जौनपुर के अटाला देवी मंदिर मामले की पोषणीयता पर अगली सुनवाई अब 27 फरवरी को होगी, जानें-विवाद की वजह

जौनपुर, बीएनएम न्यूजः जौनपुर के अटाला देवी मंदिर मामले को पोषणीयता व क्षेत्राधिकार के मामले में शुक्रवार को अदालत में सुनवाई नहीं हो सकी। मामले में वादी आगरा के वकील अजय प्रताप सिंह के उपस्थित न होने पर सिविल जज (सीनियर डिवीजन) अनुज जौहर की अदालत ने सुनवाई की अगली तारीख 27 फरवरी दी है।

सिविल जज (सीनियर डिवीजन)की अदालत ने मामले की पोषणीयता और सुनवाई के क्षेत्राधिकार पर सुनवाई करते हुए वादी पक्ष को मोहल्ला रिजवी खां और आसपास सहने वाले सभी लोगों को इस मामले में हितबद्ध मानते हुए विज्ञापन के माध्यम से सार्वजनिक नोटिस और मुनादी कराने का आदेश दिया था। वादी पक्ष की ओर से सार्वजनिक नोटिस और मुनादी कराकर पत्रावली कोर्ट में दाखिल किया जा चुका है।

‘अटाला मस्जिद वास्तव में अटला देवी का मंदिर’

अजय प्रताप सिंह और अन्य की ओर से मई 2024 में अदालत में प्रार्थना पत्र देकर पुराणों और इतिहास का हवाला देते हुए दावा किया गया था कि अटाला मस्जिद वास्तव में अटाला देवी का मंदिर है। इसलिए वहां नमाजियों का प्रवेश प्रतिबंधित करते हुए हिंदुओं को पूजा-पाठ का अधिकार दिया जाए। उनका कहना है कि मंदिर का निर्माण कन्नौज के राजा जयचंद राठौर ने कराया था।

अटाला मस्जिद की जमीन जामा मस्जिद के नाम

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) की रिपोर्ट में भी अटाला देवी मंदिर की तस्वीरों में शंख, त्रिशूल, षट्दल कमल, गुड़हल के फूल, बंधन बार आदि स्पष्ट दिखाई देते हैं, जो हिंदू शिल्पकला है। अटाला मस्जिद की जमीन राजस्व अभिलेखों में जामा मस्जिद के नाम दर्ज है, जिसकी वर्तमान मालिक केंद्र सरकार है।

आटाला मस्जिद का आत नहीं हुआ सर्वे

अटाला मस्जिद का वक्फ एक्ट 1995 की धारा 4 के अनुसार आज तक सर्वे नहीं हुआ है।उनके केस में वक्फ कानून लागू नहीं होता है। अटाला मस्जिद एएसआइ के अधीन संरक्षित स्मारक है, इस कारण इस मामले में पूजा स्थल अधिनियम 1991 लागू नहीं होता है। मामले में सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और अटाला मस्जिद की प्रबंधन कमेटी प्रतिवादी है।

अटाला मस्जिद का इतिहास

अटाला मस्जिद का निर्माण 1408 ईस्वी में इब्राहीम शाह शर्की ने किया था। यह मस्जिद जौनपुर में स्थित है और इसे उस समय की अन्य मस्जिदों के निर्माण के लिए आदर्श माना जाता है। यह मस्जिद 100 फीट से अधिक ऊंची है और इसके निर्माण की शुरुआत 1393 ईस्वी में फिरोज शाह तुगलक के शासनकाल में हुई थी। अटाला मस्जिद का वास्तुकला और निर्माण शैली उस समय के इस्लामी स्थापत्य का उत्कृष्ट उदाहरण है।

विवाद की वजह?

हिंदू पक्ष का कहना है कि अटाला मस्जिद असल में एक प्राचीन हिंदू मंदिर ‘अटाला देवी मंदिर’ का हिस्सा है, जिसे 13वीं शताब्दी में राजा विजय चंद्र ने बनवाया था। हिंदू पक्ष के अनुसार, फिरोज तुगलक के शासनकाल में मंदिर को ध्वस्त कर मस्जिद का निर्माण किया गया।

हिंदू पक्ष ने इस मुद्दे पर अदालत में याचिका दायर की है, जिसमें मस्जिद को ‘अटाला देवी मंदिर’ के रूप में मान्यता देने और वहां पूजा-अर्चना का अधिकार देने की मांग की गई है। यह याचिका स्वराज वाहिनी एसोसिएशन (एसवीए) के प्रतिनिधि संतोष कुमार मिश्रा ने जौनपुर की सिविल कोर्ट में दायर की है। इससे पहले सुनवाई 10 दिसंबर 2024 को हुई थी और कोर्ट ने 2 जुलाई को पैमाइश के आदेश दिए थे।

मस्जिद कमेटी ने हिंदू पक्ष के दावे को कानूनी रूप से त्रुटिपूर्ण बताया है। उनका कहना है कि एसवीए सोसायटी के नियम इस तरह के मामलों में शामिल होने की इजाजत नहीं देते। इसके अलावा मस्जिद का हमेशा से ही इस्लामी पूजा स्थल के रूप में इस्तेमाल किया गया है और 1398 ईस्वी में इसके निर्माण के बाद से ही मुस्लिम समुदाय यहां नियमित रूप से नमाज अदा करता आ रहा है।

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