कैथल के अतिरिक्त उपायुक्त दीपक करवा ने हासिल की नई उपलब्धि: इंग्लिश चैनल को रिले तैराकी से पार किया

दीपक बाबू लाल करवा!
नरेंद्र सहारण, कैथल : हरियाणा के कैथल जिले से एक प्रेरणादायक कहानी सामने आई है जिसने न केवल स्थानीय बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी सुर्खियां बटोरी हैं। अतिरिक्त उपायुक्त (एडीसी) दीपक बाबू लाल करवा ने अपनी टीम के साथ मिलकर समुद्र की दुनिया में एक और अद्भुत विजय हासिल की है। उन्होंने और उनकी टीम ने इंग्लैंड से फ्रांस तक के समुद्री रास्ते को रिले तैराकी के माध्यम से पार कर अपने साहस, समर्पण और दृढ़ संकल्प का परिचय दिया है। यह सफलता न केवल तैराकी की चुनौतीपूर्ण दुनिया में एक मील का पत्थर है, बल्कि यह युवा और प्रेरक नेतृत्व का भी उदाहरण है जो देश के युवाओं के लिए एक नई दिशा दिखाती है।
इंग्लिश चैनल को रिले तैराकी से पार करने का इतिहास और महत्व
इंग्लिश चैनल विश्व की सबसे प्रसिद्ध और कठिन तैराकी मार्गों में से एक माना जाता है। इसकी लंबाई लगभग 21 मील (करीब 34 किलोमीटर) है, लेकिन समुद्री धाराओं, तापमान और जलवायु की अनिश्चितताओं के कारण यह तैराकों के लिए एक बड़ी चुनौती है। इस मार्ग को पार करने के लिए उत्कृष्ट शारीरिक क्षमता, मानसिक मजबूती और सही योजना की आवश्यकता होती है। कभी-कभी यह दूरी अकेले तैरने से भी अधिक कठिन हो जाती है, जब टीम के सदस्यों को रिले के रूप में मिलकर इस मार्ग को पार करना होता है।
इंग्लिश चैनल पार करने का इतिहास भी बेहद समृद्ध और प्रेरणादायक है। इसे पहली बार 1875 में टॉमस स्टैंगफोर्ड ने अकेले पार किया था। उसके बाद से इस मार्ग को पार करने वाले तैराकों की संख्या बढ़ी है, लेकिन यह अभी भी विश्व की सबसे कठिन समुद्री तैराकी मानी जाती है। इस मार्ग को पार करने के लिए न केवल शारीरिक और मानसिक तैयारी आवश्यक है बल्कि समुद्र की तेज धाराओं, ठंडे पानी (प्रायः 12 से 16 डिग्री के बीच) और अप्रत्याशित मौसमी बदलावों का सामना करने की क्षमता भी जरूरी है। इन चुनौतियों का सामना करने के लिए, दुनिया भर के तैराक इस मार्ग को पार करने का सपना देखते हैं।
दीपक बाबू लाल करवा और उनकी टीम
दीपक बाबू लाल करवा भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक अधिकारी हैं, जो अपने समर्पण और साहस के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने अपने प्रशासनिक कर्तव्य के साथ-साथ खेलकूद के प्रति रुचि और जुनून को भी जीवंत रखा है। उनकी यह उपलब्धि इस बात का प्रमाण है कि यदि इच्छाशक्ति मजबूत हो, तो असंभव भी संभव हो सकता है। उन्होंने अपने नेतृत्व में दो टीमों का गठन किया, जिनमें देशभर से 12 प्रतिभाशाली तैराक शामिल थे। यह तैराक विभिन्न राज्यों से आए थे और अपने-अपने क्षेत्र में विशेष रूप से प्रशंसित थे। इन टीमों ने 5 जून को इंग्लैंड के केंटरबरी पहुंचकर अपने अभियान की शुरुआत की। दोनों टीमों ने अलग-अलग तिथियों में इस चुनौतीपूर्ण यात्रा का सामना किया और आखिरकार, 16 जून और 18 जून को दो अलग-अलग प्रयासों में, वे इंग्लिश चैनल को पार करने में सफल रहे।
यह रिले तैराकी का तरीका था जिसमें छह सदस्यों वाली टीम ने मिलकर करीब साढ़े 13 घंटे और फिर 11 घंटे 19 मिनट में इस समुद्री मार्ग को पार किया। इस तरह कुल मिलाकर लगभग 24 घंटे से अधिक समय में टीम ने अपनी बहुमूल्य सफलता हासिल की।
टीम में शामिल प्रमुख प्रतिभाएं और उनका योगदान
टीम में शामिल तैराकों का विविधतापूर्ण बैकग्राउंड था। यूपी से आईएएस अधिकारी अभिनव गोपाल, हरियाणा के चरखी दादरी से ईशांत सिंह, महेंद्रगढ़ के राजबीर सिंह, कर्नाटक से अमन शानबाग और मुरीगेप्पा रावसब चन्नानवर, महाराष्ट्र से मानव मोरे, आयुषी कैलाश अखाड़े, आयुष प्रवीण तावड़े, श्रुति विनायक कानाडे, आंध्र प्रदेश से गणेश चालागा और पश्चिम बंगाल से राबिन बोडले जैसे प्रतिभाशाली तैराक इस टीम का हिस्सा थे। यह विविधता इस बात का प्रतीक है कि देश के विभिन्न भागों से आए ये तैराक एकजुट होकर एक ही उद्देश्य के लिए काम कर रहे थे। उनके समर्पण और परिश्रम ने यह साबित कर दिया कि भारत में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है, बस सही अवसर और मार्गदर्शन की आवश्यकता है।
