कैथल डिपो में भेजी 12 खटारा बसें: कर्मियों में रोष, बोले- करनी होगी मरम्मत, यात्री होंगे परेशान

नरेंद्र सहारण, कैथल : Kaithal News: कैथल का रोडवेज डिपो हमेशा से ही यात्रियों की सुविधा और सेवा में अपनी भूमिका निभाता आया है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में ये डिपो कई चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिनमें से प्रमुख हैं पुरानी बसों की खराब स्थिति, तकनीकी बदलाव और सरकार की नई नीतियों का प्रभाव। हाल ही में कैथल डिपो को बीएस-4 तकनीक की 12 बसें पलवल जिले से भेजी गई हैं, जोकि पुरानी और जर्जर बसों की जगह लेने के लिए लाई गई हैं। इस खबर ने न केवल डिपो के कर्मचारियों और यात्रियों में चिंता पैदा कर दी है, बल्कि सरकार की नीतियों और परिवहन व्यवस्था पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।

पुरानी बसों का बोझ और नई बसों का आगमन

 

कैथल रोडवेज डिपो, जो अपने यात्रियों को विभिन्न मार्गों पर सेवा प्रदान करता है, वर्षों से कई समस्याओं से जूझ रहा है। इनमें सबसे प्रमुख समस्या है पुरानी बसों का जर्जर हालत में होना। ये बसें अक्सर खराब होने की वजह से यात्रियों को असुविधा का सामना करना पड़ता है। वर्ष 2014-15 के आसपास, जब नई बसें तकनीकी रूप से अपडेट हुईं, तो सरकार ने बीएस-6 तकनीक की करीब 90 नई बसें डिपो में शामिल कीं। इन बसों का उद्देश्य था कि कम जलवायु प्रदूषण और बेहतर यात्रियों की सुविधा प्रदान की जाए। लेकिन, करीब एक साल बाद ही, सरकार ने एनसीआर क्षेत्र में वायु प्रदूषण के नियंत्रण के नाम पर, कैथल डिपो से बीएस-6 बसें हटाकर उन्हें अन्य जिलों में भेज दिया। इसके बदले में, कैथल डिपो को नई बसें नहीं मिलीं, बल्कि 78 पुरानी बीएस-4 और बीएस-3 बसें एनसीआर क्षेत्रों को भेज दी गईं।

इन बसों का तकनीकी स्तर और हालत खराब होने के कारण यात्रियों को लंबी दूरी के रूटों पर यात्रा करने में कठिनाई का सामना करना पड़ा। जर्जर हालत में इन बसों की बॉडी तक क्षतिग्रस्त हो चुकी थी, और उनमें आवश्यक मरम्मत की आवश्यकता थी। इसके बावजूद, इन बसों को अभी भी डिपो में रखा गया है, क्योंकि नई बसें उपलब्ध नहीं हैं और सरकार की नई नीतियों के तहत इन बसों का अदला-बदली का खेल चलता रहा है।

नई बसों का आगमन

 

वर्ष 2024 की शुरुआत में, कैथल डिपो में बीएस-4 तकनीक की 12 नई बसें पलवल जिले से भेजी गईं। इन बसों का उद्देश्य था कि पुरानी बसों की जगह नए, अधिक टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल वाहनों का प्रयोग किया जाए। लेकिन इन बसों के आगमन के साथ ही नई समस्याएं भी खड़ी हो गई हैं।

सबसे पहली समस्या है कि ये बसें जो कि पलवल से लाई गई हैं, जर्जर हालत में हैं। इन बसों की मरम्मत और फिटनेस जांच में समय लगेगा, और इस प्रक्रिया में लागत भी बढ़ेगी। कार्यशाला में काम कर रहे कर्मचारियों ने बताया कि इन बसों को पूरी तरह से ठीक करने में कम से कम एक से डेढ़ महीना का समय लगेगा। इसके अलावा इन बसों की स्थिति इतनी खराब है कि इन्हें रूट पर चलाने योग्य नहीं माना जा सकता। इसलिए इन बसों को लेकर चिंता जताई जा रही है कि यात्रियों को लंबी दूरी की यात्रा में असुविधा हो सकती है, और यात्रियों की सुरक्षा का खतरा भी बढ़ सकता है।

