डॉ. अरुणेश नीरन की स्मृति पर श्रद्धांजलि सभा: भोजपुरी भाषा और साहित्य के प्रति उनकी अनमोल विरासत का समर्पित सम्मान

नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में स्थित एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया ऑफिसर्स इंस्टीट्यूट, सफदरजंग हवाई अड्डा में शनिवार को भोजपुरी भाषा के प्रख्यात साहित्यकार, भाषाविद् और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. अरुणेश नीरन की पुण्यस्मृति में एक भावभीनी श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। इस आयोजन की शुरुआत एक श्रद्धांजलि समारोह से हुई, जिसमें उनके चित्र पर पुष्प अर्पित कर दो मिनट का मौन रखा गया। इस सभा का उद्देश्य न केवल उनके साहित्यिक अवदानों को श्रद्धांजलि देना था, बल्कि भोजपुरी भाषा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और उनके कार्यों को राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित करने का भी था। यह आयोजन विश्व भोजपुरी सम्मेलन दिल्ली इकाई द्वारा आयोजित किया गया, जिसने भोजपुरी भाषा और साहित्य के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए एक महत्वपूर्ण मंच का निर्माण किया।
डॉ. अरुणेश नीरन का जीवन परिचय
डॉ. नीरन का जन्म देवरिया खास के रहने वाले जगदीश मणि त्रिपाठी के बड़े पुत्र के रूप में 20 जून 1946 को देवरिया खास में हुआ। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा में सेवाएं दीं। बुद्ध पीजी कालेज कुशीनगर के प्राचार्य पद से सेवानिवृत हुए।
उन्होंने अपने जीवन को भोजपुरी भाषा और साहित्य के प्रचार-प्रसार में समर्पित कर दिया। उनका साहित्यिक जीवन भोजपुरी की समृद्धि और विकास के लिए समर्पित रहा। उन्होंने न सिर्फ साहित्यिक रचनाएं लिखीं, बल्कि भोजपुरी के साहित्यिक मंचों का सृजन किया और भाषा के संरक्षण के लिए कई संगठनात्मक प्रयास भी किए। उनका कार्य केवल रचनात्मक ही नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव का भी माध्यम था। उन्होंने भोजपुरी को सम्मान और गौरव का विषय बनाने के लिए लगातार प्रयास किए। उनकी लेखनी का प्रभाव भोजपुरी भाषी जनता में राष्ट्रीय गर्व का संचार करता रहा। अरुणेश नीरन का 80 वर्ष की आयु में देवरिया में निधन हो गया। बीते कुछ महीनों से वह लीवर और मधुमेह से गंभीर रूप से बीमार चल रहे थे।
अरुणेश नीरन की प्रमुख साहित्यिक कृतियां
भोजपुरी वैभव, पुरइन पात, हमार गांव, प्रतिनिधि भोजपुरी कहानियां, शिवप्रसाद सिंह, अक्षर पुरुष, अज्ञेय शती स्मरण के अलावा देश-विदेश की पत्रिकाओं में तीन सौ से ऊपर शोध-पत्र प्रकाशित।
श्रद्धा और सम्मान का प्रतीक
सभा का आरंभ उनके चित्र पर पुष्प अर्पित कर किया गया। इसके बाद दो मिनट का मौन रखा गया, जिससे उपस्थित सभी विद्वानों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अपने श्रद्धासुमन अर्पित किए। इस मौन समर्पण के माध्यम से उनके साहित्यिक जीवन, भाषाई प्रतिबद्धता और संगठनात्मक प्रयासों को याद किया गया। सभा के दौरान वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किए और उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला। इस दौरान, उनके साहित्यिक अवदान, भाषाई जागरूकता और सामाजिक कार्यों की चर्चा ने सभा को भावुक और प्रेरणादायक बना दिया।
भोजपुरी भाषा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को स्मरण
