द्वारका में ‘हमकलम’ का साहित्यिक उत्सव, अलका सिन्हा की कृतियों पर गहन परिचर्चा

नई दिल्ली, बीएनएम न्यूज। राजधानी दिल्ली के द्वारका में साहित्यिक संस्था ‘हमकलम’ के तत्वावधान में एक यादगार साहित्यिक आयोजन हुआ, जिसमें प्रसिद्ध साहित्यकार अलका सिन्हा के दो महत्वपूर्ण कार्यों, काव्य-संग्रह ‘हैं शगुन से शब्द कुछ’ और डायरी ‘रूहानी रात और उसके बाद’ पर गहन परिचर्चा की गई। यह आयोजन न केवल अलका सिन्हा की लेखनी को सम्मान देने का अवसर था, बल्कि साहित्यिक जगत के दिग्गजों को एक मंच पर लाने और विचारों के आदान-प्रदान को बढ़ावा देने का भी एक उत्कृष्ट उदाहरण बना।
अनिल जोशी की कलम की सहजता
इस परिचर्चा कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कवि-व्यंग्यकार अनिल जोशी ने अलका सिन्हा की लेखनी की सराहना करते हुए इसे “स्वतः स्फूर्त” बताया। उन्होंने रेखांकित किया कि अलका जी की लेखनी में विचारों का सहज प्रवाह है, जो पाठक को बांधे रखता है। अनिल जोशी ने विशेष रूप से अलका सिन्हा की डायरी की सराहना की, जिसमें काव्यात्मकता ने रचना को और भी सरस बना दिया है। उन्होंने कहा, “डायरी में काव्यात्मकता पाठक को एक अलग ही दुनिया में ले जाती है, जबकि कविताओं में वैचारिक चिंतन भी बखूबी नजर आता है, जो रचना को गहराई प्रदान करता है।”
नरेश शांडिल्य की दृष्टि में लोक और संवेदना
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में प्रसिद्ध कवि-गजलकार नरेश शांडिल्य ने अलका सिन्हा की कविताओं की सराहना करते हुए कहा कि उनकी रचनाएं लोक अनुभवों को बड़ी खूबसूरती से समेटती हैं, जो कविता का अभिन्न अंग बन जाते हैं। उन्होंने अलका जी की लेखनी में लोक, सनातन और भारतीय संवेदना की शक्ति को रेखांकित किया। नरेश शांडिल्य ने विशेष रूप से इस बात पर जोर दिया कि अलका सिन्हा का स्त्री-विमर्श आयातित नहीं है, बल्कि भारतीय बोध और सहज संवेदना से उत्पन्न है। उन्होंने कहा, “अलका जी की कविताएं भारतीय संस्कृति और मूल्यों की गहरी समझ को दर्शाती हैं, जो उनकी रचनाओं को प्रासंगिक और प्रभावशाली बनाती हैं।”
मुख्य वक्ता: डॉ. विजय कुमार मिश्र का दृष्टिकोण
मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए शिक्षाविद डॉ. विजय कुमार मिश्र ने अलका सिन्हा की कविताओं को प्रेम, प्रकृति और परिवार से गहरे जुड़े हुए लोकगीतों की तरह वर्णित किया। उन्होंने अलका जी की कविता ‘दीप जला रे’ का उल्लेख करते हुए इसकी आत्मीय संवेदना और शिल्प की सुगढ़ता को महादेवी वर्मा की परंपरा से जोड़ा। डॉ. मिश्र ने कहा, “अलका जी की कविताएं हमें उस गहराई तक ले जाती हैं, जहां प्रेम, प्रकृति और मानवीय संबंध एक दूसरे से जुड़े हुए हैं।” उन्होंने यह भी कहा कि अलका जी की लेखनी छल-प्रपंच की राजनीति से दूर, सरलता में गहन सच्चाई खोजने का प्रयास है। डॉ. मिश्र ने अलका सिन्हा की लेखनी को समकालीन समाज के लिए प्रासंगिक बताया, जो पाठकों को जीवन के विभिन्न पहलुओं पर सोचने के लिए प्रेरित करती है।
विशिष्ट अतिथि: ऋषि कुमार शर्मा का विश्लेषण
विशिष्ट अतिथि के रूप में हिंदी अकादमी, दिल्ली के उपसचिव ऋषि कुमार शर्मा ने ‘रूहानी रात और उसके बाद’ के अंशों का विश्लेषण करते हुए डायरी में व्यक्त भावनाओं की सराहना की। उन्होंने कहा कि डायरी में ‘वीरगांव’ की एक संवेदनशील लड़की की अंतरंग अनुभूतियां उभरती हैं। ‘निर्भया कांड’ से उपजी बेचैनियों से लेकर गांव-घर की स्मृतियों तक, यह डायरी भावनाओं का सजीव दस्तावेज़ है। ऋषि कुमार शर्मा ने अलका जी की भाषा और अभिव्यक्ति को उच्चकोटि का बताते हुए कहा कि इनमें नकारात्मकता के लिए कोई स्थान नहीं है, जो पाठक को आशावादी दृष्टिकोण प्रदान करती हैं।
परिचर्चा की शुरुआत: आदित्य नाथ तिवारी की भूमिका
