कैथल में बेलारूस से 2 साल बाद पहुंचा शव: डंकी रूट से अमेरिका गया था युवक, मौत के बाद दोस्तों ने भेजा वीडियो

नरेंद्र सहारण, कैथल : Kaithal News: हरियाणा के कैथल जिले के पूंडरी कस्बे का साकरा गांव शुक्रवार देर शाम उस समय शोक में डूब गया, जब दो साल पहले अमेरिका जाने के लिए खतरनाक “डंकी रूट” अपनाने वाले अपने बेटे नवीन का पार्थिव शरीर गांव पहुंचा। नवीन की मौत यूरोपीय देश बेलारूस में हो गई थी और उसके बाद से ही परिवार उसके शव को भारत लाने के लिए संघर्ष कर रहा था। नम आंखों और भारी मन से परिजनों ने रीति-रिवाज के साथ नवीन का अंतिम संस्कार किया, एक ऐसी कहानी का दुखद अंत हुआ जो सपनों, उम्मीदों और अंततः त्रासदी से भरी थी।

सपनों की उड़ान और अनिश्चित राह

 

नवीन अपने तीन भाई-बहनों में सबसे छोटा एक साधारण किसान परिवार से ताल्लुक रखता था। उसके पिता सुभाष चंद अपनी सीमित खेती से परिवार का भरण-पोषण करते थे। हर युवा की तरह नवीन की आंखों में भी बेहतर भविष्य के सपने थे, एक ऐसी जिंदगी जो शायद उसके गांव की सीमाओं से परे थी। अमेरिका कई युवाओं के लिए अवसरों की भूमि, उसके लिए भी एक आकर्षण का केंद्र था। साल 2023 की शुरुआत में परिवार और संभवतः नवीन ने मिलकर एक बड़ा और जोखिम भरा फैसला लिया  उसे “डंकी रूट” के जरिए अमेरिका भेजने का। यह वह कुख्यात अवैध मार्ग है जिसका इस्तेमाल अक्सर वे लोग करते हैं जो कानूनी तरीकों से पश्चिमी देशों में प्रवास नहीं कर पाते। यह मार्ग न केवल महंगा होता है, बल्कि इसमें जान का खतरा भी कदम-कदम पर बना रहता है।

परिवार ने किसी एजेंट के माध्यम से यह व्यवस्था की होगी, जिसने उन्हें सब्जबाग दिखाए होंगे और सुरक्षित अमेरिका पहुंचाने का वादा किया होगा। इन एजेंटों का नेटवर्क काफी फैला होता है और वे अक्सर भोले-भाले लोगों को अपने जाल में फंसा लेते हैं, उनसे मोटी रकम ऐंठते हैं और फिर उन्हें खतरनाक सफर पर अकेला छोड़ देते हैं।

नवीन ने अपने सफर की शुरुआत की। परिवार के लिए यह एक उम्मीद भरा, लेकिन चिंताजनक समय था। 22 अक्टूबर 2023 को नवीन ने आखिरी बार अपने परिवार से बात की। उस समय किसी को अंदाजा नहीं था कि यह उनकी अपने बेटे से आखिरी बातचीत होगी। उस फोन कॉल के बाद, नवीन से संपर्क टूट गया। वह मानो हवा में गायब हो गया।

अनिश्चितता, झूठी दिलासा और खौफनाक सच्चाई

 

दिन हफ्तों में और हफ्ते महीनों में बदलने लगे। नवीन की कोई खबर नहीं थी। परिवार की चिंता हर गुजरते पल के साथ बढ़ती जा रही थी। वे लगातार उस एजेंट के संपर्क में थे जिसने नवीन को भेजने का जिम्मा लिया था। लेकिन हर बार एजेंट उन्हें टालमटोल करता रहा, यही कहता रहा कि “नवीन रास्ते में है, जल्द ही पहुंच जाएगा,” या “नेटवर्क की समस्या है, बात नहीं हो पा रही।” यह झूठी दिलासा परिवार के लिए किसी भावनात्मक अत्याचार से कम नहीं थी। वे हर फोन की घंटी पर नवीन की आवाज सुनने की उम्मीद करते, हर अनजान नंबर को नवीन का संदेश समझकर उठाते।