इस सभा में वक्ताओं ने उनके व्यक्तित्व और कृतित्व का विश्लेषण किया। विश्व भोजपुरी सम्मेलन के राष्ट्रीय अध्यक्ष अजीत दुबे ने अपने संस्मरण साझा करते हुए कहा कि “नीरन जी ने हमें न केवल साहित्य और भाषा से जोड़ा, बल्कि उस भाषा को आत्मगौरव से जीने की दृष्टि भी दी।” उन्होंने यह भी कहा कि, “भारत सरकार से मरणोपरांत ‘पद्मश्री’ सम्मान प्रदान किया जाना चाहिए, जो भोजपुरी भाषा के प्रति उनकी अथक सेवा का सम्मान होगा।” दुबे जी ने यह भी कहा कि भोजपुरी भाषा के संरक्षण और संवर्धन के लिए यह सम्मान आवश्यक है, क्योंकि यह उनके जीवन का मिशन था।
साहित्य अकादमी के पूर्व उप सचिव डॉ. ब्रजेंद्र त्रिपाठी ने भी अपने अनुभव साझा किए और बताया कि नीरन जी ने ‘समकालीन भोजपुरी साहित्य’ पत्रिका के माध्यम से भोजपुरी साहित्य को नई ऊंचाईयों पर पहुंचाया। उन्होंने कहा कि इस पत्रिका के द्वारा भोजपुरी साहित्यकारों को एक मंच मिला, जिसने भाषा के प्रति लोगों में जागरूकता और प्रेम बढ़ाया।
भावुकता का संगम
सभा के दौरान लोक गायिका विजयलक्ष्मी उपाध्याय ने भोजपुरी गीतों की प्रस्तुतियां दी, जिन्होंने माहौल को और भी अधिक भावुक बना दिया। कवि देवकांत पांडेय ने अपने कविता पाठ से सभा में एक नई ऊर्जा का संचार किया। इसके अलावा, अनेक साहित्यिक और सांस्कृतिक व्यक्तित्वों ने अपने विचार व्यक्त किए और भोजपुरी भाषा के भविष्य की दिशा में अपने दृष्टिकोण प्रस्तुत किए। इस कार्यक्रम का संचालन दिल्ली विश्वविद्यालय के दौलत राम कॉलेज के प्राध्यापक डॉ. मनीष चौधरी ने किया, जिन्होंने सभा को सुव्यवस्थित और प्रेरणादायक रूप में संचालित किया।
प्रस्ताव और संकल्प
सभा में अनेक प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किए गए, जिन्हें भारत सरकार के समक्ष औपचारिक रूप से प्रस्तुत किया जाएगा। इन प्रस्तावों का प्रमुख उद्देश्य भोजपुरी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करना और उन्हें मरणोपरांत ‘पद्मश्री’ सम्मान से सम्मानित करना है।
प्रस्ताव 1:
डॉ. अरुणेश नीरन जी का साहित्यिक, सामाजिक और संगठनात्मक योगदान मान्यता प्राप्त करने के लिए, भारत सरकार से मरणोपरांत ‘पद्मश्री’ सम्मान प्रदान करने की प्रबल अनुशंसा।
प्रस्ताव 2:
भोजपुरी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की अविलंब प्रक्रिया शुरू करने का आग्रह, जिससे भाषा का संरक्षण और सम्मान सुनिश्चित हो सके। यह उनके स्वप्न की पूर्ति होगी और करोड़ों भोजपुरीभाषी नागरिकों के अधिकारों का सम्मान भी।
प्रस्ताव 3:
भोजपुरी भाषा और साहित्य के संरक्षण के लिए सरकार, शिक्षण संस्थानों और समाज के समुचित प्रयासों को प्रोत्साहित करने का संकल्प।
अंतिम संकल्प
सभा के अंत में आयोजन समिति ने यह संकल्प लिया कि डॉ. नीरन के साहित्यिक विचार, भाषाई आग्रह और सांस्कृतिक मूल्यों को आगे बढ़ाना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। इस संकल्प के तहत, भोजपुरी भाषा के संरक्षण, संवर्धन और उन्नयन के लिए लगातार प्रयास किए जाएंगे। इस सभा ने यह भी तय किया कि भोजपुरी भाषा का प्रचार-प्रसार एवं विकास को राष्ट्रीय स्तर पर और अधिक मजबूत बनाने के लिए कार्यशालाएं, संगोष्ठियां और साहित्यिक कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।
भोजपुरी साहित्य के प्रति समर्पित एक नई दिशा
यह श्रद्धांजलि सभा न केवल डॉ. अरुणेश नीरन के जीवन और कार्यों का स्मरण था, बल्कि यह भोजपुरी भाषा के प्रति एक सामूहिक प्रतिबद्धता का भी प्रतीक है। उनकी विरासत को जीवित रखने और आगे बढ़ाने का संकल्प लेकर, इस सभा ने भोजपुरी भाषा के संरक्षण एवं संवर्धन का एक नया अध्याय शुरू किया है।
भोजपुरी साहित्य और संस्कृति के संरक्षण के लिए यह एक प्रेरणादायक कदम है, जो आने वाली पीढ़ियों को उनके आदर्शों से अवगत कराएगा। इस प्रकार, डॉ. अरुणेश नीरन की स्मृति में आयोजित यह श्रद्धांजलि सभा भोजपुरी भाषा के प्रति समर्पित और उसकी गरिमा को ऊंचा उठाने का एक सशक्त प्रयास बनी रहेगी।