कैथल में किसानों ने की भूख हड़ताल: लघु सचिवालय के बाहर दिया धरना, बोले- डल्लेवाल के अनशन को समर्थन

कैथल में मिनी सचिवालय में भूख हड़ताल पर बैठे किसान।
नरेन्द्र सहारण, कैथल: Kaithal News: कैथल में किसान संगठनों ने अपनी लंबित मांगों को लेकर एक दिवसीय सांकेतिक भूख हड़ताल का आयोजन किया। यह हड़ताल विशेष रूप से किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल के अनशन के 100 दिन पूरे होने के अवसर पर की गई। किसानों का यह आंदोलन एक बार फिर से उनकी समस्याओं को उजागर करने एवं सरकार की नीतियों के खिलाफ आवाज उठाने का माध्यम बना।
सुबह 9 बजे से लघु सचिवालय में विभिन्न संगठनों से जुड़े किसान जुटना शुरू हुए। कुल मिलाकर, यह हड़ताल सुबह 10 बजे से शुरू होकर शाम 5 बजे तक चली। इस दौरान, किसानों ने धरने पर बैठकर अपनी मांगों को सरकार के समक्ष रखा और एकता एवं संघर्ष का संदेश फैलाया।
संघर्ष की चेतावनी
इस दौरान किसान नेताओं ने स्पष्ट रूप से कहा कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होती, तब तक उनका संघर्ष जारी रहेगा। भारतीय किसान यूनियन धन्ना भगत के प्रधान होशियार सिंह गिल और नौजवान किसान यूनियन के प्रधान जसविंदर ढुल ने कहा कि किसानों की स्थिति को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उन्होंने सरकार से अपील की कि वो किसानों की समस्याओं पर गंभीरता से ध्यान दें और तात्कालिक समाधान प्रदान करें।
किसानों की मांगें
किसानों ने अपनी मुख्य मांगों को इस प्रकार रखा:
एमएसपी पर खरीद की गारंटी: सभी फसलों के लिए मौजूदा समय में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) का कानूनी रूप से निर्धारण किया जाए। विशेष रूप से डॉ. स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को मान्यता दी जाए, जिससे फसलों की कीमतें किसानों की लागत को ध्यान में रखते हुए निर्धारित की जा सकें।
राष्ट्रीय आयोग का गठन: मिर्च, हल्दी और अन्य मसालों के लिए एक राष्ट्रीय आयोग का गठन किया जाए, जिससे इन उत्पादों की फसल की गुणवत्ता और मूल्यों को उचित ढंग से तय किया जा सके।
भूमि अधिग्रहण अधिनियम की पुनः व्यवस्था: भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 को पूरे देश में प्रभावी किया जाए। इसके अंतर्गत, किसानों की लिखित सहमति आवश्यक होनी चाहिए और मुआवज़ा मार्केट रेट से चार गुना ज्यादा दिया जाना चाहिए।
मनरेगा का पुनर्निर्धारण: प्रति वर्ष 200 दिन का रोजगार एवं 700 रुपए का मजदूरी भत्ता दिया जाए। इसके साथ ही मनरेगा को खेती से जोड़ा जाए ताकि किसान और खेत मजदूर दोनों को लाभ मिल सके।
कर्ज मुक्ति: किसानों और खेत मजदूरों के ऊपर चढ़े कर्ज को पूरी तरह से माफ किया जाए ताकि उन्हें आर्थिक संकट से उबारा जा सके।
लखीमपुर खीरी नरसंहार के दोषियों का दंड: लखीमपुर खीरी में हुए नरसंहार के पीछे के दोषियों को कठोर सजा दी जानी चाहिए और पीड़ित किसानों को उचित न्याय प्रदान किया जाए।
विश्व व्यापार संगठन से बाहर आना: भारत को विश्व व्यापार संगठन (WTO) से बाहर निकलने की आवश्यकता है। इसके अलावा, सभी मुक्त व्यापार समझौतों पर रोक लगाकर किसानों के हितों की रक्षा की जानी चाहिए।
किसानों और खेत मजदूरों के लिए पेंशन: सभी किसानों और खेत मजदूरों को एक निश्चित उम्र के बाद पेंशन दिया जाना चाहिए, जिससे उनकी बुढ़ापे का जीवन सुकून से बीत सके।
मृतक किसानों के लिए मुआवजा: दिल्ली कोर्ट में मृत्यु होने वाले किसानों के परिजनों को मुआवजा दिया जाए तथा परिवार के एक सदस्य को नौकरी दी जाए।
विद्युत संशोधन विधेयक 2020 का निरसन: इस विधेयक को रद्द किया जाए, जो किसानों की बिजली के अधिकारों को नकारता है।
नकली बीज और कीटनाशकों पर कड़ी कार्रवाई: नकली बीज, कीटनाशक दवाइयों और खाद बनाने वाली कंपनियों पर कड़ी सजा और जुर्माना लगाया जाए। साथ ही बीजों की गुणवत्ता को सुनिश्चित करने के लिए नियम बनाए जाएं।
आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा: संविधान की पाँचवीं सूची का सही ढंग से कार्यान्वयन किया जाए। जल, जंगल, और जमीन पर आदिवासियों के अधिकारों को सुनिश्चित किया जाए एवं कंपनियों द्वारा उनकी जमीन की लूट को समाप्त किया जाए।
किसानों की शक्ति और एकता
यह हड़ताल किसानों की अधिकारों के प्रति उनकी एकता और संघर्ष का प्रतीक है। किसान नेताओं ने कहा कि स्थिति को देखते हुए यह आवश्यक है कि किसान संगठनों के बीच एकजुटता बनी रहे और आवाज़ें उठती रहें। किसान आंदोलन ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वे अपनी मांगों के लिए किसी भी तरह का बलिदान देने को तैयार हैं, खासकर जब उन्हें लगता है कि उनकी समस्याओं को अनसुना किया जा रहा है।
किसान संगठनों ने कहा कि यह सिर्फ़ एक हड़ताल नहीं है, बल्कि एक दीर्घकालिक जनांदोलन की प्रक्रिया का हिस्सा है। उन्होंने सरकार से एक बार फिर से अपील की कि उन्हें सुनने की आवश्यकता है और किसानों की मांगों को प्राथमिकता देने का समय आ गया है।
किसान संगठनों की यह भावना वास्तव में दर्शाती है कि वे किसी भी प्रकार की कठिनाई से गुजरने के लिए तैयार हैं, बस उनकी आवाज़ को सुनी जाए। आगामी दिनों में देखने यह महत्वपूर्ण होगा कि सरकार उनकी मांगों पर क्या प्रतिक्रिया देती है और क्या वह उन्हें समय पर न्याय दिला पाने में सक्षम होती है।
किसानों की एकजुटता का प्रतीक
भले ही आज किसान आंदोलन धीमा हो गया हो, लेकिन यह स्पष्ट है कि किसानी की चुनौती और उनके अधिकारों को लेकर संघर्ष अभी भी जारी है। किसान संगठनों ने यह प्रदर्शित किया है कि जब बात उनके अधिकारों की आती है, तो वे कभी भी चुप नहीं बैठेंगे। आज की हड़ताल एक नए सिरे से किसानों की एकजुटता का प्रतीक है और आने वाले समय में उनके संघर्ष के रूप में देखी जाएगी। संघर्ष, उम्मीद और एकता की ये भावना ही किसानों को मजबूत बनाए रखेगी, ताकि वे अपने हक के लिए हमेशा लड़े रहें।
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