पाकिस्तान का आतंकवाद पर नरमी : बिलावल भुट्टो जरदारी ने कहा, हाफिज सईद व मसूद अजहर को भारत को सौंपने को तैयार पाकिस्तान

बिलावल भुट्टो जरदारी, मसूद अजहर और हाफिज सईद। फाइल

इस्लामाबाद : Bilawal Bhutto Jardari: पाकिस्तान और भारत के बीच का संबंध सदियों से जटिल और बहुस्तरीय रहा है। दोनों देशों के बीच सीमा, कश्मीर का मुद्दा, आतंकवाद, और आर्थिक एवं राजनीतिक विवाद बार-बार उच्चतम स्तर पर पहुंचते रहे हैं। इन विवादों के बीच आतंकवाद का मुद्दा विशेष रूप से संवेदनशील और निर्णायक विषय रहा है, जिसे दोनों देशों ने अपनी-अपनी तरह से संबोधित किया है। हाल के वर्षों में भारत की ओर से लगाए गए आरोपों, सख्त कार्रवाईयों और रणनीतिक कदमों के बीच पाकिस्तान का रवैया भी धीरे-धीरे बदल रहा है, जिससे क्षेत्रीय राजनीति और दोनों देशों के संबंधों में नए आयाम जुड़ रहे हैं।

इस संदर्भ में पाकिस्तान के वरिष्ठ नेता और पूर्व विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी का हालिया बयान एक महत्वपूर्ण मोड़ माना जा रहा है। उन्होंने अपने बयान में कहा है कि पाकिस्तान लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के सरगना हाफिज सईद और जैश-ए-मोहम्मद (जेएम) के प्रमुख मसूद अजहर को भारत को प्रत्यर्पण करने के लिए तैयार है, बशर्ते भारत भी सहयोग करे और जांच प्रक्रिया में पारदर्शिता बरते। इस बयान ने पाकिस्तान में आतंकवाद के प्रति अपनी नीति में नरमी का संकेत तो दिया ही है, साथ ही यह संकेत भी दिया है कि दोनों देशों के बीच संभावित संवाद और समझौते का द्वार खुल सकता है।

पाकिस्तान का आतंकवाद के प्रति नजरिया

 

पाकिस्तान का आतंकवाद के मुद्दे पर रवैया सदियों से जटिल रहा है। पाकिस्तान की सरकार और सुरक्षा एजेंसियां अक्सर आतंकवादी समूहों को अपने हित में मानकर उनका समर्थन करती रही हैं, खासकर जब ये समूह भारत के खिलाफ गतिविधियों में संलग्न होते हैं। पाकिस्तान का यह रवैया उसकी सुरक्षा रणनीति, क्षेत्रीय राजनीति, और विदेशी नीति का अभिन्न हिस्सा रहा है।

लेकिन हाल के वर्षों में पाकिस्तान की राजनीति और सुरक्षा नीति में धीरे-धीरे बदलाव देखा जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय दबाव, संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंध, और भारत के सख्त कदमों जैसे ‘सिंधु जल संधि’ का स्थगन और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसी सैन्य कार्रवाईयों ने पाकिस्तान को आतंकवाद के मुद्दे पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर किया है।

बिलावल भुट्टो जरदारी के बयान में भी इस बदलाव का संकेत स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। उन्होंने कहा है कि पाकिस्तान इन आतंकियों को प्रत्यर्पित करने के लिए तैयार है, बशर्ते भारत भी सहयोग करे और जांच प्रक्रिया में पारदर्शिता रखे। इस बयान से संकेत मिलता है कि पाकिस्तान अब आतंकवाद के खिलाफ अपने रवैये में नरमी दिखाने को तैयार है, लेकिन यह भी स्पष्ट है कि वह अपने राष्ट्रीय हितों और सुरक्षा के सवाल पर किसी भी प्रकार की छूट देने के लिए तैयार नहीं है।

आतंकवाद पर पाकिस्तान की नीतियों का इतिहास

 

