Punjab Election 2024: पंजाब की बठिंडा और जालंधर पर रोचक हुआ मुकाबला, बहुएं और समधी आमने-सामने
नरेन्द्र सहारण, चंडीगढ़ : Punjab Election 2024:लोकसभा सीट पर इस बार दो बडे राजनीतिक परिवारों की बहुओं के बीच टक्कर होने जा रही है। बठिंडा सीट से भाजपा ने शिअद नेता सिकंदर सिंह मलूका की बहू परमपाल कौर को टिकट देकर चुनाव मैदान में उतारा है, तो वहीं शिअद के प्रमुख बादल परिवार ने अपनी बहू हरसिमरत कौर बादल पर चौथी बार दांव खेला है।
सिकंदर सिंह मलूका टकसाली शिअद नेता के तौर पर जाने जाते हैं और उनकी शिअद प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के साथ नजदीकियां रहीं हैं। शिअद प्रमुख प्रकाश सिंह बादल के बाद अब उनके बेटे सुखबीर सिंह बादल पार्टी को संभाल रहे हैं। शिअद नेता सिकंदर सिंह मलूका का बेटा गुरप्रीत सिंह मलूका अपनी पत्नी व पूर्व आईएएस परमपाल कौर के साथ भाजपा में शामिल हो गए थे।
भाजपा ने परमपाल कौर को बठिंडा सीट से टिकट देकर चुनाव मैदान में उतारा है। परमपाल कौर पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहीं हैं। अब दो बड़े राजनीतिक घरानों की बहुओं के बीच मुकाबला होने जा रहा है। भाजपा प्रत्याशी परमपाल कौर अपनी पार्टी की केंद्र सरकार के कामों को गिनाकर वोट बटोरने का प्रयास कर रहीं हैं।
वहीं, शिअद प्रत्याशी हरसिमरत कौर बादल अपने अब तक के विकास कार्यों को लेकर लोगों से वोट मांग रहीं हैं। वह प्रचार में पूर्व मुख्यमंत्री व अपने ससुर प्रकाश सिंह बादल के समय के हुए विकास कार्यों का भी जिक्र कर रहीं हैं।
पंजाब की लड़ाई सीधी दिल्ली से : हरसिमरत
शिअद ने बठिंडा सीट से हरसिमरत कौर बादल को चौथी बार मैदान में उतारा है। टिकट मिलने के बाद हरसिमरत कौर बादल सोमवार को तख्त दमदमा साहिब में माथा टेकने पहुंचीं। मीडिया से बात करते हुए हरसिमरत कौर बादल ने कहा कि अभी जो काम बाकी है, अगर चौथी बार भी लोगों ने सेवा करने का मौका दिया तो सबसे पहले बचे हुए काम किए जाएंगे। पंजाब की लड़ाई सीधे तौर पर दिल्ली से है। विरोधियों ने लगातार उनके चुनाव लड़ने के बारे में बहुत सी चर्चा को जन्म दिया, लेकिन पार्टी ने फिर से उन पर विश्वास करके उन्हें चुनाव मैदान में उतारा है। लोकसभा हल्के के वोटरों ने ही उनको फर्श से अर्श पर पहुंचाया है। हरसिमरत कौर बादल ने पहला लोकसभा चुनाव 2009 में लड़ा था। उसके बाद लगातार तीन से वह जीत हासिल करती आ रही हैं।
जालंधर में चन्नी के खिलाफ कांग्रेस पूर्व प्रधान केपी मैदान में
पंजाब कांग्रेस के प्रधान और सांसद रहे मोहिंदर सिंह केपी सोमवार को शिरोमणि अकाली दल में शामिल हो गए। सोमवार को पार्टी जॉइन कराने के लिए अकाली दल के प्रधान सुखबीर बादल उनके घर पहुंचे। केपी के कांग्रेस को अलविदा कहने से दोआबा में दलितों का 70 साल पुराना चेहरा अकाली दल में शामिल हो गया है। इससे पहले देर रात केपी को मनाने के लिए पूर्व सीएम चरणजीत सिंह चन्नी के भाई उनके घर पहुंचे थे पर केपी नहीं माने। हालांकि, केपी चन्नी के निकटवर्ती रिश्तेदार हैं और चन्नी के समधी हैं।
कांग्रेस ने कद्र नहीं की
केपी ने कहा कि कांग्रेस और शिअद का इतिहास 100-100 पुराना है। कांग्रेस ने कद्र नहीं की। पंजाब के मसलों के लिए जो काम शिअद ने किया वो कांग्रेस ने नहीं किया। कांग्रेस ने मेरे परिवार की कुर्बानियों को दरकिनार किया था, लेकिन उसे शिअद ने समझा, इसलिए मैं आज अकाली दल में शामिल हो रहा हूं। अकाली दल ही एक ऐसी पार्टी है, जो क्षेत्रीय मुद्दों को जोरदार ढंग से दिल्ली तक उठा सकती है। केपी ने कहा कि मेरे परिवार ने कांग्रेस की बहुत सेवा की है। ‘मेरे पिता कांग्रेस में रहते हुए शहीद हुए थे।
कांग्रेस शहीदों के परिवारों के साथ ऐसा कर रही है। इसलिए मैंने पार्टी छोड़ी। पार्टी ने हमें निकाला है।’ परिवार दरकिनार किया गया था। 2022 में चुनावों के दौरान पार्टी की बदसलूकी मुझे आज भी याद है। मेरे मन को कितनी ठेस पहुंची थी, ये सब मुझे याद है। 2022 में आदमपुर विधानसभा की टिकट 20 मिनट पहले काट दी गई थी और उस उम्मीदवार को टिकट दी गई थी जो 10 दिन पहले कांग्रेस में आया था।
2009 में सांसद बने थे केपी
मोहिंदर सिंह केपी जालंधर लोकसभा सीट से कांग्रेस की टिकट पर साल 2009 में सांसद बने थे। जिसके बाद 2014 में कांग्रेस ने केपी को होशियारपुर से मैदान में उतारा था, जहां उन्हें हार का सामान करना पड़ा था। उन्हें बीजेपी उम्मीदवार विजय सांपला ने हराया था। केपी पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। वह 1985 में पंजाब के मंत्री रहे थे और बाद में 1992 व 2002 में पंजाब के मंत्री बने। 2009 में केपी ने जालंंधर संसदीय सीट से हंसराज हंस को हराया था। बाद में उनको कांग्रेस वर्किंग कमेटी का सदस्य भी मनोनीत किया गया था।
पूर्व सीएम चरणजीत सिंह चन्नी और जालंधर के पूर्व सांसद मोहिंदर सिंह केपी रिश्तेदार हैं। चन्नी के मुख्यमंत्री बनने के बाद केपी का कद पार्टी में बड़ा होना माना जा रहा था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। चन्नी के मुख्यमंत्री रहते हुए जब केपी ने आदमपुर से विधायकी की दावेदारी पेश की थी तो उन्हें टिकट न देकर सुखविंदर कोटली को दे दी गई थी।
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