व्यास पूजा समारोह 2025: मां ही होती है पहली गुरु : डॉ. दीनदयाल

नई दिल्ली, बीएनएम न्यूज : भारतीय शिक्षण मंडल, दक्षिणी प्रांत, दिल्ली एवं गलगोटिया विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में सोमवार, 28 जुलाई 2025 को एक अद्भुत और प्रेरणादायक व्यास पूजा उत्सव का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम न केवल शैक्षणिक उत्कृष्टता का प्रतीक था बल्कि भारतीय संस्कृति, संस्कारों एवं गुरु वंदन की परंपरा का जीवंत उदाहरण भी था। इस दिन का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों, शिक्षकों और शिक्षण संस्थानों के बीच ज्ञान, श्रद्धा और सम्मान के संस्कारों को मजबूत बनाना था। इस अवसर पर विभिन्न शिक्षण संस्थानों के प्रतिनिधि, विद्वान, छात्र-छात्राएं एवं शिक्षक समुदाय उपस्थित थे, जिन्होंने इस आयोजन को गरिमा और उल्लास से भरा।
कार्यक्रम का शुभारंभ
कार्यक्रम की शुरुआत ध्येय मंत्र और ध्येय वाक्य से हुई, जो शिक्षण और संस्कार के आधार स्तंभ हैं। इस अवसर पर अतिथियों ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि शिक्षा का मूल उद्देश्य विद्यार्थियों में नैतिकता, संस्कार और ज्ञान का समागम है। ध्येय मंत्र और वाक्य का उद्घोष इस बात का संकेत था कि हम सभी अपने शिक्षण कार्य में सदाचार और श्रद्धा का समावेश करें। इस शुभारंभ ने सभी उपस्थित लोगों के मन में एक नई ऊर्जा और प्रेरणा का संचार किया।
डॉ दीनदयाल के विचार एवं शिक्षण का महत्व
जानकी देवी मेमोरियल कॉलेज के डॉ दीनदयाल ने इस अवसर पर अत्यंत प्रेरणादायक विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा, “मां ही पहली गुरू होती है तथा गुरू घंटालों से बचना होगा।” यह कथन भारतीय संस्कृति में गुरु की महत्ता को दर्शाता है कि मातृशक्ति का स्थान सर्वोपरि है और गुरु का सम्मान सर्वोपरि। डॉ दीनदयाल ने व्यावहारिक शिक्षा के महत्व पर भी बल दिया और कहा कि शिक्षा का मुख्य उद्देश्य केवल किताबी ज्ञान ही नहीं बल्कि जीवन के व्यवहारिक पहलुओं का भी प्रशिक्षण है। उन्होंने बुद्ध की कथा का भी उल्लेख किया, जिसमें गुरु की महत्ता, धैर्य एवं सही मार्गदर्शन का संदेश समाहित है। इस कथा से प्रेरित होकर विद्यार्थियों एवं शिक्षकों ने अपने जीवन में गुरु की महत्ता को समझा।
संस्कृत और हिंदी का महत्व
गलगोटिया विश्वविद्यालय के उपकुलपति प्रो अवधेश कुमार ने अपने वक्तव्य में कहा कि हिंदी एवं संस्कृत जैसे प्राचीन भाषाओं का प्रयोग करने वाले व्यक्तियों को ज्ञान में कम आंकना गलतफहमी है। उन्होंने कहा कि ये भाषाएँ हमारे सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न हिस्सा हैं, और इनका अध्ययन एवं प्रयोग से हम अपनी परंपरा एवं सांस्कृतिक मूल्यों को संरक्षित कर सकते हैं। प्रो कुमार ने आगे कहा कि आधुनिक युग में भी इन भाषाओं का अध्ययन और प्रयोग सामाजिक एवं शैक्षणिक विकास का माध्यम है। इस वक्तव्य ने आयोजकों और उपस्थित छात्रों में नई सोच का संचार किया।
विविध गतिविधियों और सहभागिता
कार्यक्रम में अनेक शिक्षण संस्थानों के प्रतिनिधि, शिक्षक, विद्यार्थी और विशेषज्ञ उपस्थित थे। संचालन डॉ पूजा गुप्ता ने किया, जबकि मंच संचालन का भार डॉ भावना शुक्ला और नेहा शर्मा ने संभाला। इस दौरान ज़ाकिर हुसैन कॉलेज की डॉ रितु अग्रवाल, ग्रामीण मुक्त विद्यालय की निदेशक डॉ ऋतु, गलगोटिया विश्वविद्यालय के निदेशक डॉ मनुराज ने भी अपने विचार व्यक्त किए। सभी प्रतिभागियों ने अपने विचारों एवं अनुभवों को साझा किया, जिससे कार्यक्रम में संवाद और संवादहीनता का अभाव नहीं रहा। इसके साथ ही, विद्यार्थियों ने विभिन्न सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के माध्यम से अपने रचनात्मक प्रयासों का प्रदर्शन किया।
कार्यक्रम का समापन: कल्याण मंत्र के साथ
कार्यक्रम का समापन एक शुभ एवं सकारात्मक कल्याण मंत्र के साथ हुआ। इस मंत्र का जाप सभी उपस्थित लोगों ने मिलकर किया, ताकि यह संस्कार और ज्ञान का प्रकाश पूरे समाज में फैल सके। इस समापन ने सभी को एक नई ऊर्जा और सकारात्मक सोच से भर दिया। अंत में, आयोजकों ने सभी का धन्यवाद करते हुए इस आयोजन को सफल बनाने में सहयोग देने वाले सभी व्यक्तियों का आभार व्यक्त किया।
संस्कारों का संगम, शिक्षण का उत्सव
व्यास पूजा 2025 का यह आयोजन एक स्मरणीय और प्रेरणादायक कार्यक्रम रहा। इसने हमें यह सिखाया कि शिक्षा केवल पुस्तकों का विषय नहीं, बल्कि संस्कार, श्रद्धा और गुरु का सम्मान भी है। भारतीय संस्कृति और परंपराओं का सम्मान करते हुए, इस प्रकार के आयोजनों से विद्यार्थियों में नैतिकता, संस्कार और ज्ञान का समागम संभव है। आने वाले समय में भी ऐसे आयोजनों को बढ़ावा देना चाहिए, ताकि हमें अपनी परंपरा और संस्कृति का गौरव महसूस हो।