कैथल में चीका नगरपालिका का पार्षद निलंबित : उपाध्यक्ष के खिलाफ 3 को अविश्वास प्रस्ताव; वोटिंग के लिए रुपए मांगने का आरोप

पार्षद जितेंद्र।
नरेंद्र सहारण, कैथल : Kaithal News: हरियाणा के कैथल जिले के चीका नगर पालिका में पिछले कुछ महीनों से चल रही राजनीति और भ्रष्टाचार की लड़ाई ने अब पूरे क्षेत्र को हिला कर रख दिया है। नगर पालिका की राजनीति में बढ़ते विवाद, भ्रष्टाचार के आरोप, और पार्षदों के बीच का टकराव अब एक बड़े राजनीतिक संकट का रूप ले चुका है।
चीका में भ्रष्टाचार का मामला: शुरुआत से लेकर अब तक
चीका के स्थानीय निकाय विभाग द्वारा भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर कार्रवाई की गई है। यह मामला विशेष रूप से वार्ड 14 के पार्षद जितेंद्र कुमार का है, जिन्होंने नगरपालिका की उपाध्यक्ष पूजा शर्मा के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की कवायद शुरू कर दी है। इस घटनाक्रम ने नगर पालिका के राजनीतिक समीकरणों को उलझा दिया है।
25 मार्च को पहली शिकायत: भ्रष्टाचार का खुलासा
सबसे पहले 25 मार्च को चीका के विजय कुमार ने भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) को शिकायत दर्ज कराई। इसमें आरोप लगाया गया कि पार्षद जितेंद्र कुमार, जो नगरपालिका के चेयरपर्सन और उपाध्यक्ष पूजा शर्मा के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की योजना बना रहे थे, उनसे वोटिंग न करने के बदले 50 लाख रुपए की पेशकश की गई थी। विजय कुमार का दावा था कि यह पैसा पार्षद जितेंद्र कुमार से प्रस्ताव को रोकने के लिए मांगा गया था।
यह शिकायत स्थानीय राजनीति में हलचल मचा देने वाली थी। यदि आरोप सही हैं, तो यह स्पष्ट था कि नगर पालिका के भीतर गहरी भ्रष्टाचार और अनियमितताओं की जड़ें हैं। इस शिकायत ने तुरंत ही स्थानीय प्रशासन और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो को सक्रिय कर दिया।
रिश्वत का मामला और एसीबी की कार्रवाई
शिकायत के आधार पर एसीबी ने जांच शुरू की और 20 जून को आरोपी पार्षद जितेंद्र कुमार के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया। यह मामला भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत दर्ज किया गया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि पार्षद ने अविश्वास प्रस्ताव के मतदान से पहले ही रिश्वत की मांग की थी। यह मामला सीधे तौर पर नगरपालिका की कार्यप्रणाली और पारदर्शिता पर सवाल खड़ा करता है।
जांच के दौरान, आरोपी पार्षद जितेंद्र कुमार फरार हो गए। उनके साथ दो अन्य आरोपी भी शहर से गायब हैं। अभी तक की जांच में यह पता चला है कि रिश्वत की रकम का लेनदेन कहीं न कहीं किया गया था, लेकिन अभी तक इसकी पूरी जानकारी सामने नहीं आ पाई है। यह मामला भ्रष्टाचार के खिलाफ एक बड़ा संकेत है और नगर पालिका में व्याप्त भ्रष्टाचार की जड़ तक पहुंचने की कोशिशें जारी हैं।
पार्षद जितेंद्र कुमार की गिरफ्तारी
20 जून को दर्ज किए गए केस के बाद से ही पार्षद जितेंद्र कुमार फरार हैं। उनके खिलाफ कार्रवाई की प्रक्रिया अभी पूरी नहीं हो सकी है, लेकिन उनके खिलाफ केसर को लेकर राजनीतिक विवाद तेज हो गया है।
पार्षद का राजनीतिक प्रभाव और विरोध