पाकिस्तान का आतंकवाद के प्रति रवैया इतिहास में कई बार विवादित रहा है। 1980 के दशक में अफगानिस्तान में सोवियत सैनिकों के खिलाफ जंग के दौरान अमेरिका और पाकिस्तान ने मिलकर मुजाहिदीन का समर्थन किया, जिसमें लश्कर-ए-तैयबा जैसे समूह भी शामिल थे। इन समूहों ने बाद में भारत के खिलाफ भी आतंकी गतिविधियों में भाग लिया।

2000 के दशक में, 26/11 मुंबई आतंकवादी हमले का मुख्य साजिशकर्ता हाफिज सईद पाकिस्तान में ही सक्रिय रहा। भारत ने कई बार पाकिस्तान पर आरोप लगाया कि उसका समर्थन इन आतंकवादी गतिविधियों में हैं। पाकिस्तान ने इन आरोपों का खंडन किया और इन समूहों को प्रतिबंधित कर दिया, लेकिन इन प्रतिबंधों का पालन अक्सर ढीला रहा।

आज, पाकिस्तान अपने अंदरूनी और बाह्य दबाव के कारण इन आतंकवादी समूहों को लेकर अपनी नीति में बदलाव कर रहा है। नैक्टा (राष्ट्रीय आतंकवाद निरोधक प्राधिकरण) ने लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद को प्रतिबंधित किया है, और हाफिज सईद को 33 वर्षों की सजा भी सुनाई गई है, लेकिन इन समूहों के नेताओं की गिरफ्तारी और उनके अस्तित्व को लेकर सवाल बने रहते हैं।

बिलावल भुट्टो जरदारी का बयान: नरमी या रणनीतिक मोड़?

बिलावल भुट्टो जरदारी ने अपने बयान में कहा है कि पाकिस्तान लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों का प्रत्यर्पण करने को तैयार है, बशर्ते भारत भी जांच प्रक्रिया में सहयोग करे। उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान इन व्यक्तियों को प्रत्यर्पित करने के लिए तैयार है यदि भारत अपने स्तर पर आवश्यक कदम उठाता है।

यह बयान खासतौर पर इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि बिलावल पाकिस्तान के प्रमुख राजनीतिक दल पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के नेता हैं और उनके बयान को दक्षिणपंथी और कठोर नीति अपनाने वाले विपक्षी दलों की तुलना में अधिक मनोवैज्ञानिक और राजनीतिक महत्व है।

बिलावल का यह बयान पाकिस्तान की उस नीति का संकेत है जिसमें अब आतंकवाद के मुद्दे पर नरमी और संवाद की संभावना देखी जा रही है। हालांकि, उनका यह भी मानना है कि पाकिस्तान इन आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई कर रहा है और वह गिरफ्तारी में असमर्थता का कारण भी भारत पर डालते हैं।

प्रत्यर्पण के मुद्दे और उसकी प्रक्रिया: क्यों है जटिलता?

 

प्रत्यर्पण का मामला दोनों देशों के बीच सबसे जटिल और संवेदनशील विषय है। भारत और पाकिस्तान के बीच प्रत्यर्पण का समझौता नहीं है, और दोनों देशों में अलग-अलग कानून और प्रक्रिया हैं।

बिलावल ने कहा है कि पाकिस्तान इन व्यक्तियों को प्रत्यर्पित करने को तैयार है, बशर्ते भारत सहयोग करे। हालांकि, इस प्रक्रिया में कई कानूनी और राजनीतिक बाधाएं हैं।

सबूत का अभाव: भारत को इन आतंकियों के खिलाफ सबूत दिखाने और गवाही देने की जरूरत होती है।
गवाह और गवाही: भारत में गवाहों का बयान और उनके सामने प्रस्तुत करना जरूरी होता है, जो सीमा पार के मामलों में कठिन हो सकता है।
राजनीतिक इच्छाशक्ति: दोनों देशों की राजनीतिक इच्छाशक्ति इस प्रक्रिया को आसान बनाने में अहम भूमिका निभाती है।

