‘आओगे जब तुम साजना’ गाने वाले प्रसिद्ध शास्त्रीय संगीत गायक राशिद खान का निधन

कोलकाता, BNM News।

मशहूर भारतीय शास्त्रीय गायक उस्ताद राशिद खान का लंबी बीमारी के बाद मंगलवार को यहां निधन हो गया। वह 55 साल के थे। संगीत के सरताज खान प्रोस्टेट कैंसर से जूझ रहे थे। लंबे समय से उनका इलाज चल रहा था। कोलकाता के पियरलेस अस्पताल में अपराह्न 3.45 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की मौजूदगी में अस्पताल के एक वरिष्ठ चिकित्सक ने उनके निधन की जानकारी देते हुए बताया कि हमने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की, लेकिन हम असफल रहे।। 10 जनवरी को उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उस्ताद के निधन पर शोक व्यक्त किया है।

इलाज के बाद स्वास्थ्य में हो रहा था सुधार

पिछले महीने सेरेब्रल अटैक का सामना करने के बाद संगीतकार का स्वास्थ्य खराब हो गया था। रामपुर-सहसवान घराने के खान ने शुरुआत में टाटा मेमोरियल कैंसर अस्पताल में इलाज कराया। हालांकि, बाद के चरण में उन्होंने कोलकाता में इलाज जारी रखने का विकल्प चुना। उनके करीबी सूत्रों के मुताबिक, पिछले महीने निजी अस्पताल में भर्ती होने के बाद से उन पर इलाज का सकारात्मक असर हो रहा था।

2022 में मिला था पद्म भूषण

 

भारत सरकार द्वारा खान को 2006 में पद्मश्री व संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार जबकि 2022 में उन्हें देश के तीसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। बंगाल सरकार ने उन्हें बंग विभूषण से भी नवाजा था। खान अपनी पत्नी और तीन बच्चों के साथ कोलकाता में ही रहते थे।

फिल्मों में भी दे चुके हैं आवाज

उन्होंने फिल्मों में भी अपनी आवाज दी। ‘जब वी मेट’ में उनकी गाई बंदिश ‘आओगे जब तुम साजना’ काफी लोकप्रिय रही। फिल्म इंडस्ट्री में ‘तोरे बिना मोहे चैन’ नहीं जैसा सुपरहिट गाना गाया था। वहीं, वे शाहरुख खान की फिल्म ‘माई नेम इज’ खान में भी गाना गा चुके हैं। यही नहीं, उस्ताद राशिद खान ‘राज 3’, ‘कादंबरी’, ‘शादी में जरूर आना’, ‘मंटो’ से लेकर ‘मीटिन मास’ जैसी फिल्मों में भी अपनी आवाज का जादू बिखेर चुके हैं। उन्होंने कई बांग्ला गीत भी आए।

चाचा गुलाम मुस्तफा खान ने प्रतिभा को पहचाना

 

उत्तर प्रदेश के बदायूं में जन्मे राशिद खान ने प्रारंभिक प्रशिक्षण नाना उस्ताद निसार हुसैन खान (1909-1993) से प्राप्त किया। वह उस्ताद गुलाम मुस्तफा खान के भतीजे हैं। उनकी संगीत प्रतिभा को सबसे पहले उनके चाचा गुलाम मुस्तफा खान ने पहचाना, जिन्होंने मुंबई में प्रारंभिक प्रशिक्षण दिया। हालांकि, प्रारंभिक प्रशिक्षण निसार हुसैन खान से उनके निवास स्थान बदायूं में मिला था।

11 साल की उम्र में पहला कार्यक्रम

 

11 साल की उम्र में राशिद खान ने पहला संगीत कार्यक्रम दिया और अगले वर्ष 1978 में, उन्होंने दिल्ली में आईटीसी संगीत कार्यक्रम में मंच की शोभा बढ़ाई। इसके बाद अप्रैल 1980 में जब निसार हुसैन खान कलकत्ता में आईटीसी संगीत रिसर्च अकादमी (एसआरए) में चले गए, तो 14 साल की उम्र में राशिद खान भी अकादमी का हिस्सा बन गए।

प्रयोग के लिए जाने जाते थे राशिद खान

खान ने शास्त्रीय हिंदुस्तानी संगीत को हल्के संगीत शैलियों के साथ मिश्रित करने का साहस किया और पश्चिमी वाद्ययंत्र वादक लुइस बैंक्स के साथ संगीत कार्यक्रम सहित प्रयोगात्मक सहयोग में लगे रहे। इसके अतिरिक्त उन्होंने जुगलबंदियों में भाग लेकर सितारवादक शाहिद परवेज और अन्य संगीतकारों के साथ मंच साझा करके अपनी बहुमुखी प्रतिभा का प्रदर्शन किया।

 

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