जितेंद्र कुमार का यह कदम यानी रिश्वत मांगने का आरोप उनके खिलाफ राजनीतिक आरोपों का भी आधार बन गया है। उनके समर्थक और विपक्षी दोनों ही अपने-अपने तर्क प्रस्तुत कर रहे हैं। विपक्षी दल उनका समर्थन कर रहे हैं, जबकि उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।
अविश्वास प्रस्ताव की तैयारी: राजनीतिक लड़ाई का मोड़
चीका नगर पालिका में इस समय सबसे बड़ा सवाल यह है कि उपाध्यक्ष पूजा शर्मा के खिलाफ प्रस्ताव लाया जाना है। यह प्रस्ताव 3 जुलाई को लाने की योजना है। यदि यह प्रस्ताव पास हो जाता है, तो पूजा शर्मा का उपाध्यक्ष पद से हटना तय है।
विपक्ष का दावेदार
विपक्षी पार्षदों की अगुआई कर रहे पूर्व चेयरमैन तरसेम गोयल ने दावा किया है कि उनके पास पूरे पार्षदों का समर्थन है और वे अविश्वास प्रस्ताव को पारित कर देंगे। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार के आरोपियों को संरक्षण नहीं मिलेगा और जल्द ही इस मामले में निर्णय लिया जाएगा।
विरोधी खेमे की रणनीति
वहीं, उपाध्यक्ष पूजा शर्मा के पति राजीव शर्मा और उनके समर्थक इस प्रस्ताव को रोकने के लिए रणनीति बना रहे हैं। उनका तर्क है कि विरोधी खेमे के पास पर्याप्त संख्या में पार्षद नहीं हैं, इसलिए प्रस्ताव पास नहीं हो सकेगा।
राजनीतिक दलों का रुख और क्षेत्रीय राजनीति
चीका की यह घटना केवल नगरपालिका की सीमा तक ही नहीं, बल्कि क्षेत्रीय राजनीति का एक बड़ा हिस्सा बन चुकी है। भाजपा, कांग्रेस, और अन्य क्षेत्रीय दल इस मुद्दे पर अपनी-अपनी राजनीति कर रहे हैं। भाजपा के कुछ नेताओं ने भ्रष्टाचार के आरोपों की निंदा की है, जबकि कांग्रेस और अन्य दल इस मुद्दे को सत्ता का दुरुपयोग बता रहे हैं।
भ्रष्टाचार, राजनीति और प्रशासनिक सुधार की जरूरत
यह मामला एक बड़े सवाल को जन्म देता है: क्या हमारे स्थानीय निकाय भ्रष्टाचार से मुक्त हैं? क्या नगर पालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही का पालन हो रहा है? यह घटनाक्रम इन सवालों को फिर से सामने लाता है।
स्थानीय निकायों में भ्रष्टाचार की इस समस्या का हल तभी संभव है जब प्रशासनिक सुधार किए जाएं, पारदर्शिता बढ़ाई जाए और भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कदम उठाए जाएं। साथ ही, राजनीतिक दलों को भी अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर जनता की भलाई के लिए काम करना चाहिए।
भ्रष्टाचार और राजनीति का जटिल जाल
चीका के इस राजनीतिक घटनाक्रम ने स्पष्ट कर दिया है कि भ्रष्टाचार और राजनीति का जटिल जाल कितना गहरा हो सकता है। पार्षद जितेंद्र कुमार की गिरफ्तारी और भ्रष्टाचार के आरोपों से शुरू हुआ यह मामला अब अविश्वास प्रस्ताव, राजनीतिक दलों के बीच खींचतान और क्षेत्रीय राजनीति का भाग बन चुका है।
यह समय है कि स्थानीय प्रशासन और राजनीतिक दल मिलकर पारदर्शिता और जवाबदेही को प्राथमिकता दें। यदि नहीं, तो यह स्थिति और भी बिगड़ सकती है, और जनता का विश्वास इन संस्थानों से उठ सकता है।
भविष्य के लिए संभावनाएं
क्या अविश्वास प्रस्ताव पारित होगा या नहीं?
क्या पार्षद जितेंद्र कुमार को गिरफ्तार किया जाएगा और भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई होगी?
क्या राजनीतिक दल इस संकट का समाधान निकाल पाएंगे?
यह सभी सवाल अपने उत्तर की प्रतीक्षा कर रहे हैं। एक बात तो तय है कि चीका की यह घटना प्रदेशभर में भ्रष्टाचार और स्थानीय प्रशासन की जवाबदेही के मुद्दे को फिर से चर्चा में ला चुकी है।