चुनौतीपूर्ण कार्य: समुद्री तैराकी की कठिनाइयां और तैयारी
इंग्लिश चैनल को पार करना तैराकी का एक बेहद कठिन कार्य है। यह केवल शारीरिक क्षमता का मामला नहीं है, बल्कि इसमें मानसिक मजबूती, सही योजना और समुद्र की अनिश्चितताओं का सामना करने की क्षमता भी आवश्यक है। सबसे पहले, पानी का तापमान बहुत ही ठंडा होता है, जो 12 से 16 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है। ऐसे तापमान पर लंबे समय तक तैरना हाइपोथर्मिया का कारण बन सकता है। इसके अलावा जल की धाराएं बहुत तेज़ होती हैं, जो तैराकों को दिशा भटकाने का काम करती हैं। कभी-कभी, तेज़ हवाएं और बारिश भी तटस्थता को प्रभावित कर सकती हैं। इन सभी चुनौतियों का सामना करने के लिए टीम ने विशेष प्रशिक्षण, उचित पोषण और समुद्री परिस्थितियों का अध्ययन किया। तैराकों ने अपनी सहनशक्ति बढ़ाने के लिए नियमित अभ्यास किया और समुद्र में तैराकी के लिए अपनी मानसिक शक्ति को मजबूत किया।
प्रतियोगिता की प्रक्रिया और नियम
यह प्रतियोगिता “चैनल स्वीमिंग एसोसिएशन” के निर्देशानुसार आयोजित की जाती है। यह एसोसिएशन 1927 में इंग्लैंड में गठित हुई थी और 40 वर्षों से यह आयोजन कर रही है। इसकी विशेषता यह है कि इसमें भाग लेने वाले देशों को वीजा की चिंता नहीं होती क्योंकि यह आयोजन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त है। प्रतियोगिता का समय जून से सितंबर के बीच निर्धारित है। यह समय इसलिए चुना जाता है क्योंकि इस दौरान पानी का तापमान तैराकी के अनुकूल रहता है। तैराकी के दौरान, टीम के सदस्यों को स्विच करने का समय भी निर्धारित होता है ताकि प्रत्येक सदस्य का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य बना रहे।
भारत के लिए यह सफलता क्यों महत्वपूर्ण है?
यह सफलता भारत के खेलकूद के क्षेत्र में एक बड़ा प्रेरणादायक कदम है। इससे यह संदेश जाता है कि यदि दृढ़ संकल्प, सही योजना, और समर्पित प्रयास हो, तो भारत भी विश्वस्तरीय प्रतियोगिताओं में अपनी छवि बना सकता है। यह उपलब्धि केवल एक तैराकी टास्क नहीं है, बल्कि यह आत्म-विश्वास, नेतृत्व, टीम भावना, और निरंतर प्रयास का प्रतीक है। यह भारत के युवा वर्ग के लिए एक प्रेरक उदाहरण है कि कठिनाइयों का सामना करके भी हम अपने सपनों को साकार कर सकते हैं।
भविष्य में क्या योजनाएं हैं?
दीपक बाबू लाल करवा और उनकी टीम ने यह साबित कर दिया है कि भारत में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है। अब उनका उद्देश्य है कि वे इस तरह की अन्य समुद्री, पर्वतीय और अनूठी चुनौतियों का सामना करें। उनकी योजना है कि वे न केवल समुद्री तैराकी में भारत का नाम ऊँचा करें, बल्कि युवा पीढ़ी को खेलकूद के प्रति प्रोत्साहित भी करें। इसके साथ ही, वे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अधिक से अधिक प्रतियोगिताओं में भाग लेकर भारत का नाम रोशन करना चाहते हैं।
दृढ़ संकल्प और आत्मविश्वास
अंत में यह कहना आवश्यक है कि कैथल के अतिरिक्त उपायुक्त दीपक बाबू लाल करवा का यह सफल प्रयास एक मिसाल है कि यदि आपके पास मन में दृढ़ संकल्प और आत्मविश्वास है तो आप किसी भी चुनौती को पार कर सकते हैं। उनका यह कार्य न केवल समुद्री तैराकी की दुनिया में एक नया अध्याय है, बल्कि यह भारत की खेल संस्कृति में भी एक नई ऊर्जा का संचार करता है। उनकी यह उपलब्धि वर्तमान और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा है कि कठिनाइयों से न घबराएं बल्कि उन्हें अवसर मानकर उनका सामना करें। यदि हम सब में इसी तरह का जज्बा और समर्पण हो तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है।