हाई कोर्ट ने कहा, महिलाओं को स्वतंत्रता से जीने का अधिकार, कोई भी उस पर अपनी इच्छा नहीं थोप सकता

नरेन्द्र सहारण, चंडीगढ़ : पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट (Punjab and Haryana High Court) ने कहा कि महिलाओं को स्वतंत्रता से जीने का अधिकार है। कोई भी उस पर अपनी इच्छा नहीं थोप सकता है। यह समानता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का सीधा उल्लंघन है। कोर्ट की भूमिका सामाजिक मानदंडों या नैतिकता को लागू करना नहीं है, बल्कि संवैधानिक नैतिकता के सिद्धांतों को बनाए रखना है। जस्टिस मंजरी नेहरू कौल ने मोहाली निवासी एक पिता द्वारा अपनी बेटी को एक व्यक्ति की कथित कैद से मुक्त कराने के लिए दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।

तीस वर्षीय महिला ने हाई कोर्ट को बताया कि वह अपनी इच्छा से स्वतंत्र रूप से रह रही है। वह न तो अपने पिता के घर लौटना चाहती है और न ही पति के घर। पिता की तरफ से पेश वकील ने दलील दी कि महिला के प्रति सामाजिक चिंताओं और उसके स्वतंत्र रूप से रहने के संभावित परिणामों को ध्यान में रखते हुए उसकी कस्टडी उसके पिता को सौंपी जानी चाहिए।

इस पर जस्टिस कौल ने कहा कि व्यस्क महिला अपने फैसले लेने में सक्षम है। उसने स्वतंत्र रूप से रहने की स्पष्ट इच्छा व्यक्त की है तो यह कोर्ट उसकी इच्छा को खारिज नहीं कर सकता है। कोर्ट किसी वयस्क को दूसरे के पास लौटने के लिए मजबूर नहीं कर सकता है। भले ही वह व्यक्ति एक नेक दिल माता-पिता हो। इस मामले में हाई कोर्ट ने पहले पुलिस को महिला का बयान चंडीगढ़ के चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज कराने को कहा था और उसे सुरक्षा देने का आदेश दिया था। महिला ने अपने बयान में कहा कि वह जहां रह रही है, वहां सुरक्षित है और अपने पिता के घर जाना नहीं चाहती। महिला के दो बच्चे हैं। उसने कहा कि वह शारीरिक हिंसा के कारण अपने बच्चों व पति को छोड़कर पिता के घर आ गई थी, जहां भाई उसे पीटते थे। वह पिता का घर छोड़कर जीरकपुर एक अन्य पुरुष के पास आ गई।

 

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