Harayana Politics: हरियाणा में भाजपा- जजपा का गठबंधन टूटना कहीं रणनीति का हिस्सा तो नहीं, जानें कैसे होगा कांग्रेस को नुकसान

नरेन्द्र सहारण, चंडीगढ़: हरियाणा में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और जननायक जनता पार्टी (जजपा) का साढ़े चार साल पुराना गठबंधन टूटना अचानक हुआ राजनीतिक घटनाक्रम है या एक बड़ी रणनीति का हिस्सा, इस पर राजनीतिक बहस शुरू हो गई है। ऐसा माना जा रहा है कि जजपा के अलग होने के बाद भाजपा को लोकसभा चुनाव में फायदा मिलेगा और पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में चुनाव लड़ रही कांग्रेस के वोट बैंक में बिखराव होगा। राजनीतिक गलियारों में गठबंधन टूटने के इस घटनाक्रम को इस तरह भी लिया जा रहा है कि जजपा का राजनीतिक आधार खिसक चुका है, इसलिए भाजपा के रणनीतिकार इसके साथ और ज्यादा लंबा चलने को पार्टी के लिए नुकसान मान रहे थे।

रविंद्र राजू ने बीएल संतोष को सौंपी थी रिपोर्ट

 

वैसे भी भाजपा के मंडल स्तर के कार्यकर्ताओं की एक रिपोर्ट डेढ़ वर्ष पूर्व तत्कालीन प्रदेश संगठन मंत्री रविंद्र राजू ने राष्ट्रीय संगठन मंत्री बीएल संतोष को सौंपी थी। इसमें मंडल स्तर के कार्यकर्ताओं की तरफ से एक स्वर में कहा गया था कि राज्य में भाजपा या मुख्यमंत्री मनोहर लाल के खिलाफ जनता में कोई खिलाफत नहीं है। कार्यकर्ता और जनभावना तो जजपा के तथाकथित भ्रष्टाचार से दुखी है। इस रिपोर्ट के बाद से ही भाजपा में यह माना जा रहा था कि दोनों दलों का गठबंधन कभी भी टूट सकता है।

सबसे अधिक दुविधा चौधरी बीरेंद्र सिंह के सामने खड़ी हुई

रही सही कसर भाजपा नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह ने पूरी कर दी थी। बीरेंद्र सिंह बार-बार भाजपा पर दबाव बना रहे थे कि जजपा के साथ गठबंधन को तोड़ा जाना चाहिए। जब उनकी बात समय से नहीं मानी गई तो उन्होंने अपने सांसद बेटे बृजेंद्र सिंह को भाजपा छुड़वाकर कांग्रेस में शामिल करा दिया। हालांकि बीरेंद्र सिंह अभी स्वयं भाजपा में हैं, लेकिन भाजपा व जजपा का गठबंधन बृजेंद्र सिंह के कांग्रेस ज्वाइन करने के बाद टूटने से उनके राजनीतिक अरमानों को कड़ा धक्का पहुंचा है। राजनीतिक गलियारों में यह भी चर्चा है कि बीरेंद्र सिंह अब शायद ही कांग्रेस में जाएं। यदि बृजेंद्र कुछ दिन और भाजपा में टिके रहते तो उन्हें बिना कांग्रेस में जाए अपनी इच्छा पूरी होने का सुफल प्राप्त हो जाता, मगर अब बृजेंद्र सिंह की दुविधा व संकट दोनों बढ़ गए हैं।

गठबंधन टूटने को लेकर कांग्रेस चिंतित

लोकसभा चुनाव से ठीक पहले गठबंधन टूटने को लेकर कांग्रेस भी चिंतित नजर आ रही है। दिल्ली में पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने तो साफतौर पर कहा कि 2019 में भाजपा-जजपा गठबंधन स्वार्थ की राजनीति पूरा करने के लिए हुआ था। अन्यथा 2019 के चुनाव में जहां भाजपा ने नारा दिया था कि अबकी बार 75 पार, यानी 90 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा को 75 से अधिक सीट मिलेंगी। इस राजनीतिक नारे का जजपा ने चुनाव में यह जवाब दिया था कि अबकी बार भाजपा जमना पार, यानी भाजपा कहीं नहीं टिकेगी। 2019 में भाजपा को 90 में से 40 सीट मिली और चुनाव के बाद भाजपा ने जजपा के 10 विधायकों के साथ गठबंधन में सरकार बनाई। अब एक बार फिर इन्होंने गठबंधन तोड़ने का समझौता किया है।

जाट वोट बैंक में होगा बिखराव

राज्य की राजनीति में गैर जाट वर्ग को भाजपा का जनाधार माना जाता है। इसके इतर पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में कांग्रेस, पूर्व सीएम ओमप्रकाश चौटाला के नेतृत्व वाली इंडियन नेशनल लोकदल और दुष्यंत चौटाला के नेतृत्व वाली जननायक जनता पार्टी को जाट वर्ग समर्थित पार्टी माना जाता है। ये तीनों ही दल भाजपा के सामने अलग चुनाव लड़ेंगे। ऐसे में राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा आम हो गई है कि भाजपा-जजपा गठबंधन टूटने से जाट वोट बैंक में बिखराव होगा और भाजपा को फायदा होगा।

 

भारत न्यू मीडिया पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज, Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट , धर्म-अध्यात्म और स्‍पेशल स्‍टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। National News in Hindi  के लिए क्लिक करें इंडिया सेक्‍शन

You may have missed