हरियाणा में 30,000 नौकरियों पर संकट: रणदीप सुरजेवाला का खट्टर-सैनी सरकार पर तीखा हमला

नरेंद्र सहारण, चंडीगढ़: Haryana Politics: हरियाणा की राजनीति में एक बार फिर भूचाल आ गया है और इस बार केंद्र में है प्रदेश सरकार की बहुचर्चित ‘सोशियो-इकॉनोमिक क्राइटेरिया’ (सामाजिक-आर्थिक आधार) पर नौकरी देने की नीति, जिसे पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया है। इस फैसले के बाद से ही लगभग 30,000 सरकारी कर्मचारियों के भविष्य पर तलवार लटक गई है और विपक्ष विशेषकर कांग्रेस, इसे लेकर मनोहर लाल खट्टर और वर्तमान मुख्यमंत्री नायब सैनी की भाजपा सरकारों पर हमलावर है।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के महासचिव, राज्यसभा सांसद और हरियाणा के वरिष्ठ नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने चंडीगढ़ में प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए प्रदेश की भाजपा-जजपा (पूर्व गठबंधन) और अब भाजपा सरकार पर युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने का संगीन आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि ‘सोशियो-इकॉनोमिक नंबरों’ के ‘लॉलीपॉप’ से वोट तो बटोरे गए, परंतु हरियाणा के हजारों युवाओं के सपनों और उनके भविष्य की बेरहमी से हत्या कर दी गई। सुरजेवाला ने मौजूदा स्थिति को “भाजपा मस्त, भविष्य पस्त” के नारे से बयां करते हुए कहा कि हरियाणा के युवाओं को अब शायद ‘सरकारी नौकरी की आस’ ही छोड़ देनी चाहिए।
‘न पर्ची – न खर्ची’ का नारा: एक छलावा?
रणदीप सुरजेवाला ने भाजपा सरकार के उस बहुप्रचारित नारे पर भी कड़ा प्रहार किया जिसमें ‘बिना पर्ची-बिना खर्ची’ यानी बिना किसी सिफारिश या रिश्वत के केवल मेरिट पर नौकरी देने का दावा किया जाता था। उन्होंने इसे एक “षडयंत्रकारी व झूठा नारा” करार देते हुए कहा कि मेरिट पर नौकरी लगाने की डींगें हांककर भाजपा ने बड़ी-बड़ी बातें तो कीं, लेकिन धरातल पर युवाओं के लिए कुछ ठोस नहीं किया, बल्कि उनकी मुश्किलें और बढ़ा दीं।
उन्होंने याद दिलाया कि 11 जून, 2019 को तत्कालीन खट्टर सरकार ने ग्रुप सी व ग्रुप डी की नौकरियों में सामाजिक-आर्थिक आधार पर अतिरिक्त 5 या 10 अंक देने की एक नीति बनाई थी। इस नीति का जमकर प्रचार-प्रसार किया गया, खूब वाहवाही लूटी गई और हरियाणा के युवाओं को ‘निष्पक्ष मेरिट पर नौकरी’ के सब्जबाग दिखाकर साल 2019 के विधानसभा चुनावों और फिर 2024 के चुनावों (संभावित लोकसभा व विधानसभा) में सत्ता हथियाने का मार्ग प्रशस्त किया गया। सरकार ने यह भी वादा किया था कि ग्रुप सी व ग्रुप डी की पारदर्शी भर्तियों के लिए साल में दो बार कॉमन एलिजिबिलिटी टेस्ट (CET) आयोजित किया जाएगा और उसी के आधार पर नौकरियां दी जाएंगी।
CET का सच और नीति का हश्र
सुरजेवाला ने आंकड़ों और तथ्यों के साथ सरकार के दावों की पोल खोलते हुए कहा कि जो हुआ, वह वादों के ठीक विपरीत था।
सोशियो-इकॉनोमिक नीति असंवैधानिक घोषित: जिस सोशियो-इकॉनोमिक आधार और अतिरिक्त अंक देने की नीति को सरकार अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि बताती थी, उसे पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने पूरी तरह से “असंवैधानिक” ठहराते हुए खारिज कर दिया। यह सरकार की नीतिगत विफलता और कानूनी समझ की कमी का जीता-जागता प्रमाण है।