कर्मचारियों का रोष और यात्रियों की सुरक्षा का सवाल

कैथल रोडवेज कर्मचारी यूनियन ने इन बसों की स्थिति को लेकर गंभीर चिंता जताई है। यूनियन के सदस्य कहते हैं कि पुरानी और जर्जर बसें यात्रियों के साथ धोखा हैं और इनसे यात्रा करना खतरनाक हो सकता है। उन्होंने सरकार और डिपो प्रबंधन पर आरोप लगाया कि यात्रियों की सुरक्षा का पूरा ध्यान नहीं दिया जा रहा है।

यूनियन का कहना है कि इन बसों की हालत इतनी खराब है कि इनसे लंबी दूरी के रूटों पर चलाना खतरनाक है। जर्जर बॉडी, खराब इंजन और ब्रेक सिस्टम यात्रियों की जान को खतरे में डाल सकते हैं। साथ ही, इन बसों की मरम्मत में लगने वाला समय और खर्च डिपो पर अतिरिक्त बोझ बनता जा रहा है।

कर्मचारियों का यह भी आरोप है कि सरकार ने बीएस-6 तकनीक की बसों को एनसीआर क्षेत्रों में भेजकर कैथल जैसी कठिन जगहों पर पुराने वाहनों का उपयोग कर यात्रियों को जोखिम में डाल दिया है।

सरकार की नीतियों का असर और पर्यावरणीय पहलू

सरकार ने वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए बीएस-6 तकनीक को अनिवार्य किया है, जो कि अधिक पर्यावरण मित्र है। इन नई बसों का उद्देश्य था कि प्रदूषण में कमी आए और यात्रियों को बेहतर सेवा मिले। लेकिन, तकनीकी बदलाव और परिवहन व्यवस्था की जटिलताओं के कारण, कई जगह इन बसों का सही तरीके से संचालन नहीं हो पा रहा है।

कैथल में, जहां एनसीआर क्षेत्र में नहीं आता, वहां से इन नई बसों को हटा कर अन्य जिलों को भेज दिया गया है। सरकार का तर्क है कि यह कदम पर्यावरणीय मानकों को पूरा करने के लिए जरूरी है। लेकिन, दूसरी ओर, पुरानी बसों की खराब हालत और मरम्मत का लंबा समय, यात्रियों की सुरक्षा को खतरे में डाल रहा है।

यह स्थिति दिखाती है कि नीतियों और व्यवस्था में समन्वय का अभाव है, जिससे स्थानीय यात्रियों और कर्मचारियों दोनों को समस्या का सामना करना पड़ता है।

आगे का रास्ता: सुधार की दिशा में कदम

 

कैथल रोडवेज डिपो की वर्तमान स्थिति को देखते हुए, यह आवश्यक हो जाता है कि सरकार और संबंधित प्रबंधन जल्द से जल्द इस दिशा में सुधार करें।

सबसे जरूरी कदम हैं

 

पुरानी बसों की तत्काल मरम्मत और फिटनेस सुनिश्चित करना: ताकि यात्रियों को सुरक्षित और सुविधाजनक सेवा मिल सके।
नई बसों की जल्द से जल्द मरम्मत और परिचालन योग्य बनाना: ताकि पूरा बेड़ा ऑपरेशनल हो सके।
यात्रियों की सुरक्षा पर विशेष ध्यान देना: यात्रियों की सुरक्षा सर्वोपरि है, इसलिए जर्जर वाहनों का संचालन रोकना चाहिए।
सुनवाई और कर्मचारी समर्थन: कर्मचारियों की नाराजगी को समझते हुए उनके सुझावों को शामिल किया जाना चाहिए।
नीतियों का समन्वय और कार्यान्वयन: सरकार को चाहिए कि वह तकनीकी बदलाव और स्थानीय जरूरतों के बीच संतुलन बनाये।

परिवहन व्यवस्था में सुधार

 

