Assembly Election 2023: अमित शाह को यूं ही नहीं कहा जाता चुनावी राजनीति का चाणक्य, जानें कैसे दो महीने में ही पलटी बाजी

नई दिल्ली, बीएनएम न्यूज। गृह मंत्री अमित शाह को यूं ही चुनावी राजनीति का चाणक्य नहीं कहा जाता। 2014 के लोकसभा चुनाव में वह उत्तर प्रदेश के प्रभारी बने थे, उन्होंने नामुमकिन से माने जाने लक्ष्य को हासिल करते हुए भाजपा को उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 71 सीटें दिलाई थीं। एक बार फिर अमित शाह की मेहनत, सधी हुई राजनीति और नेतृत्व का ही कमाल है कि छत्तीसगढ़ में निरुत्साहित भाजपा संगठन और मध्य प्रदेश में अंदरूनी कलह से जूझ रही भाजपा इस बार सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन तक पहुंच गई। यहां पर भाजपा को लगभग हारा हुआ मान लिया गया था। उन्होंने छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में ही दो महीने में ही भाजपा स्थिति एकदम उलट दी और पार्टी को बंपर जीत दिलाई।

शाह ने खुद चुना था छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश जैसा कठिन राज्य

 

अमित शाह ने एक अक्टूबर के आसपास मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनावी सक्रियता बढ़ाई। यही वह समय था जब पार्टी ने एक-एक सीट के लिए अलग-अलग रणनीति और प्रत्याशियों के चयन का सिलसिला शुरू किया। शाह की रणनीति थी कि मध्य प्रदेश में बड़े नेताओं को भी मैदान में उतारा जाए। काफी वक्त पहले कई सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा भी उनकी रणनीति का हिस्सा था। मध्य प्रदेश से एकदम अलग परिस्थितियों में छत्तीसगढ़ का नतीजा अपने नैरेटिव पर लड़ाई को मोड़ने, सटीक टाइमिंग और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अपील के भरपूर इस्तेमाल की देन है। इसका समग्र प्रभाव यह हुआ कि तीनों ही राज्यों में उसके सामने टक्कर में खड़ी कांग्रेस का मध्य प्रदेश में मनोबल टूट गया, छत्तीसगढ़ में वह सन्न रह गई और राजस्थान में देखते-देखते बाजी हाथ से फिसलते देखती रही।

दो महीने में ही बदल दिया नैरेटिव, स्थिति एकदम उलट दी

 

दो महीने पहले मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के हालात कदम भिन्न थे। एक जगह (छत्तीसगढ़ में) नेतृत्व के अभाव का संकट था तो दूसरे राज्य में नेतृत्व के अलावा बने कई गुट। यहां तक कि छत्तीसगढ़ के कई जिलों में उठतीं अलग-अलग आवाजों ने पार्टी की मुश्किल बढ़ा दी थी। इससे निपटने के लिए शाह ने गहरी राजनीतिक समझ, परिपक्वता और साहस दिखाया। छत्तीसगढ़ में सामूहिक नेतृत्व के अलावा पार्टी के लोगों में जीत का भरोसा भरा गया, जबकि एमपी में शिवराज सिंह चौहान सरीखे नेता को एक बल्लेबाज की तरह खेलने के लिए कहा गया। कमान प्रधानमंत्री ने संभाली और उनकी गारंटियों के बाद किसी को किसी बात पर संदेह नहीं रहा। मध्य प्रदेश का मैदान भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा की निगरानी के साथ ही केंद्रीय मंत्रियों भूपेन्द्र यादव व अश्विनी वैष्णव और संगठन मंत्री शिव प्रकाश की रात-दिन की मेहनत से जीता गया। वैष्णव, यादव और शिवप्रकाश लगातार एमपी में डटे रहे। जबकि छत्तीसगढ़ में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया लगभग दो महीने तक डटे रहे। इस दौरान और मंत्रियों को भी जिम्मदारी सौंपी गई।

शाह ने 22 दिन में 84 कार्यक्रम किए

शाह ने लगातार छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश की स्थिति का जायजा लिया। इस दौरान बूथ स्तर से लेकर भोपाल तक कार्यकर्ताओं में यह विश्वास पैदा किया कि भाजपा फिर से सरकार बना सकती है। सभी लोगों को मैदान में उतारा और खुद भी कई दर्जन रैलियां और रोड शो किए। अमित शाह ने इन राज्यों में पिछले दो महीने में 22 दिन में 84 कार्यक्रम किए। यानी हर लगभग हर तीसरे दिन वह किसी न किसी चुनावी राज्य में थे और हर रोज लगभग चार कार्यक्रम कर रहे थे। यही कारण है कि पार्टी दोनों राज्यों में फिर से जीतने में सफल रही।

2018 में भाजपा की हार से लिया सबक

इसके अलावा दोनों राज्यों में 2018 में भाजपा की हार की बड़ी वजह आदिवासी सीटों पर मिली पराजय भी मानी जाती थी। यही वजह है कि भाजपा ने गुजरात से लगे सीमावर्ती क्षेत्रों में गुजरात के आदिवासी नेता और कार्यकर्ताओं को चुनाव प्रबंधन में लगाया था। गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में एसटी वर्ग के लिए 47 सीटें सुरक्षित हैं, जिनमें भाजपा को 25 सीटें मिलीं। पिछले चुनाव में यह संख्या 16 थी।

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