जी-7 शिखर सम्मेलन बीच में छोड़कर अमेरिका लौटे डोनाल्ड ट्रंप ने कहा, ईरान बिना शर्त आत्मसमर्पण करे और तेहरान खाली करें

तेहरान। दुनिया की निगाहें कनाडा पर टिकी थीं जहां जी-7 शिखर सम्मेलन में वैश्विक नेता जलवायु परिवर्तन से लेकर आर्थिक स्थिरता तक के मुद्दों पर मंथन कर रहे थे। लेकिन सोमवार शाम जब नेताओं का समूह तस्वीर के लिए इकट्ठा हुआ तो एक चेहरा जो अक्सर केंद्र में रहता था, अपनी बेचैनी छिपा नहीं सका। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अचानक घोषणा की कि उन्हें “तत्काल वाशिंगटन लौटना है।” यह कोई सामान्य प्रस्थान नहीं था। यह एक ऐसे तूफान की आहट थी जो मध्य पूर्व को अपनी चपेट में लेने वाला था और जिसकी गूंज पूरी दुनिया में सुनाई देने वाली थी।

‘एयर फोर्स वन’ के आसमान में चढ़ते ही यह स्पष्ट हो गया कि यह वापसी किसी व्यापार समझौते या घरेलू नीति के लिए नहीं थी। यह युद्ध की तैयारी थी। पत्रकारों के सवालों के जवाब में ट्रंप का लहजा सख्त था, “अमेरिका का धैर्य खत्म हो रहा है… हर किसी को तत्काल तेहरान खाली कर देना चाहिए।” यह एक चेतावनी से कहीं बढ़कर था; यह एक अल्टीमेटम था। उन्होंने ईरान को बिना शर्त आत्मसमर्पण करने को कहा और साथ ही एक भयावह संकेत दिया “हम जानते हैं कि ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई कहां छिपे हैं। वह एक आसान लक्ष्य हैं, हालांकि हम अभी उन्हें नहीं मारेंगे।”

यह बयान उस आग में घी डालने जैसा था जो इज़रायल और ईरान के बीच पहले ही भड़क चुकी थी। इज़रायल के रक्षा मंत्री इज़रायल काट्ज़ ने इस धमकी को और आगे बढ़ाते हुए कहा, “खामेनेई का भी वही हश्र हो सकता है जो इराकी राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन का हुआ था।” इन बयानों ने कूटनीति के सभी दरवाजे बंद कर दिए और एक ऐसे पूर्ण पैमाने के युद्ध का मार्ग प्रशस्त कर दिया जिसकी दुनिया दशकों से आशंका कर रही थी लेकिन जिसे रोकने में हमेशा कामयाब रही थी। अब सारे नियम टूट चुके थे।

तेहरान के आसमान पर कहर

 

ट्रंप के बयानों से मिले मौन समर्थन के बाद इज़रायली रक्षा बलों (IDF) ने अपने हमलों को एक अभूतपूर्व स्तर तक बढ़ा दिया। यह अब कोई सीमित “सर्जिकल स्ट्राइक” नहीं थी, बल्कि ईरान के सैन्य और राजनीतिक तंत्र को पंगु बनाने का एक चौतरफा अभियान था।

नेतृत्व का सफाया: इजरायल ने सबसे पहले ईरान के नेतृत्व को निशाना बनाया। एक साहसी और सटीक हमले में इज़रायली सेना ने ईरान के युद्धकाल के चीफ ऑफ स्टाफ, जनरल अली शादमानी को मार गिराने का दावा किया। शादमानी न केवल एक उच्च पदस्थ सैन्य अधिकारी थे बल्कि खामेनेई के सबसे करीबी और भरोसेमंद सैन्य सलाहकारों में से एक थे। उनकी मृत्यु खामेनेई के लिए एक व्यक्तिगत और रणनीतिक झटका थी, और इसने ईरानी कमांड संरचना में एक शून्य पैदा कर दिया।

ईरानकी वायु सेना पर वर्चस्व : इजरायल का मुख्य उद्देश्य ईरानी आसमान पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित करना था। अमेरिकी निर्मित F-16, F-22 और F-35 स्टील्थ फाइटर जेट्स की लहरों ने ईरान की पुरानी वायु रक्षा प्रणालियों और वायु सेना को तहस-नहस कर दिया। सैन्य प्रवक्ता जनरल एफी डेफ्रिन ने दावा किया, “तेहरान का आसमान अब हमारा है। हम ईरान में कहीं भी, कभी भी हमला कर सकते हैं।” इस दावे को पुख्ता करते हुए, इज़रायल ने ईरान के दो F-14 विमानों को हवा में ही नष्ट कर दिया और मध्य ईरान में सतह से सतह पर मार करने वाले 120 से अधिक मिसाइल लॉन्चरों को तबाह कर दिया, जो ईरान के कुल जखीरे का एक-तिहाई हिस्सा था।