साल 2024 आ गया, लेकिन नवीन का कोई अता-पता नहीं चला। परिवार की उम्मीदें दम तोड़ने लगी थीं और एक अनजाना डर उनके दिलों में घर करने लगा था। फिर एक दिन, नवीन के ही फोन नंबर से उसके एक दोस्त को कॉल आया। कॉल करने वाले ने जो बताया, उसने परिवार के पैरों तले जमीन खिसका दी। उसने बताया कि बेलारूस में एक अज्ञात युवक का शव मिला है, और शक है कि वह नवीन हो सकता है।

इस खबर ने साकरा गांव में हड़कंप मचा दिया। गांव के ही दो युवक वीरेंद्र और राहुल, जो शायद बेलारूस या आसपास के किसी देश में थे या जिनके वहां संपर्क थे, उन्होंने इस मामले में मदद की। बेलारूस से मृतक की तस्वीरें और वीडियो भेजे गए। कांपते हाथों और भारी मन से जब परिवार ने उन तस्वीरों को देखा, तो उनका सबसे बड़ा डर सच साबित हुआ। वह शव नवीन का ही था। उनका लाडला जो अमेरिका के सपने लेकर घर से निकला था, हजारों मील दूर एक अनजान देश में लावारिस पड़ा मिला।

डंकी रूट का जानलेवा जाल

 

“डंकी रूट” (Donkey Route), यह शब्द सुनने में जितना अजीब है, उतना ही खतरनाक इसका सफर है। यह मध्य पूर्व, अफ्रीका और एशिया के कई देशों से युवाओं के अवैध रूप से यूरोप, अमेरिका या कनाडा पहुंचने का जरिया है। इस रास्ते पर चलने वाले लोग अक्सर अपनी जान जोखिम में डालते हैं। एजेंट उन्हें कई देशों की सीमाओं को अवैध रूप से पार कराते हैं, कभी पैदल, कभी छोटी नावों में ठूंसकर, कभी ट्रकों के कंटेनरों में छिपाकर। बेलारूस, तुर्की, मैक्सिको जैसे देश अक्सर इस रूट के ट्रांजिट प्वाइंट बनते हैं।

इन रास्तों पर न कोई सुरक्षा होती है, न कोई गारंटी। मानव तस्करों के गिरोह सक्रिय होते हैं जो लूटपाट, अपहरण और यहां तक कि हत्या करने से भी नहीं हिचकते। खराब मौसम, भूख, प्यास और बीमारियों से भी कई लोग रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं। नवीन भी इसी जानलेवा जाल का शिकार हुआ। उसकी मौत किन परिस्थितियों में हुई, क्या वह किसी दुर्घटना का शिकार हुआ, या किसी गिरोह के चंगुल में फंस गया, या ठंड और भूख ने उसकी जान ले ली – यह शायद कभी पूरी तरह साफ न हो पाए। लेकिन यह स्पष्ट है कि डंकी रूट का सफर उसके लिए मौत का सफर साबित हुआ।

शव वापसी का दो साल का संघर्ष

 

नवीन की मौत की पुष्टि के बाद परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। लेकिन उनके सामने एक और बड़ी चुनौती थी – अपने बेटे के शव को स्वदेश वापस लाना। एक अनजान देश से पार्थिव शरीर को वापस लाना एक जटिल, महंगी और लंबी प्रक्रिया होती है। इसके लिए दोनों देशों के दूतावासों, स्थानीय अधिकारियों और कई कानूनी औपचारिकताओं को पूरा करना होता है।

सुभाष चंद और उनके परिवार के लिए यह दो साल का संघर्ष किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं था। एक छोटा किसान परिवार, जिसके पास सीमित संसाधन थे, उन्हें न केवल बेटे को खोने का गम झेलना पड़ रहा था, बल्कि उसके शव को वापस लाने के लिए आर्थिक और मानसिक रूप से भी जूझना पड़ रहा था। उन्होंने हर संभव दरवाजा खटखटाया होगा, स्थानीय नेताओं से लेकर शायद विदेश मंत्रालय तक गुहार लगाई होगी। इस प्रक्रिया में न जाने कितनी बार उन्हें निराशा हाथ लगी होगी, कितनी बार उनकी उम्मीदें टूटी होंगी।

