DAP fertilizer Crisis: देश में बनी हुई है डीएपी की किल्लत, इस कारण से बढ़ गया संकट

नरेन्द्र सहारण, नई दिल्ली/चंडीगढ़। रबी फसलों की बुआई के इस मौसम में किसानों को उर्वरक डीएपी (डाय-अमोनियम फॉस्फेट) की कमी का संकट गहराता नजर आ रहा है। गेहूं और अन्य रबी फसलों की खेती के लिए डीएपी की महत्वपूर्ण भूमिका है, और देश में हर साल रबी और खरीफ दोनों मौसमों में लगभग 90 से 100 लाख टन डीएपी की आवश्यकता होती है। हालांकि, घरेलू उत्पादन केवल 40 प्रतिशत जरूरत को पूरा करता है, जिससे बाकी 60 प्रतिशत हिस्सा दूसरे देशों से आयात करना पड़ता है। इस वर्ष कुल 93 लाख टन डीएपी की जरूरत आंकी गई है, जबकि उत्पादन और आयात मिलाकर लगभग 75 लाख टन डीएपी उपलब्ध हो पाएगा, जिससे किसानों के लिए संकट की स्थिति बन गई है। बावजूद इसके, केंद्र सरकार ने किसानों को विश्वास दिलाया है कि उर्वरकों की कमी नहीं होने दी जाएगी और नैनो डीएपी जैसे नए विकल्पों पर जोर दिया जा रहा है।
डीएपी पर आयात निर्भरता और आपूर्ति की स्थिति
रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के मुताबिक, डीएपी के कच्चे माल के आयात में देश की निर्भरता काफी हद तक रूस, जॉर्डन और इजराइल जैसे देशों पर है। म्यूरेट ऑफ पोटाश (एमओपी) जैसे कच्चे माल का लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा जॉर्डन और 15 प्रतिशत इजराइल से आता है। हालांकि, हाल में हूती विद्रोहियों के हमलों के चलते उर्वरक जहाजों को दक्षिण अफ्रीका के रास्ते आना पड़ रहा है, जिससे दूरी 6500 किलोमीटर बढ़ गई है और अतिरिक्त तीन सप्ताह का समय लग रहा है। इससे उर्वरकों की आयात लागत बढ़ गई है और अंतरराष्ट्रीय कीमतें भी प्रभावित हुई हैं। इन चुनौतियों के बावजूद सरकार ने किसानों को रियायती दर पर डीएपी उपलब्ध कराते हुए इसकी कीमत को भी स्थिर रखा है। वर्तमान में किसानों को प्रत्येक 50 किलोग्राम डीएपी के बैग के लिए 1350 रुपये का भुगतान करना पड़ता है।
डीएपी का बढ़ता आयात और घरेलू उत्पादन
डीएपी की मांग को पूरा करने के लिए पिछले कुछ वर्षों में इसका आयात तेजी से बढ़ा है। वर्ष 2019-20 में 48.70 लाख टन डीएपी का आयात हुआ था, जो कि 2023-24 में बढ़कर 55.67 लाख टन तक पहुंच गया। वहीं, घरेलू उत्पादन में भी वृद्धि देखी गई है, लेकिन अभी यह जरूरत से कम है। 2023-24 में डीएपी का घरेलू उत्पादन 42.93 लाख टन था, जो कुल आवश्यकता का सिर्फ एक हिस्सा है। ऐसे में उर्वरक संकट से निपटने के लिए आयात का सहारा लेना अनिवार्य हो गया है।
पंजाब और हरियाणा में डीएपी की अधिक मांग
पंजाब और हरियाणा में डीएपी की मांग अधिक हो गई है, क्योंकि यहां रबी फसलों की बुआई पहले ही शुरू हो चुकी है। अन्य राज्यों में धान की कटाई अभी जारी है, जिससे वहां डीएपी की मांग कुछ समय बाद बढ़ने की संभावना है। मध्य नवंबर और दिसंबर से अन्य राज्यों में भी डीएपी की मांग बढ़ने की उम्मीद है। रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय ने पंजाब में डीएपी की कमी के आरोपों को खारिज करते हुए आंकड़े पेश किए हैं। मंत्रालय के अनुसार, अक्टूबर में पंजाब को 92 हजार टन डीएपी और 18 हजार टन एनपीके की आपूर्ति की गई है। इसके अतिरिक्त नवंबर के पहले सप्ताह में भी केंद्र सरकार ने 50 हजार टन डीएपी भेजने का वादा किया है। इसी तरह हरियाणा के लिए भी केंद्र ने सितंबर में 64,708 टन डीएपी की आपूर्ति की, जो उनकी मांग से अधिक थी।
सरकार का आश्वासन और नैनो डीएपी का विकल्प
डीएपी संकट के बीच केंद्र सरकार ने किसानों को यह भरोसा दिलाया है कि उर्वरकों की कमी नहीं होने दी जाएगी। सरकार ने नैनो डीएपी के इस्तेमाल पर भी ध्यान दिया है, जो सामान्य डीएपी का एक तरल संस्करण है और कम मात्रा में प्रभावी होता है। नैनो डीएपी का इस्तेमाल उर्वरक की कमी के संकट को दूर करने में सहायक हो सकता है, क्योंकि यह फसल की जरूरत के अनुसार पौधों को पोषक तत्व प्रदान करता है और परंपरागत डीएपी की तुलना में कम मात्रा में काम आता है। यह उर्वरक संकट के बीच एक संभावित समाधान के रूप में उभर रहा है, जिससे किसानों को राहत मिल सकती है।
भविष्य की चुनौतियां और समाधान की दिशा
डीएपी की मौजूदा कमी से यह स्पष्ट है कि भारत को घरेलू उत्पादन बढ़ाने के साथ-साथ उर्वरकों के आयात में विविधता लाने की आवश्यकता है। मौजूदा परिस्थिति में भारत की निर्भरता रूस, जॉर्डन और इजराइल जैसे कुछ ही देशों पर अधिक है। ऐसे में सरकार को अन्य देशों से भी कच्चे माल का स्रोत विकसित करना होगा और उर्वरकों के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना होगा। कृषि के आधुनिकीकरण और उच्च उत्पादकता दर को देखते हुए, उर्वरकों की मांग भविष्य में और बढ़ सकती है। ऐसे में सरकार को आत्मनिर्भरता की दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है, जिससे आयात निर्भरता कम हो और किसानों को समय पर उर्वरक मिल सकें।
कुल मिलाकर डीएपी संकट के बावजूद केंद्र सरकार किसानों को राहत देने के लिए प्रयासरत है। हालांकि, इस संकट को दूर करने के लिए दीर्घकालिक उपाय अपनाने की आवश्यकता है ताकि भविष्य में उर्वरकों की कमी न हो और देश की कृषि व्यवस्था स्थिर बनी रहे।
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