मनोवैज्ञानिक युद्ध: इज़रायल ने केवल सैन्य ठिकानों को ही निशाना नहीं बनाया बल्कि ईरान के मनोबल को तोड़ने के लिए एक व्यापक मनोवैज्ञानिक युद्ध भी छेड़ दिया। सोमवार को जब ईरान का सरकारी टेलीविजन स्टेशन सीधा प्रसारण कर रहा था, एक इज़रायली मिसाइल ने स्टूडियो के पास हमला किया। विस्फोट और दहशत के बीच एक एंकर को अपनी जान बचाने के लिए स्टूडियो छोड़कर भागते हुए देखा गया। यह छवि पूरी दुनिया में वायरल हो गई, जो ईरान की भेद्यता का प्रतीक बन गई। इसके साथ ही, इज़रायल ने ‘कुर्द फोर्स’ (ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड की विदेशी शाखा) के 10 कमांड सेंटरों पर भी हमला किया, जिससे ईरान की बाहरी अभियानों की क्षमता को गंभीर नुकसान पहुंचा।

ईरान का प्रतिशोध – जलता हाइफा और मिसाइलों की बारिश

 

ईरान हालांकि बुरी तरह से घायल है, लेकिन हारा नहीं है। उसने अपनी पूरी ताकत से जवाबी कार्रवाई की जिससे संघर्ष इजरायली धरती पर भी पहुंच गया।

हाइफा पर हमला: मंगलवार की सुबह उत्तरी इज़रायल के शहर हाइफा के लोगों की नींद हवाई हमले के सायरन और भयानक विस्फोटों से खुली। ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड्स ने घोषणा की कि उन्होंने इज़रायल की जासूसी एजेंसी मोसाद के एक प्रमुख ऑपरेशनल सेंटर और सैन्य खुफिया निदेशालय को निशाना बनाया है। सबसे विनाशकारी हमला इज़रायल की सबसे बड़ी तेल रिफाइनरी कंपनी, बजान (BAZAN) पर हुआ। ईरानी मिसाइलों ने हाइफा पोर्ट पर स्थित रिफाइनरी के कई हिस्सों को आग के हवाले कर दिया। बजान ने घोषणा की कि उसके सभी केंद्र बंद हो गए हैं और हमले में उसके तीन कर्मचारी मारे गए हैं। हाइफा के आसमान में उठता काला धुआं ईरान की जवाबी क्षमता का भयावह प्रमाण था।

मिसाइलों और ड्रोनों का सैलाब:  ईरान ने अब तक इजरायल पर लगभग 400 मिसाइलें और सैकड़ों ड्रोन दागे थे। हालांकि इज़रायल की उन्नत वायु रक्षा प्रणाली ‘आयरन डोम’ ने कई को रोक दिया लेकिन हमलों की संख्या इतनी अधिक थी कि कुछ मिसाइलें अपने लक्ष्यों तक पहुंचने में कामयाब रहीं। इन हमलों में 24 इज़रायली मारे गए और 500 से अधिक घायल हुए। ईरान ने मोसाद की एक ड्रोन उत्पादन फैक्ट्री का भंडाफोड़ करने का भी दावा किया, हालांकि इजरायल ने इसकी पुष्टि नहीं की।

नागरिक जीवन पर प्रहार – तेहरान में खौफ और पलायन

 

युद्ध का सबसे भारी खामियाजा आम नागरिक भुगत रहे थे। तेहरान जो कभी पश्चिम एशिया का एक जीवंत महानगर था अब एक भयभीत और खाली होते शहर में तब्दील हो गया था।

इजरायल की चेतावनी और पलायन: इजरायली सेना ने तेहरान के मध्यवर्ती इलाके जहां सरकारी टीवी स्टेशन, पुलिस मुख्यालय और तीन बड़े अस्पताल थे के लगभग 3.30 लाख निवासियों को तत्काल इलाका खाली करने की चेतावनी दी। इस चेतावनी ने शहर में भगदड़ मचा दी। तेहरान से पश्चिम की ओर कैस्पियन सागर क्षेत्र की ओर जाने वाली सड़कों पर कारों का अंतहीन जाम लग गया। लोग अपना घर, अपना सामान, अपनी जिंदगी पीछे छोड़कर एक अनिश्चित भविष्य की ओर भाग रहे थे।

संसाधनों की कमी: शहर में दुकानें और बाजार यहां तक कि तेहरान का प्राचीन ‘ग्रैंड बाजार’ भी बंद हो गया। खाने-पीने की चीजों की कमी होने लगी। पेट्रोल पंपों पर मीलों लंबी कतारें देखी गईं क्योंकि हर कोई अपनी गाड़ी में ईंधन भरकर शहर से निकल जाना चाहता था। सरकार ने डॉक्टरों और नर्सों की छुट्टियां रद्द कर दीं और अस्पताल घायलों से भरने लगे।

