Bakrid 2025: दिल्ली में बकरीद पर प्रतिबंधित पशुओं और ऊंट की कुर्बानी पर रोक, एडवाइजरी जारी

नई दिल्ली, बीएनएम न्यूज: Bakrid 2025: बकरीद जैसे त्योहारों पर पशुओं की कुर्बानी की परंपरा सदियों से चली आ रही है, जो धार्मिक आस्था और परंपराओं का प्रतीक है। हालांकि, इन परंपराओं के साथ-साथ पशु कल्याण और सार्वजनिक स्वच्छता का भी ध्यान रखना आवश्यक हो जाता है, ताकि त्योहार का उत्सव सामाजिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से सुरक्षित और सम्मानजनक बना रहे। इस परिप्रेक्ष्य में दिल्ली सरकार ने एक ऐतिहासिक और आवश्यक कदम उठाया है। सरकार ने बकरीद के मौके पर प्रतिबंधित पशुओं गाय और ऊंट की कुर्बानी पर रोक लगाने का निर्णय लिया है, ताकि पशु क्रूरता को रोका जा सके और साथ ही सार्वजनिक स्वच्छता एवं स्वास्थ्य का ध्यान रखा जा सके। यह निर्णय न केवल धार्मिक परंपराओं का सम्मान करता है, बल्कि पशु कल्याण, पर्यावरण संरक्षण और कानून के शासन को भी मजबूत करता है।
दिल्ली सरकार की नई एडवाइजरी
दिल्ली सरकार ने बृहस्पतिवार रात को एक विस्तृत एडवाइजरी जारी की है, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि इस वर्ष की बकरीद पर किसी भी प्रकार के प्रतिबंधित पशुओं और ऊंट की कुर्बानी नहीं की जाएगी। यह त्योहार सात जून शनिवार को मनाया जाएगा।
मुख्य निर्देश और नियम
कुर्बानी के लिए स्थान का निर्धारण: सभी धार्मिक और सामाजिक संस्थानों, मन्दिरों, मस्जिदों और समुदायों को निर्देशित किया गया है कि कुर्बानी की रस्में केवल निर्धारित स्थानों पर ही की जाएं। सड़कों, गलियों, सार्वजनिक स्थानों या अनधिकृत क्षेत्रों में कुर्बानी देना पूर्ण रूप से मना है।
अवैध पशु बलि पर रोक: प्रतिबंधित पशुओं जैसे ऊंट, घोड़ों, गाय, बछड़ों आदि की कुर्बानी पर पूर्ण प्रतिबंध है। इन पशुओं की बलि से पशु क्रूरता और पर्यावरणीय क्षति का खतरा बढ़ता है इसलिए इसे रोकने के लिए कठोर कदम उठाए गए हैं।
सोशल मीडिया पर प्रतिबंध: कुर्बानी की तस्वीरें या वीडियो सोशल मीडिया पर साझा करना भी प्रतिबंधित है। यह कदम इस उद्देश्य से उठाया गया है कि अवैध और क्रूरता भरे कार्यों को बढ़ावा न मिले और त्योहार का धार्मिक और सामाजिक मूल्यों के साथ सम्मानपूर्वक पालन हो सके।
पशु संरक्षण कानूनों का सख्ती से पालन: दिल्ली सरकार ने स्पष्ट किया है कि पशु संरक्षण कानूनों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कानून प्रवर्तन एजेंसियों से सख्त कार्रवाई की जाएगी। इसमें कानूनी कार्रवाई के साथ-साथ जुर्माने और गिरफ्तारी भी शामिल है।
क्यों जरूरी है यह कदम?
