दिल्ली हाई कोर्ट ने जताई चिंता, कहा- लड़कियों को पढ़ाई छोड़ने के लिए मजबूर करना समाज के लिए बड़ा आघात

नई दिल्ली : दिल्ली हाई कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान इस बात पर चिंता जताई कि शादी की आड़ में यौन उत्पीड़न कर लड़कियों को पढ़ाई छोड़ने के लिए मजबूर किया जाता है। उन्हें करियर बनाने के अवसर से वंचित किया जाता है, जो न केवल एक व्यक्ति साथ, बल्कि पूरे समाज के लिए गहरा आघात है।

दुष्कर्म और पाक्सो के तहत दोषी युवक को राहत देने से इन्कार

कोर्ट में पेश किए गए मामले में मोहम्मद तस्लीम अली को 14 वर्षीय लड़की के अपहरण व दुष्कर्म के लिए निचली अदालत ने दोषी करार देते हुए 10 साल के कारावास की सजा सुनाई थी। इसके खिलाफ तस्लीम ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा की पीठ ने कहा कि पूरे प्रकरण में परेशान करने वाला तथ्य यह है कि दोषी अपीलकर्ता ने नाबालिग पीड़िता को पढ़ाई छोड़ने, अपने साथ भागने और शादी करने के लिए राजी किया, जबकि वह शादीशुदा और दो बच्चों का पिता था। यह बेहद चिंताजनक है कि लड़की को अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी।

पढ़ाई छोड़ने के लिए मजबूर करने वाली घटनाओं से टूटती है शिक्षा की डोर

पीठ ने कहा कि महिलाओं के सशक्तीकरण से संबंधित चर्चाओं में शिक्षा को एक मौलिक स्तंभ के रूप में मान्यता दी गई है। सामाजिक प्रगति के लिए शिक्षा एक डोर के रूप में कार्य करती है और पढ़ाई छोड़ने के लिए मजबूर करने वाली ऐसी घटनाओं से यह डोर टूट जाती है। इस तरह की घटनाएं के परिणाम व्यक्तिगत के साथ ही सामाजिक स्तर पर भी पड़ते हैं।

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