परिचर्चा की शुरुआत में शोध अध्येता आदित्य नाथ तिवारी ने ‘हैं शगुन से शब्द कुछ’ की कविताओं को पाठक के आत्मसंवाद का माध्यम बताया। उन्होंने कहा कि ये कविताएं कोविड त्रासदी की पृष्ठभूमि में लिखी गई हैं और सत्ता के अहंकार पर प्रश्नचिह्न लगाते हुए उन साधारण कर्मियों को रेखांकित करती हैं, जिनके बिना उस भयावह समय को पार कर पाना कठिन था। आदित्य नाथ तिवारी ने अलका सिन्हा की कविताओं की प्रासंगिकता पर जोर दिया, जो वर्तमान सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों पर विचार करने के लिए एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण प्रदान करती हैं।
अलका सिन्हा का आभार और अंश पाठ
इस अवसर पर अलका सिन्हा ने उपस्थित साहित्यकारों और साहित्य-प्रेमियों का आत्मीय आभार व्यक्त किया। उन्होंने अपनी डायरी के एक मार्मिक अंश का पाठ भी किया, जिससे कार्यक्रम में उपस्थित सभी श्रोताओं की भावनाएं और भी गहन हो गईं। अलका सिन्हा ने अपनी रचनाओं को साझा करने और उन पर विचार-विमर्श करने के लिए ‘हमकलम’ संस्था का विशेष रूप से धन्यवाद किया।
विशाल पाण्डेय की भूमिका
कार्यक्रम का संचालन शोध एवं कला अध्येता विशाल पाण्डेय ने किया। उन्होंने कार्यक्रम को कुशलतापूर्वक संचालित किया और सभी वक्ताओं और श्रोताओं को एक साथ जोड़ने का काम किया। विशाल पाण्डेय ने कार्यक्रम की गरिमा को बनाए रखा और साहित्यकारों के बीच संवाद को प्रोत्साहित किया।
सुनीति रावत का धन्यवाद ज्ञापन
‘हमकलम’ संस्था की ओर से कहानीकार सुनीति रावत ने इस परिचर्चा को एक महत्वपूर्ण साहित्यिक उपलब्धि बताते हुए सभी का धन्यवाद किया। उन्होंने कहा कि ‘हमकलम’ का उद्देश्य साहित्य और कला को बढ़ावा देना है और इस आयोजन से यह लक्ष्य पूरा हुआ है। सुनीति रावत ने इस आयोजन में शामिल सभी लोगों के प्रति आभार व्यक्त किया, विशेष रूप से अलका सिन्हा, जिन्होंने अपनी कृतियों को साझा किया।
एक अविस्मरणीय साहित्यिक उत्सव
इस आयोजन में जापान के डॉ. वेदप्रकाश, लक्ष्मीशंकर वाजपेयी, त्रिलोक कौशिक, ममता किरण, अनीता सेठी वर्मा, सुनीता पाहूजा, शशिकांत, अनिल वर्मा मीत, ताराचंद नादान, कल्पना मनोरमा और पंजाबी साहित्यकार बलबीर माधोपुरी सहित अनेक साहित्यकारों और साहित्य प्रेमियों की उपस्थिति से यह एक अविस्मरणीय साहित्यिक उत्सव के रूप में अंकित हो गया। इन प्रतिष्ठित साहित्यकारों की उपस्थिति ने कार्यक्रम को और भी गौरवशाली बना दिया। सभी साहित्यकारों ने अलका सिन्हा की रचनाओं की सराहना की और उनके साहित्यिक योगदान को सराहा।
परिचर्चा का सार
अलका सिन्हा की कृतियों पर हुई यह गहन परिचर्चा एक सफल आयोजन था, जिसने साहित्यकारों और साहित्य प्रेमियों को एक साथ आने और विचारों का आदान-प्रदान करने का अवसर प्रदान किया। वक्ताओं ने अलका सिन्हा की लेखनी की गहराई, संवेदना और प्रासंगिकता को उजागर किया। इस आयोजन ने न केवल अलका सिन्हा की कृतियों को सम्मानित किया, बल्कि साहित्यिक संवाद को भी बढ़ावा दिया, जिससे यह एक अविस्मरणीय साहित्यिक उत्सव बन गया।
अलका सिन्हा की कृतियों का महत्व
अलका सिन्हा की रचनाएं, चाहे वह काव्य-संग्रह ‘हैं शगुन से शब्द कुछ’ हो या डायरी ‘रूहानी रात और उसके बाद’, पाठकों को जीवन के विभिन्न पहलुओं पर सोचने और महसूस करने के लिए प्रेरित करती हैं। उनकी कविताएं और डायरी, प्रेम, प्रकृति, परिवार और सामाजिक मुद्दों पर गहरी अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं। अलका सिन्हा की लेखनी भारतीय संस्कृति, संवेदना और मूल्यों को दर्शाती है, जो उनकी रचनाओं को आज के समय में भी प्रासंगिक बनाती हैं।
आदान-प्रदान करने का अवसर
द्वारका में आयोजित यह साहित्यिक उत्सव ‘हमकलम’ संस्था की प्रतिबद्धता को दर्शाता है कि वह साहित्य और कला को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है। अलका सिन्हा की कृतियों पर हुई यह परिचर्चा साहित्यिक जगत के लिए एक महत्वपूर्ण घटना थी, जिसने साहित्यकारों और साहित्य प्रेमियों को एक साथ आने और विचारों का आदान-प्रदान करने का अवसर प्रदान किया। यह आयोजन अलका सिन्हा की लेखनी की सराहना करने और साहित्यिक संवाद को प्रोत्साहित करने का एक सफल उदाहरण था, जो आने वाले समय में भी साहित्यिक गतिविधियों को प्रेरित करता रहेगा।