संचार ब्लैकआउट: ईरान सरकार जिसे अपने अधिकारियों के इज़रायली हमलों का निशाना बनने का डर था ने एक अभूतपूर्व कदम उठाया। उसने सभी सरकारी अधिकारियों और उनके अंगरक्षकों को मोबाइल फोन, स्मार्ट घड़ियां और लैपटॉप जैसे किसी भी नेटवर्क से जुड़े संचार उपकरण का उपयोग करने से प्रतिबंधित कर दिया। सरकार को डर था कि इज़रायल इन उपकरणों को ट्रैक करके सटीक हमले कर सकता है। यह कदम ईरान के शीर्ष नेतृत्व में व्याप्त भय को दर्शाता था।

फोर्डो की चुनौती और साइबर युद्ध

 

इस पूरे संघर्ष के केंद्र में ईरान का परमाणु कार्यक्रम था। इजरायल का अंतिम लक्ष्य इसे पूरी तरह से नष्ट करना था लेकिन यह आसान नहीं था।

फोर्डो- अंतिम किला: इजरायल के हमलों ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को पीछे धकेल दिया था, लेकिन एक लक्ष्य अभी भी उसकी पहुंच से बाहर था – फोर्डो यूरेनियम संवर्धन संयंत्र। यह संयंत्र एक पहाड़ के नीचे सैकड़ों फीट की गहराई में बनाया गया है, जिसे पारंपरिक बमों से नष्ट करना लगभग असंभव है। रक्षा मंत्री काट्ज ने कहा, “हम फोर्डो से भी निपटेंगे।” इसके लिए इजरायल को 30,000 पाउंड (14,000 किलोग्राम) के GBU-57 ‘मैसिव ऑर्डनेंस पेनिट्रेटर’ (bunker buster bomb) की आवश्यकता होगी। समस्या यह थी कि इन विशाल बमों को गिराने के लिए B-2 जैसे भारी बमवर्षक विमानों की जरूरत होती है, जो केवल अमेरिका के पास हैं। इसने इजरायल को एक रणनीतिक दुविधा में डाल दिया: क्या वह इस अंतिम लक्ष्य को हासिल करने के लिए अमेरिका से सीधी सैन्य सहायता मांगेगा?

साइबर युद्धक्षेत्र: जमीन और हवा के साथ-साथ यह युद्ध साइबरस्पेस में भी लड़ा जा रहा था। इजरायल से जुड़े एक हैकिंग ग्रुप ‘गोंजेशके डारंडे’ या ‘प्रिडेटरी स्पैरो’ ने दावा किया कि उसने ईरान के सरकारी बैंक ‘सिपाह’ के सर्वर को हैक कर लिया है और उसका सारा डेटा नष्ट कर दिया है। ग्रुप ने आरोप लगाया कि यह बैंक ईरानी सेना और उसके प्रॉक्सी समूहों को वित्तीय सहायता प्रदान कर रहा था। यह हमला ईरान के आर्थिक बुनियादी ढांचे पर एक बड़ा प्रहार था।

विनाश के कगार पर खड़ी दुनिया

 

इस काल्पनिक परिदृश्य में ईरान और इज़रायल के बीच का युद्ध एक ऐसे बिंदु पर पहुंच गया है जहां से वापसी लगभग असंभव है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की आक्रामक बयानबाजी और जी-7 से उनका अचानक प्रस्थान यह संकेत देता है कि अमेरिका अब मध्यस्थ की भूमिका में नहीं बल्कि एक सक्रिय भागीदार बनने की कगार पर है। उनका यह कहना कि वे उपराष्ट्रपति जेडी वेंस को वार्ता के लिए भेज सकते हैं, उनकी अप्रत्याशित नीति का एक और उदाहरण है लेकिन जमीन पर स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि कूटनीति के लिए बहुत कम जगह बची है।

इस युद्ध का असर सिर्फ मध्य पूर्व तक सीमित नहीं रहेगा। हाइफा में तेल रिफाइनरी पर हमले से वैश्विक तेल की कीमतों में आग लग जाएगी जिससे दुनिया भर में आर्थिक मंदी का खतरा पैदा हो जाएगा। होर्मुज जलडमरूमध्य, जहां से दुनिया का एक बड़ा हिस्सा तेल व्यापार होता है एक सक्रिय युद्ध क्षेत्र बन सकता है।

यह काल्पनिक कहानी एक गंभीर चेतावनी है। यह दर्शाती है कि जब राष्ट्र संवाद और कूटनीति का रास्ता छोड़ देते हैं और सैन्य टकराव का विकल्प चुनते हैं तो विनाश का एक ऐसा चक्र शुरू होता है जिसे नियंत्रित करना किसी के बस में नहीं रहता। शहरों को खाली करने की चेतावनी, जलती हुई रिफाइनरियां और नेताओं को खत्म करने की धमकियां एक ऐसी वास्तविकता की तस्वीर पेश करती हैं जिसे कोई भी देश अनुभव नहीं करना चाहेगा। दुनिया केवल यह उम्मीद कर सकती है कि वास्तविक जीवन में विवेक हमेशा विनाश पर हावी रहेगा।

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