CET परीक्षा का मखौल: पांच साल (2021 से 2025 के बीच) में 10 बार CET (यानी साल में दो बार) आयोजित करवाने के वादे के विपरीत, सरकार बमुश्किल केवल एक बार ही CET परीक्षा करवा पाई, वह भी 5 और 6 नवंबर, 2022 को। और विडंबना देखिए, इस इकलौती CET परीक्षा को भी विभिन्न कानूनी खामियों के चलते अदालत ने अंततः गलत पाकर खारिज कर दिया। यह दर्शाता है कि सरकार भर्ती प्रक्रिया को सुचारू और पारदर्शी बनाने में पूरी तरह विफल रही है।
30,000 से अधिक नौकरियों पर लटकती तलवार
रणदीप सुरजेवाला ने पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट की खंडपीठ द्वारा 24 अप्रैल, 2025 को दिए गए ऐतिहासिक फैसले का हवाला देते हुए गंभीर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि इस निर्णय के बाद साल 2019 से लेकर अब तक (यानी 2025 तक) विभिन्न सरकारी विभागों में भर्ती हुए 30,000 से अधिक पक्के कर्मचारियों की नौकरियां सीधे तौर पर खतरे में आ गई हैं। इन कर्मचारियों ने अपनी पिछली नौकरियां छोड़कर, कर्ज लेकर या अन्य व्यवस्थाएं करके इन सरकारी नौकरियों को ज्वाइन किया था, और अब उनके पैरों तले जमीन खिसक गई है।
उन्होंने मुख्यमंत्री नायब सैनी की चुप्पी पर भी सवाल उठाए। सुरजेवाला ने कहा, “हाईकोर्ट का फैसला आए 48 घंटे से ज्यादा का समय बीत चुका है (प्रेस कॉन्फ्रेंस के समय के अनुसार), लेकिन मुख्यमंत्री नायब सैनी इन घबराए हुए और आशंकित कर्मचारियों को आश्वस्त करने के लिए एक शब्द भी नहीं बोल रहे हैं। पूरी सरकार ऐसे चुप है जैसे उन्हें सांप सूंघ गया हो। यह संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है।”
2019 से 2025 तक की भर्तियों का संकट
कांग्रेस नेता ने विस्तार से बताया कि किस प्रकार इन कर्मचारियों का भविष्य अंधकारमय हो गया है:
मेरिट का पुनर्मूल्यांकन: चूंकि सोशियो-इकॉनोमिक अंकों को रद्द कर दिया गया है, इसलिए अब इन सभी भर्तियों की मेरिट लिस्ट को दोबारा तैयार किया जाएगा। जिन कर्मचारियों को सोशियो-इकॉनोमिक अंकों का लाभ मिला था, उनके अंक कटने के बाद यदि वे नई मेरिट लिस्ट में स्थान नहीं बना पाते हैं, तो उनका चयन रद्द माना जाएगा।
“एडहॉक” कर्मचारी बनने का खतरा: हाईकोर्ट के निर्देशानुसार, ऐसे हटाए गए कर्मचारियों को, यदि वे पहले से कार्यरत हैं, तो नई रेगुलर पोस्ट आने तक “एडहॉक” (तदर्थ/कच्चे) कर्मचारी के रूप में रखा जा सकता है। इसका सीधा मतलब है कि उनकी 5 से 6 साल की “पक्की नौकरी” एक झटके में खत्म हो जाएगी।
सेवा लाभों पर कुठाराघात
वरिष्ठता और पदोन्नति: एडहॉक कर्मचारी के रूप में बिताई गई सेवा अवधि को नियमित सेवा में नहीं गिना जाएगा, जिससे उनकी वरिष्ठता प्रभावित होगी और भविष्य में होने वाली पदोन्नतियों के लिए वे अपात्र हो जाएंगे या पिछड़ जाएंगे।
वेतन वृद्धि (इंक्रीमेंट) और महंगाई भत्ता (DA): नियमित कर्मचारियों को मिलने वाले वार्षिक वेतन वृद्धि और महंगाई भत्ते के लाभों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
पेंशन: सबसे बड़ा सवाल उनकी पेंशन का है। यदि उनकी कई वर्षों की सेवा को नियमित नहीं माना जाता तो उनकी पेंशन या तो बनेगी ही नहीं, या बहुत कम बनेगी, जिससे उनका बुढ़ापा असुरक्षित हो जाएगा।
सुरजेवाला ने आक्रोश व्यक्त करते हुए कहा, “कसूर करें मनोहर लाल खट्टर और नायब सैनी, और भुगतें हरियाणा के ये बेकसूर युवा कर्मचारी! यह कैसा न्याय है?”
