर कैसे कसा गया शिकंजा

नई दिल्ली, BNM News: PMLA Act: हेमंत सोरेन के बाद अब अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी से ED और CBI के दुरुपयोग के आरोप को लेकर विपक्षी स्वर और तेज हो गए हैं। विपक्ष के सबसे अधिक निशाने पर ईडी और उसका पीएमएलए कानून है। विपक्ष का आरोप है कि मोदी सरकार ने पीएमएलए कानून को इतना कड़ा सिर्फ विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने के लिए किया है। हालांकि सच्चाई यह है कि अटल विहारी वाजपेयी सरकार के दौरान 2002 में बनाया गया पीएमएलए कानून मनमोहन सिंह की संप्रग सरकार के दौरान जुलाई 2005 में लागू हुआ था। इसे धारदार बनाने का काम भी 2009 और 2012 में संप्रग सरकार के दौरान किया गया।
मधु कोड़ा बने पहला शिकार
पीएमएलए के कठोर कानून के पहले शिकार अक्टूबर 2009 में झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा बने और उनके साथ कई मंत्रियों पर शिकंजा कसा। 2010 के बाद 2जी घोटाले और कोयला खनन घोटाले समेत तमाम घोटालों में आरोपितों के खिलाफ मनी लांड्रिंग का शिकंजा कसा। पीएमएलए कानून के तहत ए राजा समेत तमाम बड़े नेताओं की गिरफ्तारी के बावजूद तत्कालीन वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने 2012 में संशोधन कर इसे और भी कड़ा बना दिया। 2022 में पीएमएलए के खिलाफ दाखिल याचिकाओं को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में पी चिदंबरम के 2012 में संसद में दिए बयान का भी हवाला दिया था। मजेदार बात यह है कि इन याचिकाकर्ताओं में पी चिदंबरम के बेटे और कांग्रेस के सांसद कार्ति चिदंबरम भी शामिल थे। यही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में 1999 में वाजपेयी सरकार में तत्कालीन वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा के संसद में दिए बयान का भी हवाला दिया, जिसमें पहली बार उन्होंने कालेधन पर लगाम लगाने के लिए पीएमएलए कानून की जरूरत बताई थी।
शुरुआत में इस कानून में आतंकी फंडिंग, तस्करी और वाइल्ड लाइफ से जुड़े मामले शामिल थे। 2005 में इसे लागू करने के बाद सभी बैंकिंग व वित्तीय संस्थाओं के लिए संदिग्ध लेनदेन की रिपोर्ट फाइनेंशियल इंटेलीजेंस यूनिट (एफआइयू) को भेजना अनिवार्य कर दिया गया ताकि बैंकिंग चैनल पर नजर रखी जा सके। 2009 में किए गए संशोधनों में भ्रष्टाचार निरोधक कानून जैसे कई कानूनों को पीएमएलए के दायरे में लाया गया और ईडी को आरोपितों की संपत्ति को जब्त करने और उन्हें गिरफ्तार करने के अधिकार दिए गए। 2012 में 28 कानूनों के तहत दर्ज केस में ईडी को पीएमएलए के तहत जांच करने का अधिकार दे दिया गया, जबकि पहले सिर्फ छह कानूनों में ईडी को यह अधिकार था।
जमानत मिलना होता है मुश्किल
PMLA में जमानत मिलना मुश्किल होता है। इस कानून का मुख्य उद्देश्य मनी लॉन्ड्रिंग को रोकना है। इसके दायरे में बैंक, म्यूचुअल फंड और बीमा कंपनियां को भी 2012 में शामिल किया गया। इस एक्ट के अंतर्गत अपराधों की जांच की जिम्मेदारी प्रवर्तन निदेशालय के पास होती है।
AAP के तीन नेता पहले ही इस कानून के तहत काट रहे सजा
आप सरकार के 2 मंत्री पहले ही इस कानून के तहत सजा काट रहे है। इसमें पूर्व मंत्री मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन का नाम शामिल है। यह दोनों पीएमएलए के तहत जेल में हैं। वहीं, आप नेता संजय सिंह भी पीएमएलए में गिरफ्तार हुआ और जेल में बंद हैं।
चिदंबरम ने ईडी को मजबूत बनाने की नींव रखी
चिदंबरम ने ईडी को मजबूत बनाने की भी नींव रखी। 2010 तक पूरे देश में ईडी में कर्मचारियों और अधिकारियों के लगभग 600 पद थे और उनमें भी आधे खाली रहते थे। उन्होंने वित्त मंत्री रहते हुए ईडी में स्वीकृत पदों की संख्या 2,200 से अधिक कर दी। अधिकारियों व कर्मचारियों की इतनी बड़ी फौज के बलबूते ही ईडी देशभर में एक साथ कई मामलों की जांच करने में सक्षम बन सकी।
एफएटीएफ के सुझावों पर किया अमल
अर्थव्यवस्था में कालेधन का इस्तेमाल रोकने के लिए बनाए गए कई देशों के संगठन फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) में भागीदारी और उसके सुझावों के अनुरूप पीएमएलए कानून को संप्रग और राजग सभी सरकारों ने कठोर बनाने का काम किया है। 1998 में भारत पहली बार एफएटीएफ के एशिया सब रीजनल ग्रुप का सदस्य बना और इसी कारण तत्कालीन वाजपेयी सरकार को पीएमएलए कानून लाना पड़ा। 2010 में भारत एफएटीएफ का 34वां सदस्य बना था और एफएटीएफ की टीम भारत में मनी लांड्रिंग रोकने के कानून और प्रणाली की समीक्षा के लिए यहां आई। समीक्षा के बाद उस टीम की ओर से दिए सुझावों के आधार पर ही 2012 में पी चिदंबरम ने इस कानून में संशोधन कर इसे और कठोर बनाते हुए इसका दायरा भी बढ़ा दिया। अक्टूबर और फरवरी में साल में दो बार एफएटीएफ के सदस्यों की बैठक होती है, जिनमें कालाधन रोकने के लिए किए गए उपायों की समीक्षा और नए उपायों की जरूरत पर चर्चा होती है और उसमें लिए गए फैसलों के अनुरूप सदस्य देशों को अपने कानून में संशोधन करना पड़ता है। 2023 में एफएटीएफ की टीम भारत की समीक्षा करने आई थी और उसके पहले भी इस कानून में कुछ संशोधन भी किए गए थे।
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