Kaithal News: मुंदड़ी की सरपंच को पद से हटाया, चुनाव लड़ने से 6 वर्ष के लिए अयोग्य करार दी गई

कैथल की डीसी प्रीति
नरेन्द्र सहारण, कैथल: Kaithal News: डीसी प्रीति ने कार्रवाई करते हुए मुंदड़ी की सरपंच को पद से हटा दिया है। इस मामले में सरपंच शशि के अनुसूचित जाति प्रमाणपत्र को अयोग्य करार दिया। हरियाणा सरकार ने 22 मार्च 2022 को जिला समाज कल्याण अधिकारी कैथल को एक पत्र जारी किया था, जिसमें एक विशेष मामले की जांच के लिए अनुरोध किया गया था। यह मामला था शशि, जो कि हरिश्चंद्र की पुत्री हैं और गांव मुंदडी, कैथल से संबंधित हैं। उनका अनुसूचित जाति प्रमाणपत्र भेजा गया था, ताकि इसकी सच्चाई की जांच की जा सके। शशि की पहचान इस मामले का केंद्र बिंदु बनी, जब यह पता चला कि उनका निवास स्थान दयाल वाला, जिला बिजनौर, उत्तर प्रदेश है। इस तरह, एक जटिल कानूनी प्रक्रिया की शुरुआत हुई।
मामले की पृष्ठभूमि
शशि ने महेंद्र सिंह नरम के एक व्यक्ति से शादी की है, जो कि मुंदरी गांव के निवासी हैं। इस विवाह ने उनकी सामाजिक स्थिति पर दबाव बनाया, क्योंकि अनुसूचित जाति से संबंधित प्रमाणपत्रों को लेकर भारत में कानून काफी स्पष्ट हैं। अनुसूचित जाति में जन्म लेने वालों को ही आरक्षण का लाभ मिल सकता है,और यही वह बिंदु था, जहां से मामला विवादित हो गया।
जांच की प्रक्रिया
जब शशि का अनुसूचित जाति प्रमाणपत्र भेजा गया, तो इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि क्या उसे कानूनी रूप से सही समझा जा सकता है। जांच प्रक्रिया में सरपंच शशि को जिला प्रशासन ने कारण बताओ नोटिस जारी किया। यह नोटिस अनिवार्य रूप से शशि से पूछताछ करने का एक तरीका था, कि क्यों उनका प्रमाणपत्र वैध माना जाना चाहिए।
शशि की प्रतिक्रिया
शशि ने 28 फरवरी 2025 को नोटिस के जवाब में एक लिखित प्रतिक्रिया प्रस्तुत की। उनका कहना था कि उन्होंने जो कुछ भी कहा, वह उचित था और प्रमाणपत्र की वैधता को सही ठहराने के लिए पर्याप्त था। हालांकि, जिला प्रशासन ने उनके उत्तर को संतोषजनक नहीं माना और इसके परिणामस्वरूप उन्हें निजी सुनवाई का अवसर भी दिया गया।
निजी सुनवाई के दौरान, शशि ने 3 मार्च को उपस्थित होकर अपने उत्तर को ही अपने बयान के रूप में प्रस्तुत किया। इस स्थिति में वह एक बार फिर अपनी केस को उचित ठहराने का प्रयास कर रही थीं।
प्रशासन की प्रतिक्रिया
डीसी प्रीति ने इस मामले की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए शशि के अनुसूचित जाति प्रमाणपत्र को अयोग्य करार दिया। उनका मानना था कि ऐसे प्रमाणपत्र को जारी करने का उद्देश्य सुनिश्चित करना है कि केवल वास्तविक और सही अनुसूचित जाति के लोग ही उसका लाभ उठा सकें। इसलिए हरियाणा पंचायती राज एक्ट 1994 की धारा के तहत शशि को सरपंच के पद से हटाने के आदेश दिए गए।
चुनावी अयोग्यता
डीसी प्रीति के आदेश में यह भी उल्लेख किया गया कि शशि आगामी पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव लड़ने से 6 वर्ष के लिए अयोग्य करार दी गई हैं। यह निर्णय इस बात की पुष्टि करता है कि प्रशासन सजग है और समय पर कार्रवाई कर रहा है ताकि सामाजिक असमानता को दूर किया जा सके।
सामाजिक और कानूनी परिणाम
इस मामले ने न केवल शशि की व्यक्तिगत स्थिति को प्रभावित किया, बल्कि यह भी दिखाता है कि कैसे अनुसूचित जाति प्रमाणपत्रों को लेकर गंभीर कानूनी मानदंड हैं। कहा जा सकता है कि प्रमाणपत्र का गलत होना न केवल व्यक्तिगत हितों को प्रभावित करता है, बल्कि समाज में आरक्षण से जुड़े अधिकारों का भी हनन करता है।
शशि का यह मामला एक उदाहरण है कि कैसे एक व्यक्तिगत स्थिति सामूहिक सामाजिक संरचना को प्रभावित कर सकती है। अनुसूचित जातियों को दिए जाने वाले आरक्षण का लाभ उन लोगों के लिए है जो वास्तव में उस स्थिति का सामना कर रहे हैं।
कानून का पालन आवश्यक
जिला प्रशासन द्वारा उठाए गए कदमों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि कोई भी सामाजिक संरचना सरल नहीं होती है। इससे यह भी समझ में आता है कि कानून का पालन आवश्यक है और उन लोगों के अधिकारों की रक्षा करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है, जो वास्तविक रूप से उसका उपयोग करने के लिए पात्र हैं।
सरकारी नीतियों और उनके कार्यान्वयन पर हमेशा ध्यान देना चाहिए ताकि कोई भी व्यक्ति अपनी पहचान के कारण भेदभाव का सामना न करे। शशि का मामला सभी के लिए एक सीख है कि सामाजिक न्याय और अधिकारों की रक्षा के लिए हम सभी को सजग रहना चाहिए। यह मामला खासकर उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है, जो समाज में वास्तविक बदलाव लाने की कोशिश कर रहे हैं।
आखिर में, यह मामला हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि समाज में समानता प्राप्त करने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए और कैसे सरकारी नीतियों को बढ़िया तरीके से कार्यान्वित किया जा सकता है ताकि किसी भी समुदाय के अधिकारों का उल्लंघन न हो।