“एडहॉक” से “पक्के” तक का अनिश्चित सफर
उन्होंने आगे चिंता जताते हुए कहा कि जब हजारों पक्के कर्मचारी सालों की नौकरी के बाद अचानक “एडहॉक” कर्मचारी बन जाएंगे, तो वे तब तक पक्के नहीं हो सकते जब तक कि उनके कैडर में नई रेगुलर (नियमित) पोस्ट स्वीकृत होकर नहीं आतीं। इस प्रक्रिया में यदि कुछ और साल लग गए, तो उन कर्मचारियों की सालों की निष्ठावान सेवा, उनके प्रमोशन के अवसर, इंक्रीमेंट, भत्ते और पेंशन का क्या होगा? यह एक भयावह स्थिति है जो हजारों परिवारों को प्रभावित करेगी।
सुरजेवाला ने सरकार की संभावित कानूनी रणनीति पर भी सवाल उठाए। उन्होंने पूछा, “अगर नायब सैनी और उनकी सरकार पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट की खंडपीठ के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देती है, तो फिर उन हजारों पक्के कर्मचारियों का क्या होगा जो किसी वजह से रिवाइज्ड मेरिट लिस्ट में नहीं आ पाए और जिन्हें हाईकोर्ट द्वारा रेगुलर पोस्ट आने तक एडहॉक कर्मचारी बनाकर रखने का निर्देश दिया गया है? क्या सरकार उन्हें और लंबे समय तक कानूनी पचड़ों में उलझाकर रखना चाहती है?”
सुरजेवाला का समाधान: नई पोस्टें गठित करे सरकार
कांग्रेस महासचिव ने इस गंभीर संकट का एक ठोस और मानवीय समाधान भी सुझाया। उन्होंने कहा, “इस समस्या का एक ही तार्किक और न्यायसंगत हल है। मुख्यमंत्री नायब सैनी को तुरंत प्रभाव से इस प्रक्रिया में अपनी नौकरी खोने वाले सभी हजारों कर्मचारियों के लिए नई (सुपरन्यूमरेरी) पोस्टें गठित करनी चाहिए, ताकि सबकी पक्की नौकरी बची रहे और उनके परिवारों को सड़क पर आने से बचाया जा सके।”
उन्होंने मांग की कि सरकार इसके लिए तुरंत वित्त विभाग से मंजूरी ले और आवश्यक बजट का आवंटन करे। लेकिन, उन्होंने खेद व्यक्त किया कि मुख्यमंत्री नायब सैनी इस संवेदनशील मुद्दे पर एक शब्द भी नहीं बोल रहे हैं और उल्टा पूरे मामले को सुप्रीम कोर्ट में अपील के चक्कर में उलझाने की कवायद करते दिख रहे हैं।
सुरजेवाला ने ‘सुकृति मलिक बनाम हरियाणा सरकार’ के मामले का भी जिक्र किया, जिसमें सोशियो-इकॉनोमिक नंबरों को रद्द करने के हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ हरियाणा सरकार की अपील को सुप्रीम कोर्ट पहले ही खारिज कर चुका है। उन्होंने पूछा, “जब एक समान मामले में सुप्रीम कोर्ट सरकार की दलीलों को नकार चुका है, तो फिर मुख्यमंत्री दोबारा इस पूरे मामले को सुप्रीम कोर्ट में उलझाकर इन हजारों युवाओं का और अधिक शोषण करने तथा समय बर्बाद करने की बात क्यों कर रहे हैं? क्या यह केवल अपनी गलती पर पर्दा डालने और झूठी प्रतिष्ठा बचाने का प्रयास है?”
युवाओं के भविष्य पर गंभीर प्रश्नचिह्न
रणदीप सुरजेवाला की प्रेस कॉन्फ्रेंस ने हरियाणा में सरकारी नौकरियों की चयन प्रक्रिया, सरकारी नीतियों की स्थिरता और युवाओं के भविष्य से जुड़े कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। 30,000 कर्मचारियों और उनके परिवारों का भविष्य दांव पर है। यह देखना होगा कि नायब सैनी सरकार इस अभूतपूर्व संकट से कैसे निपटती है – क्या वह हठधर्मिता दिखाते हुए कानूनी लड़ाई को लंबा खींचेगी, या फिर मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हुए प्रभावित कर्मचारियों के हितों की रक्षा के लिए कोई ठोस कदम उठाएगी। फिलहाल, हरियाणा के हजारों युवा कर्मचारी और उनके परिजन सरकार के अगले कदम का बेसब्री और भारी आशंका के साथ इंतजार कर रहे हैं, और उनकी निगाहें न्यायपालिका पर भी टिकी हैं कि उन्हें इस अनिश्चितता के भंवर से कब और कैसे राहत मिलेगी। यह प्रकरण हरियाणा सरकार की शासन क्षमता और युवा कल्याण के प्रति उसकी प्रतिबद्धता की भी एक बड़ी परीक्षा है।