1. पशु क्रूरता से सुरक्षा: भारतीय कानून के तहत पशु क्रूरता पर कठोर प्रतिबंध है। ऊंट और अन्य प्रतिबंधित पशुओं की बलि न तो धार्मिक अनुष्ठान का हिस्सा है और न ही यह मानवीय दृष्टिकोण से स्वीकार्य है। इस कदम से पशु संरक्षण कानूनों का पालन सुनिश्चित किया जाएगा और पशु क्रूरता के खिलाफ संदेश जाएगा।
2. सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता: कुर्बानी के दौरान उत्पन्न होने वाले कूड़ा-करकट, अवशेष और अशुद्धता से सार्वजनिक स्वच्छता प्रभावित होती है। सार्वजनिक स्थानों पर कुर्बानी देने से संक्रमण और महामारी का खतरा भी बढ़ता है। इस कदम से स्वच्छता और स्वास्थ्य की रक्षा होगी।
3. पर्यावरण संरक्षण: ऊंट और अन्य प्रतिबंधित पशुओं की बलि से पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। पशुओं की अत्यधिक संख्या में बलि से प्रदूषण और संसाधनों का दुरुपयोग होता है, जिसे नियंत्रित करने के लिए यह जरूरी है।
4. धार्मिक सद्भाव और सामाजिक समरसता: यह निर्णय धार्मिक और सामाजिक समुदायों के बीच सद्भाव और सम्मान को बनाए रखने का प्रयास है। गैरकानूनी और क्रूरता भरे कार्यों को रोककर धार्मिक परंपराओं का सम्मान किया जाएगा।
प्रशासनिक और कानूनी पहलू
विकास विभाग: यह विभाग एडवाइजरी का कार्यान्वयन सुनिश्चित करेगा, स्थानीय प्रशासन और संबंधित अधिकारियों के साथ समन्वय करेगा।
मंडल और जिला अधिकारी: आदेश का पालन सुनिश्चित करने के लिए निरीक्षण और निगरानी करेंगे।
पशु संरक्षण प्राधिकारी और कानून प्रवर्तन एजेंसियां: उल्लंघन करने वालों के खिलाफ तुरंत कार्रवाई करेंगी, जिसमें गिरफ्तारियां, जुर्माना और केस दर्ज करना शामिल है।
स्वास्थ्य विभाग और म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन: सार्वजनिक स्थानों की साफ-सफाई और स्वच्छता बनाए रखने के लिए अभियान चलाएंगे।
कानूनी प्रावधान
पशु क्रूरता अधिनियम, 1960 और पशु संरक्षण कानून के तहत उल्लंघन करने वालों पर कठोर कार्रवाई की जाएगी।
सार्वजनिक स्थानों पर अवैध कुर्बानी पर संबंधित धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया जाएगा।
सोशल मीडिया पर क्रूरता भरे वीडियो या तस्वीरें पोस्ट करने पर भी कार्रवाई होगी, ताकि सोशल मीडिया पर भी जिम्मेदारी बरती जाए।
धार्मिक संगठनों और समुदायों का समर्थन
यह निर्णय धार्मिक समुदायों के बीच भी सकारात्मक प्रतिक्रिया प्राप्त कर रहा है। कई धार्मिक नेताओं ने कहा है कि त्योहार का उद्देश्य प्रेम, सद्भाव और पारंपरिक मूल्यों का सम्मान है। पशु क्रूरता और पर्यावरणीय क्षति को रोकना भी इस त्योहार का हिस्सा है।
सामाजिक जागरूकता अभियान
सरकार और NGOs मिलकर जागरूकता अभियान चला रहे हैं ताकि लोग इस निर्णय का समर्थन करें, धार्मिक परंपराओं का सम्मान करें, और कानूनी नियमों का पालन करें। सोशल मीडिया, पोस्टर, और पर्चे के माध्यम से लोगों को यह बताया जा रहा है कि कैसे स्वच्छता और पशु संरक्षण का ध्यान रखते हुए त्योहार को मनाया जाए।
त्योहार की तैयारी
कानूनी और स्वच्छता नियमों का अनिवार्य पालन: सभी को निर्देशित किया गया है कि वे नियमों का पूरा पालन करें।
सामाजिक जिम्मेदारी: समुदाय के नेताओं, स्वैच्छिक संस्थानों और स्वयंसेवकों से भी आग्रह किया गया है कि वे जागरूकता फैलाएं और नियम तोड़ने वालों के खिलाफ कार्रवाई करें।
शिक्षा और प्रशिक्षण: स्थानीय स्तर पर कार्यशालाएं और सेमिनार आयोजित किए जाएंगे ताकि लोगों को पशु संरक्षण और स्वच्छता के महत्व का एहसास हो।
सांस्कृतिक और पर्यावरणीय संरक्षण
यह कदम त्योहार को अधिक सम्मानजनक, पर्यावरण-हितैषी और सामाजिक रूप से जिम्मेदार बनाने का प्रयास है। इससे न केवल पशु क्रूरता रुकेगी, बल्कि सार्वजनिक स्वच्छता और स्वास्थ्य का भी संरक्षण होगा।
दिल्ली सरकार का यह निर्णय त्योहारों के दौरान पशु क्रूरता और सार्वजनिक स्वच्छता को नियंत्रित करने की दिशा में एक साहसिक कदम है। यह न केवल धार्मिक परंपराओं का सम्मान करता है, बल्कि पशु संरक्षण, पर्यावरण संरक्षण और सार्वजनिक स्वास्थ्य का भी ख्याल रखता है। यह कदम समाज को यह भी संदेश देता है कि परंपराओं का सम्मान करते हुए भी हमें जिम्मेदार और संवेदनशील बनना चाहिए। नियम और कानून का पालन कर हम एक शांतिपूर्ण, स्वच्छ और सुरक्षित समाज का निर्माण कर सकते हैं।
भविष्य की दिशा
आगे जाकर इस तरह के कदम और जागरूकता अभियान त्योहारों को अधिक जिम्मेदारी और सम्मान के साथ मनाने की दिशा में मार्ग प्रशस्त करेंगे। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इस तरह की पहल का समर्थन मिल रहा है, जो भारतीय संस्कृति में पर्यावरणीय और पशु संरक्षण की भावना को मजबूत करेगा।