क्षेत्रीय राजनीति और दोनों देशों के हित

 

आतंकवाद और प्रत्यर्पण के मुद्दे के साथ-साथ, क्षेत्रीय राजनीति भी इन मामलों को प्रभावित करती है। भारत और पाकिस्तान के बीच कूटनीतिक संबंध वर्तमान में तनावपूर्ण हैं, विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर, सीमा विवाद, और आतंकवाद के आरोपों के कारण।

हालांकि, बिलावल का बयान एक सकारात्मक संकेत हो सकता है कि दोनों पक्ष आतंकवाद के मामलों में संवाद और सहयोग के रास्ते खोल सकते हैं। इससे उम्मीद बंधती है कि यदि दोनों देश अपने अपने हितों के साथ समझौता कर सकते हैं, तो क्षेत्र में स्थिरता और विकास की दिशा में कदम उठाए जा सकते हैं।

भारत का दृष्टिकोण: आतंकवाद से जंग और राष्ट्रीय सुरक्षा

 

भारत का दृष्टिकोण आतंकवाद के खिलाफ कठोर और निर्णायक है। उसने कई बार पाकिस्तान पर आरोप लगाया है कि वह आतंकवाद को अपनी सुरक्षा नीति का हिस्सा बनाकर भारत के खिलाफ इस्तेमाल करता है। भारत ने कई सैन्य और कूटनीतिक कदम उठाए हैं, जिनमें ‘सिंधु जल संधि’ का स्थगन, ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसी सैन्य कार्रवाई, और सीमा पर सतर्कता शामिल हैं।

भारत का मानना है कि आतंकवाद को खत्म करना राष्ट्रीय सुरक्षा का महत्वपूर्ण हिस्सा है, और इस दिशा में कोई भी नरमी अस्वीकार्य है। ऐसे में, पाकिस्तान का यह बयान, यदि व्यवहार में बदलता है, तो भारत के लिए नई आशाओं का संकेत हो सकता है।

क्या यह बदलाव स्थायी और व्यवहारिक होगा?

बिलावल भुट्टो जरदारी का यह बयान पाकिस्तान में आतंकवाद के खिलाफ अपनी नीति में बदलाव का संकेत हो सकता है, लेकिन इसे अंतिम मानने से पहले कई सवाल उठते हैं:

क्या पाकिस्तान अपने आतंकी समूहों के खिलाफ कार्रवाई करेगा?
भारत इस प्रस्तावित सहयोग और प्रत्यर्पण प्रक्रिया को कैसे आगे बढ़ाएगा?
क्षेत्रीय राजनीति में स्थिरता और विश्वास कैसे कायम होगा?
अभी के लिए, यह बयान एक सकारात्मक संकेत है, जो दोनों देशों के बीच संवाद और सहयोग की दिशा में एक कदम हो सकता है। यदि दोनों पक्ष अपने-अपने हितों, राष्ट्रीय सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता को ध्यान में रखते हुए इस दिशा में आगे बढ़ते हैं, तो यह क्षेत्र के लिए नई उम्मीदें जगा सकता है।

अंतिम विचार

 

पाकिस्तान के वरिष्ठ नेताओं का यह बयान एक नई शुरुआत का संकेत हो सकता है, यदि सही दिशा में आगे बढ़ा। आतंकवाद का मुद्दा क्षेत्रीय स्थिरता और समृद्धि का मुख्य बाधक है, और दोनों देशों को चाहिए कि वे इसमें संवाद और सहयोग के रास्ते खोजें।

आशा है कि यह बयान एक लंबी प्रक्रिया का हिस्सा है, जो दोनों देशों के बीच विश्वास बहाली और स्थायी शांति की ओर कदम बढ़ाने का संकेत प्रदान करता है। यदि दोनों पक्ष हमारी उम्मीदों के अनुरूप कदम उठाते हैं, तो यह क्षेत्र के लिए एक नई सुबह का संकेत हो सकता है।

 

 

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