Akhilesh Yadav: अखिलेश यादव बार-बार क्यों बदल रहे प्रत्याशी? अपने ही चक्रव्यूह में फंसती दिख रही सपा

नई दिल्ली, बीएनएम न्यूजः लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Election 2024) को लेकर सभी पार्टियां उम्मीदवारों की घोषणा कर रही हैं। इसी बीच समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) में टिकटों को लेकर घमासान मचा हुआ है। सपा अभी तक सभी सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा नहीं कर पाई है, लेकिन उससे पहले ही प्रत्याशी बदलने से सपा की मुश्किलें बढ़ गई हैं। पहले बदायूं, मुरादाबाद, नोएडा के बाद अब मेरठ में सपा ने प्रत्याशी बदल दिया है। सपा ने मेरठ से घोषित उम्मीदवार भानु प्रताप सिंह का टिकट काट कर विधायक अतुल प्रधान को टिकट थमा दिया है। इस घटनाक्रम को लेकर भाजपा ने तंज कसा दिया है। उधर, राजनीतिक जानकार भी इस तरह से उम्मीदवार बदलने की राजनीति को खराब बता रहे हैं।
राजनीतिक विशेषज्ञ बता रहे हैं कि अखिलेश यादव की इस रणनीति से कोई फायदा नजर नहीं आ रहा है, क्योंकि असमंजस की स्थिति कभी भी फायदेमंद नहीं होती है। उन्होंने कहा कि जिस तरह से आपस में मिलकर चुनाव लड़ने की एक तैयारी होती है, लेकिन इस रणनीति से आपस के ही लोगों को भिड़ाने का काम हो रहा है, जोकि नुकसानदेह हो सकता है। इससे चुनाव लड़ने वाले में उम्मीदवार में भी असमंजस बना रहता है कि हम चुनाव लड़ेंगे या नहीं। हर पार्टी में एक सीट पर कई दावेदार होते हैं, उन दावेदारों को पार्टी के बड़े लीडर समझाने का काम करते हैं, लेकिन टिकट मिलने के बाद टिकट कट जाने से नाराजगी बढ़ जाती है। इससे विरोध होने से पार्टी का नुकसान होता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि इससे साफ कहा जा सकता है कि अखिलेश यादव उस लेवल पर मैनेज नहीं कर पा रहे हैं, जिस लेवल पर नेताजी मुलायम सिंह यादव करते थे। नेताजी को मालूम था कि किसको कैसे मनाना है। इस रणनीति में अखिलेश यादव नेताजी से कमजोर हैं। सपा के लिए अब नई चुनौती आ खड़ी हुई है। वैसे पार्टी टिकट में बदलाव को मजबूत प्रत्याशी की तलाश का आधार बता रही है। यह नई मुश्किल ऐसे वक्त में आई है, जब चुनाव का पहला चरण 19 अप्रैल से शुरू हो रहा है और पार्टी का मुकम्मल प्रचार अभियान शुरू नहीं हो पाया है। अखिलेश यादव के चुनावी दौरे, चुनावी घोषणा पत्र, कांग्रेस के साथ संयुक्त रैलियां आदि अभियान टिकट वितरण में इस तरह के खेल से प्रभावित हो सकते हैं।
मेरठ में एक महीने में तीन टिकट
हालत यह है कि सपा में कब किसका टिकट कट जाए, कट कर दुबारा मिल जाए और फिर टिकट कट जाए। कोई पक्की तौर पर नहीं कर सकता। ताजा उदाहरण तो मेरठ का है। जहां महीने में तीन बार टिकट बदला जा चुका है। सपा में इस स्थिति पर पार्टी के लोग हैरत में हैं तो भाजपा व रालोद सपा पर इस मुद्दे पर तंज कसने में पीछे नहीं है। अखिलेश यादव जब उम्मीदवार के नाम का एलान करते हैं लेकिन स्थानीय नेता उन पर टिकट बदलने का दबाव बनाने लगते हैं। कभी बाहरी के नाम पर तो कभी जातीय समीकरण फिट न होने के नाम पर अखिलेश यादव अपना निर्णय बार-बार बदल रहे हैं।
मुरादाबाद, रामपुर व मेरठ में इस तरह हुआ खेल
मुरादाबाद में एसटी हसन को भी टिकट देने का निर्णय हो चुका था लेकिन फिर भी रुचिवीरा प्रत्याशी हो गईं। मौजूदा सांसद एसटी हसन कहते हैं अब क्या किया जा सकता है। मुरादाबाद में नाटकीय व रोचक घटनाक्रम के बाद अब मेरठ में नया खेल हो गया। पहले सामान्य सीट पर पार्टी ने दलित प्रत्याशी भानु प्रताप को उतार दिया लेकिन यहां के टिकट के लिए तीन विधायक अतुल प्रधान, रफीक अंसारी व शाहिद मंजूर भी रेस में थे। बाजी हाथ लगी अतुल प्रधान के, जो अपना टिकट पक्का कराने के लिए अखिलेश के पीछे पीछे दिल्ली पहुंच गए।
अखिलेश यादव से उन्होंने अपना टिकट पक्का करा लिया और नामांकन करा दिया लेकिन फिर बाजी पलटी और बाजी हाथ लगी सुनीता वर्मा के। टिकट कटने के बाद अतुल प्रधान भी मायूस दिखे लेकिन उन्होंने मीडिया से कहा कि वह पार्टी के प्रचार में पूरी तरह लगेंगे।
रामपुर में आजम गुट के बगावती तेवर
रामपुर में पहले से आजम खां गुट के तेवर बगावती हैं। आजम खां के खास आसिम रजा ने भी नामांकन कर दिया लेकिन अखिलेश ने सख्त तेवर दिखाए और सपा के वह अधिकृत प्रत्याशी नहीं बन सके। अब वह कितना सहयोग नए प्रत्याशी के लिए कर रहे हैं, यह रामपुर में साफ दिख रहा है।
अब तक नौ सीटों पर बदल चुके हैं प्रत्याशी
बागपत, संभल, मिश्रिख, बदायूं, बिजनौर, मुरादाबाद, गौतमबुद्ध नगर, मुरादाबाद, मेरठ में टिकट बदले जा चुके हैं। अध्यक्ष अखिलेश यादव अब तक मुरादाबाद, रामपुर, बागपत, मेरठ, बिजनौर, गौतमबुद्ध नगर, बदायूं और मिश्रिख सीट से उम्मीदवार बदल चुके हैं। अभी और भी कई सीटों पर प्रत्याशी बदले जाने की तैयारी है। माना जा रहा है कि घोसी में घोषित प्रत्याशी राजीव राय की जगह दूसरे पर दांव लगाया जा सकता है।
2017 में बार टिकट बदलने से भी हुआ सपा को नुकसान
2017 के विधानसभा चुनाव में सपा में पहले से आंतरिक घमासान मचा था। ऐेसे सपा की कमान अपने हाथ में लेने व कांग्रेस के साथ गठजोड़ करने के बाद अखिलेश यादव ने उस वक्त कई प्रत्याशियों को बदल दिया। इससे दोहरा नुकसान हुआ। एक तो जिसे ऐन वक्त पर टिकट दिया गया वह वक्त की कमी के चलते पूरी शिद्दत से प्रचार में नहीं लग पाया और जिसका टिकट कटा उसके समर्थक मायूस होकर घर बैठ गए। उस चुनाव में सपा के सत्ता से बाहर होने व 224 से 47 सीटों पर पहुंचने की तमाम वजहों में एक बड़ा कारण यह भी रहा।
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