Kisan Andolan: किसानों का विरोध बना भाजपा के लिए सिरदर्द, इससे निपटने के लिए पार्टी ने बनाई रणनीति

नरेन्द्र सहारण, चंडीगढ़ : Kisan Andolan: हरियाणा और पंजाब में कृषि मुद्दों को लेकर विरोध का सामना कर रही भाजपा अब सिर्फ किसानों को मनाएगी। वह किसान संगठनों के नेताओं से बात नहीं करेगी। पंजाब में शिरोमणि अकाली दल (शिअद) से गठबंधन टूटने के बाद राज्य में पहली बार अकेले लोकसभा चुनाव लड़ रही भाजपा अभी तक नौ उम्मीदवारों को मैदान में उतार चुकी है। भाजपा को हरियाणा और पंजाब में लगभग हर सीट पर किसान संगठनों के नेताओं के विरोध का सामना करना पड़ रहा है। भाजपा प्रत्याशी जहां पर भी जा रहे हैं, किसान नेता काली झंडियां लेकर वहां पहुंच जा रहे हैं। इससे प्रत्याशियों के चेहरे पर शिकन तो है, लेकिन पार्टी ने अब इन्हीं परिस्थितियों में चुनाव लड़ने का मन बना लिया है। इसका मुख्य कारण विरोध के कारण आम लोगों से भाजपा को मिल रही सहानुभूति भी है।

किसान संगठनों को नहीं मिल रहा बड़ा समर्थन

पार्टी को लगता है कि किसान संगठनों के नेता राजनीति कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि खनौरी और शंभू बार्डर पर फरवरी से बैठे किसान संगठनों को इस बार वह समर्थन नहीं मिला, जोकि 2020 में तीन कृषि सुधार कानूनों के खिलाफ मिला था। उस समय पूरा राज्य किसानों के साथ खड़ा था, जबकि इस बार मात्र दो संगठन ही अपनी मांगों को लेकर सामने आए। इन संगठनों को संयुक्त किसान मोर्चा का भी समर्थन नहीं मिला।

भाजपा का ‘पीड़ित कार्ड’ खेलने का निर्णय

वहीं, किसान संगठनों के विरोध के बीच भाजपा ने ‘पीड़ित कार्ड’ खेलने का निर्णय लिया है। चूंकि, किसान संगठन केवल भाजपा के प्रत्याशियों का विरोध कर रहे हैं। इस कारण शहर और गांव का भी एक वर्ग भाजपा से सहानुभूति रखने लगा है। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि राज्य का किसान कभी भी भाजपा का मतदाता नहीं था। गठबंधन में ग्रामीण क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व शिअद ही करता था। वहीं, सूत्र बताते हैं कि किसान संगठनों के विरोध के कारण गांव-गांव में एक वर्ग छिटक कर भाजपा के प्रति सहानुभूति भी रखता है। वहीं, शहरी मतदाताओं में भी भाजपा के पक्ष में एकजुटता होने के पार्टी को संकेत मिल रहे हैं।

भाजपा के पंजाब के अध्यक्ष सुनील जाखड़ का कहना है कि किसानों की जो मांगें हैं, उनमें एक नहीं, बल्कि कई क्षेत्र जुड़े हुए हैं। ये ऐसी मांगें नहीं हैं, जिन्हें एक व्यक्ति पूरा कर दे। इस पर गंभीरता से कई कोणों से मंथन करना जरूरी है। इसको लेकर किसानों के साथ बातचीत की जाएगी।

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