यह उन अनगिनत परिवारों की कहानी है जिनके बच्चे बेहतर भविष्य की तलाश में अवैध रास्तों पर निकल पड़ते हैं और फिर किसी अनहोनी का शिकार हो जाते हैं। शवों की पहचान, पोस्टमार्टम, कागजी कार्रवाई और फिर शव को विमान से वापस लाने का खर्च  यह सब कुछ शोक संतप्त परिवार को और तोड़ देता है। कई बार तो परिवार इतने असहाय होते हैं कि वे अपने प्रियजनों का अंतिम संस्कार भी नहीं कर पाते और शव विदेश में ही लावारिस रह जाते हैं।

नवीन का परिवार भाग्यशाली रहा कि वे दो साल की अथक कोशिशों के बाद अपने बेटे के पार्थिव शरीर को वापस लाने में कामयाब रहे। लेकिन ये दो साल उनके लिए इंतजार और पीड़ा के अंतहीन दिन थे।

आंसुओं के सैलाब के बीच अंतिम विदाई

 

आखिरकार, वह दिन आया जब नवीन का शव साकरा गांव पहुंचा। शुक्रवार देर शाम जब एम्बुलेंस नवीन के पार्थिव शरीर को लेकर गांव की सीमा में दाखिल हुई, तो पूरे गांव में मातम पसर गया। परिवारजनों का रो-रोकर बुरा हाल था। मां की आंखों के आंसू सूखने का नाम नहीं ले रहे थे, पिता सुभाष चंद का कंधा अपने सबसे छोटे बेटे के बोझ से नहीं, बल्कि उसके ताबूत के गम से झुका हुआ था। भाई-बहन अपने प्यारे भाई को इस हालत में देखकर बेसुध थे।

गांव के हर घर से लोग नवीन के अंतिम दर्शनों के लिए उमड़ पड़े। हर आंख नम थी, हर चेहरे पर उदासी थी। यह केवल एक परिवार का दुख नहीं था, बल्कि पूरे समुदाय की क्षति थी। नवीन सिर्फ एक व्यक्ति नहीं था, वह उन हजारों युवाओं का प्रतीक बन गया था जो सुनहरे भविष्य के सपने देखते हुए गलत रास्तों पर निकल पड़ते हैं और अपनी जान गंवा बैठते हैं।

परिवार ने पूरे रीति-रिवाज के साथ नवीन का अंतिम संस्कार किया। जब चिता को अग्नि दी गई, तो मानो उन सपनों और उम्मीदों को भी आग लग गई जो नवीन और उसके परिवार ने संजोए थे। हवा में उठता धुआं इस कड़वी सच्चाई का गवाह बन रहा था कि एक और युवा जिंदगी अवैध प्रवासन की भेंट चढ़ गई।

एक चेतावनी और कई अनसुलझे सवाल

 

नवीन की कहानी एक दुखद अनुस्मारक है कि “डंकी रूट” जैसे अवैध रास्ते कितने खतरनाक हो सकते हैं। यह उन युवाओं के लिए एक चेतावनी है जो शॉर्टकट अपनाकर विदेशों में बसने का सपना देखते हैं। यह उन परिवारों के लिए भी एक सबक है जो अपने बच्चों को ऐसे जोखिम भरे सफर पर भेजने का फैसला करते हैं।

यह घटना कई गंभीर सवाल भी खड़े करती है

  • उन एजेंटों पर कब नकेल कसी जाएगी जो युवाओं को गुमराह कर मौत के मुंह में धकेलते हैं?
  • सरकारें युवाओं को देश में ही बेहतर अवसर प्रदान करने के लिए क्या ठोस कदम उठा रही हैं ताकि उन्हें विदेश जाने के लिए ऐसे खतरनाक रास्ते न अपनाने पड़ें?
  • अवैध प्रवासन के खतरों के बारे में जागरूकता अभियान कितने प्रभावी हैं?
  • विदेशों में फंसे या मृत भारतीय नागरिकों के शवों को वापस लाने की प्रक्रिया को और सुगम और त्वरित कैसे बनाया जा सकता है?
    साकरा गांव का दुख शायद समय के साथ कम हो जाए, लेकिन नवीन की कहानी एक टीस बनकर हमेशा याद दिलाती रहेगी कि सपनों की कीमत कभी-कभी जिंदगी से भी बड़ी चुकानी पड़ सकती है। यह उम्मीद की जानी चाहिए कि इस त्रासदी से सबक लेकर भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए ठोस प्रयास किए जाएंगे, ताकि किसी और नवीन को डंकी रूट का शिकार न होना पड़े और किसी और परिवार को दो साल तक अपने बेटे के शव का इंतजार न करना पड़े।

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