कैथल डिपो में बीएस-4 बसों का आगमन और पुरानी बसों की स्थिति, दोनों ही दर्शाते हैं कि परिवहन व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता है। पुरानी बसों की जर्जर हालत यात्रियों की सुरक्षा के लिए खतरा बन चुकी है, और नई बसों की मरम्मत में लगने वाला समय और खर्च डिपो की वित्तीय स्थिति को प्रभावित कर रहा है।

सरकार और डिपो प्रशासन को चाहिए कि वे यात्रियों की सुरक्षा और सुविधा को प्राथमिकता दें। इसके साथ ही, तकनीकी बदलावों का सही तरीके से कार्यान्वयन सुनिश्चित करें, ताकि कैथल जैसे जिलों में यातायात व्यवस्था मजबूत और सुरक्षित बन सके। यात्रियों का भरोसा जीतने और बेहतर सेवा देने के लिए, इन चुनौतियों का समाधान तुरंत ढूंढना जरूरी है, ताकि भविष्य में कैथल रोडवेज डिपो एक बार फिर अपने यात्रियों की उम्मीदों पर खरा उतर सके।

कैथल में रोडवेज डिपो एक तो पहले ही खराब बसों की समस्या से जूझ रहा है। दूसरी ओर अब फिर से कैथल डिपो में बीएस 4 तकनीक की 12 कंडम बसें भेजी गई हैं। ये बसें पलवल जिले से भेजी गई है। पुरानी बसें होने के कारण इनको दिल्ली, चंडीगढ़ व एनसीआर क्षेत्र में नहीं भेजा जा सकता था। कैथल जिला एनसीआर में नहीं आता तो इस कारण इन बसों को कैथल भेजा गया है। जर्जर हालत की इन बसों के चलते यात्रियों को परेशानी उठानी पड़ सकती है।

मरम्मत में लगेगा समय

 

कार्यशाला में काम कर रहे कर्मचारी ने बताया कि इन बसों की मरम्मत करने में समय लगेगा। इसके साथ ही डिपो पर खर्च का भार बढ़ जाएगा। बता दें कि आठ महीने पहले भी 48 खस्ताहाल बसों को एनसीआर क्षेत्रों से कैथल डिपो में भेजा गया था। अब इन बसों के आने से स्थिति और बिगड़ गई है। 10 वर्ष के लंबे अंतराल के बाद 2023 में बीएस-6 तकनीक की करीब 90 बसें आई थी। इसके करीब एक साल बाद ही वर्ष 2024 में सरकार ने वायु प्रदूषण नियंत्रण के नाम पर कैथल डिपो से बीएस-6 तकनीक की 78 बसें एनसीआर क्षेत्र के लिए भेज दी थीं। बदले में मिली बीएस-3 और बीएस-4 तकनीक की 48 पुरानी बसें, जिनकी मरम्मत में एक से डेढ़ महीना लग गया था।

कर्मचारियों में रोष

 

रोडवेज कर्मचारी यूनियन के सदस्यों ने इस फैसले पर रोष प्रकट करते हुए कहा कि बीएस-6 तकनीक की बसों के बदले बीएस-3 और बीएस-4 की पुरानी बसें भेजना सीधे-सीधे यात्रियों के साथ धोखा तो है ही, इसके साथ ही यात्रियों की जान भी जोखिम में डालने जैसा है। इन बसों से लंबे रूट पर चलने की उम्मीद नहीं की जा सकती। डिपो में आई बसों की हालत बेहद खराब है। यहां तक कि उनकी बॉडी तक जर्जर है।

कैथल डिपो में वर्कशॉप प्रबंधक अनिल ने बताया कि सरकार के निर्देशानुसार एनसीआर क्षेत्र में बीएस 6 तकनीक की बसों के संचालन के लिए कमेटी बनी है। उसी के आदेशों पर यह अदला-बदली की जा रही है। कैथल जिला एनसीआर में नहीं आता, इसलिए यहां से बीएस-6 बसें हटाकर अन्य जिलों को दी गई हैं।

You may have missed