पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का फैसला, इस स्‍थिति में अर्धसैनिक बल के जवान की मौत पर नहीं मिलेगी अनुग्रह राशि

नरेन्‍द्र सहारण, चंडीगढ़: Haryana News: भारतीय अर्धसैनिक बलों के जवानों की बहादुरी और बलिदान को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता। देश की सुरक्षा में उनकी भूमिका अनमोल है। लेकिन जब बात आती है उनके परिवारों की, तो अक्सर कानून और नीतियों में कई खामियाँ होती हैं। हाल ही में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जिसने इस मुद्दे को फिर से चर्चा में ला दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि किसी अर्धसैनिक बल के जवान की मृत्यु गंभीर बीमारियों, जैसे सेरेब्रल मलेरिया के कारण उसके घर पर होती है, तो उसके परिवार को एक्स-ग्रेशिया (अनुग्रह राशि) मुआवजे का कोई प्रविधान नहीं है।

केस का विवरण

इस मामले में गुरुग्राम निवासी शारदा देवी ने अदालत में याचिका दाखिल की थी। उनके पति ने 30 अगस्त 1990 को केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) में अपनी सेवा प्रारम्भ की थी। बाद में उन्हें हेड कांस्टेबल के पद पर पदोन्नति मिली। उनकी पोस्टिंग त्रिपुरा की 55वीं बटालियन में थी। 17 अगस्त 2011 को उनका तबादला त्रिपुरा से नांदेड़ (महाराष्ट्र) कर दिया गया। नांदेड़ में पोस्टिंग के दौरान, वे अपने घर गुरुग्राम आए थे। इसी दौरान उन्होंने सेरेब्रल मलेरिया की चपेट में आकर 27 अगस्त 2011 को निधन हो गया।

पति की मृत्यु के बाद शारदा देवी ने सरकार से अनुग्रह राशि की मांग की। उन्होंने दावा किया कि उनके पति की मृत्यु ड्यूटी के दौरान हुई है, इसलिए उन्हें मुआवजा मिलना चाहिए। हालांकि, सीआरपीएफ ने उनकी मांग को खारिज किया। इसके खिलाफ उन्होंने हाई कोर्ट में याचिका दायर की, जिसे 19 सितंबर 2024 को सिंगल बेंच ने भी खारिज कर दिया। इसके बाद, शारदा देवी ने दूसरी बार अपील दायर की।

कोर्ट का फैसला

हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच में जस्टिस संजीव प्रकाश शर्मा और जस्टिस मीनाक्षी आई मेहता शामिल थे। उन्होंने शारदा देवी के वकील द्वारा प्रस्तुत तर्कों को सुनने के बाद मामले की गहराई से जांच की। वकील ने यह तर्क दिया कि सरकार के 11 सितंबर 1998 के आदेशों के अनुसार, ड्यूटी के दौरान दुर्घटना में मौत होने पर पांच लाख रुपये की अनुग्रह राशि का प्रविधान है। शारदा देवी का कहना था कि उनके पति की मृत्यु भी इसी श्रेणी में आती है।

परन्तु हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने इस तर्क को ठुकरा दिया। कोर्ट ने कहा कि सरकार द्वारा निर्धारित तीन विशेष परिस्थितियों में यह मामला नहीं आता। न्यायाधीशों ने यह स्पष्ट किया कि जवान की मृत्यु न तो किसी दुर्घटना के कारण हुई, न आतंकवादियों या असामाजिक तत्वों के हमले के कारण, न ही किसी युद्ध या सीमा पर सैन्य कार्रवाई के चलते।

कोर्ट ने यह भी बताया कि जवान की मृत्यु गंभीर बीमारी, यानी सेरेब्रल मलेरिया के कारण हुई, जो कि सरकार द्वारा जारी दिशा निर्देशों में मुआवज़े की परिभाषित श्रेणियों में नहीं आता। कोर्ट ने इस दिशा में स्पष्टीकरण दिया कि केवल ड्यूटी पर रहते हुए मृत्यु होना पर्याप्त नहीं है। यह जानना भी जरूरी है कि मृत्यु किन परिस्थितियों में हुई है और क्या वह सरकार की निर्धारित विशेष श्रेणियों में आती है या नहीं।

कानून और नीतियों की समीक्षा

 

इस निर्णय ने कई सवाल खड़े किए हैं, जिनमें कुलीन बलों और अर्धसैनिक बलों के जवानों और उनके परिवारों के अधिकारों और सुरक्षा की गारंटी के संबंध में कानून और नीतियों का पुनरावलोकन शामिल है। संवैधानिक और कानूनी दृष्टिकोण से देखने पर, यह ज्ञात होता है कि जवानों की मृत्यु के मामलों में उनके परिवारों को उचित मुआवजे का अधिकार होना चाहिए, खासकर जब वे ड्यूटी पर ही मृत्यु को प्राप्त करते हैं।

हालांकि, वास्तविकता ये है कि कई मामलों में बुनियादी नियमों और दिशानिर्देशों की व्यापकता के कारण परिवारों को न्याय नहीं मिल पाता। इस मामले में, शारदा देवी को न्याय मिलने में हुई असफलता केवल व्यक्तिगत स्तर पर नहीं बल्कि व्यापक रूप से उन सभी परिवारों का प्रतिनिधित्व करती है, जिन्होंने अपने प्रियजनों को देश की रक्षा में खो दिया है।

सैनिकों की सुरक्षा और परिवारों की जिम्मेदारियां

 

आधुनिक समय में जब सुरक्षा बलों की भूमिका लगातार विकसित हो रही है, तभी ऐसे संभावित मुद्दे, जैसे एक्स-ग्रेशिया मुआवजे के प्रविधान, और उनके संबंध में सरकार की नीतियाँ भी अपडेट होनी चाहिए। हरियाणा और पंजाब हाईकोर्ट का यह फैसला बताता है कि कैसे स्पष्ट निर्देशों और दिशा-निर्देशों की कमी के कारण कई बार सेना के परिवारों को अपने अधिकारों से वंचित होना पड़ता है।

इसके अलावा यह भी सत्य है कि जब कोई जवान वीरता से अपनी ड्यूटी करता है लेकिन गंभीर बीमारी के कारण उसकी मौत हो जाती है, तो उसे उचित सम्मान और सहायता मिलनी चाहिए। यदि सरकार द्वारा मुआवजा न देने का तर्क दिया जा रहा है, तो यह उचित है कि रक्षा मंत्रालय को इस मुद्दे पर पुनर्विचार करना चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि जवानों और उनके परिवारों की सुरक्षा को प्राथमिकता दी जाए।

परिवारों को न्याय मिले

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का यह फैसला सुरक्षा बलों के मामलों में एक महत्वपूर्ण बिंदु है। यह स्पष्ट करता है कि केवल ड्यूटी पर रहते हुए मौत होना पर्याप्त नहीं है बल्कि यह देखना जरूरी है कि मौत किन परिस्थितियों में हुई है। आवश्यक है कि सरकार इस विषय पर ध्यान दे और अर्धसैनिक बलों के जवानों और उनके परिवारों के अधिकारों की रक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाए।

शारदा देवी का मामला हमें इस ओर प्रेरित करता है कि हमें उन बहादुर जवानों को हमेशा स्मरण रखना चाहिए जिन्होंने अपने जीवन का बलिदान किया है और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके परिवारों को न्याय मिले। केवल इसी तरह हम उनके प्रति अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन कर सकते हैं और यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि उनका बलिदान व्यर्थ न जाए।

 

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