हरियाणा में खाद की किल्लत पर सामने आई यह र‍िपोर्ट, तय मानकों से 5 गुना अधिक तक डीएपी डाल रहे किसान

नरेन्‍द्र सहारण , चंडीगढ़ : Haryana News: हरियाणा में फसल उत्पादन बढ़ाने की होड़ में किसान अब डाई अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) खाद का अत्यधिक इस्तेमाल करने लगे हैं। पिछले छह वर्षों में राज्य की कृषि योग्य भूमि लगभग स्थिर बनी रही, लेकिन डीएपी की खपत में भारी वृद्धि देखी गई। साल 2018-19 में जहां 4.70 लाख मीट्रिक टन (एमटी) डीएपी का प्रयोग किया गया था, वहीं 2023-24 तक यह खपत बढ़कर साढ़े पांच लाख एमटी से भी अधिक हो गई। यह बढ़ोतरी कृषि क्षेत्र में नए रुझानों और फसलों की बढ़ती जरूरतों को दिखाती है।

आलू और लहसुन की फसलें बिगाड़ रहीं खाद का संतुलन

 

राज्य में आलू और लहसुन की खेती डीएपी खाद की बढ़ती मांग और उसकी उपलब्धता के संतुलन को गंभीर रूप से प्रभावित कर रही है। निर्धारित मानकों के अनुसार, एक एकड़ में अधिकतम 50 किलोग्राम डीएपी खाद पर्याप्त मानी जाती है। हालांकि, आलू और लहसुन की खेती में किसान 100 से 250 किलोग्राम डीएपी तक डालने लगे हैं, जो कि आवश्यक मात्रा से कई गुना अधिक है। पिछले महीने से ही आलू की बुवाई शुरू हो गई है, और आलू उत्पादक किसान डीएपी के कई-कई बैग खरीद रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप, डीएपी खरीद केंद्रों पर खाद की किल्लत हो रही है और किसानों को पर्याप्त मात्रा में खाद नहीं मिल पा रही है।

हरियाणा में करीब 50,000 हेक्टेयर क्षेत्र में आलू की खेती की जाती है। कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ. प्रदीप मिल ने किसानों को खाद का संतुलित उपयोग करने की सलाह दी है। उनका कहना है कि अनुशंसित मात्रा में डीएपी का इस्तेमाल ही फसल की सेहत और पर्यावरण के लिए उचित होगा।

गेहूं और सरसों में भी डीएपी का अत्यधिक प्रयोग

 

हरियाणा में हर साल लगभग पांच लाख एमटी डीएपी की खपत होती है, जिसमें से सबसे अधिक खपत रबी सीजन में होती है। आंकड़ों के अनुसार, खरीफ सीजन में औसतन 2.26 लाख एमटी और रबी में 2.43 लाख एमटी डीएपी खाद का प्रयोग होता है। इसका मतलब यह है कि किसान धान के बजाय गेहूं और सरसों की फसल में ज्यादा डीएपी का उपयोग करते हैं। गेहूं और सरसों के बेहतर उत्पादन के लिए किसानों ने डीएपी के प्रयोग में वृद्धि की है, जिससे खाद की खपत में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।

कृषि योग्य भूमि का वर्तमान परिदृश्य

 

हरियाणा में 89 लाख एकड़ से अधिक कृषि योग्य भूमि है, जहां लगभग 16 लाख से अधिक किसान परिवार फसल उगाते हैं। औसतन, राज्य में 25 लाख हेक्टेयर (62 लाख एकड़) भूमि पर गेहूं की बुवाई होती है, जबकि सात लाख हेक्टेयर में सरसों की फसल उगाई जाती है। इसके अलावा, लगभग 13 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान की खेती होती है। राज्य में 96,000 हेक्टेयर भूमि पर गन्ने की खेती भी होती है। सब्जी वाली फसलों, खासकर आलू में भी डीएपी का प्रचलन तेजी से बढ़ा है।

डीएपी खाद का महत्व और इसका उपयोग
डाई अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) एक प्रभावशाली फॉस्फेटिक खाद है, जो पौधों को नाइट्रोजन और फॉस्फोरस की पूर्ति करती है। डीएपी में 18 प्रतिशत नाइट्रोजन और 46 प्रतिशत फॉस्फोरस होता है। यह खाद पौधों की जड़ों के विकास और कोशिकाओं के विभाजन को बढ़ावा देती है, जिससे पौधे मजबूत होते हैं और उनकी वृद्धि में सुधार होता है। डीएपी का संतुलित उपयोग फसल उत्पादन में सुधार कर सकता है, लेकिन अत्यधिक प्रयोग से मिट्टी की गुणवत्ता और पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

डीएपी खपत के आंकड़े

 

हरियाणा में डीएपी की खपत के आंकड़े बताते हैं कि खाद का उपयोग तेजी से बढ़ा है। वर्ष 2018-19 में 4,70,327 एमटी डीएपी का उपयोग हुआ, जबकि 2019-20 में यह घटकर 4,45,211 एमटी हो गया। 2020-21 में खपत 4,41,777 एमटी थी, लेकिन 2021-22 में यह बढ़कर 4,60,043 एमटी हो गई। 2022-23 में डीएपी की खपत में बड़ी वृद्धि हुई और यह 5,58,262 एमटी हो गई। हालांकि, 2023-24 में खपत थोड़ी कम होकर 5,18,334 एमटी पर आई। 2024-25 में अब तक चार लाख एमटी से अधिक खपत हो चुकी है।

डीएपी खपत में 10 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि

 

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के पूर्व प्रधान वैज्ञानिक डॉ. वीरेंद्र सिंह लाठर का कहना है कि डीएपी का अनुशंसित उपयोग 50 किलोग्राम प्रति एकड़ है, जिससे धान और गेहूं की उपज में 30 प्रतिशत तक सुधार हो सकता है। डीएपी की कमी से इन फसलों की पैदावार में एक तिहाई गिरावट आ सकती है। देशभर में डीएपी की खपत में हर साल 10 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हो रही है, जिससे इसकी आपूर्ति पर भी दबाव बढ़ता जा रहा है।

किसानों को संतुलित उपयोग की सलाह

कृषि विशेषज्ञों और सरकारी अधिकारियों का मानना है कि किसानों को डीएपी खाद का इस्तेमाल संतुलित मात्रा में करना चाहिए। अत्यधिक उपयोग से न केवल मिट्टी की उर्वरता पर बुरा असर पड़ सकता है, बल्कि यह पर्यावरण के लिए भी हानिकारक हो सकता है। किसानों को उन्नत तकनीक और वैज्ञानिक तरीकों को अपनाने की सलाह दी जा रही है ताकि उत्पादन में सुधार हो और मिट्टी की गुणवत्ता भी बनी रहे।

हरियाणा में किसानों की बढ़ती डीएपी खपत एक चुनौती बनती जा रही है, जिससे फसल उत्पादन और पर्यावरण संतुलन दोनों प्रभावित हो रहे हैं।

 

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