मप्र सरकार के छह महिला जजों को बर्खास्त करने पर सुप्रीम कोर्ट ने लिया संज्ञान, जानें क्या है कारण

नई दिल्ली, एजेंसी : मध्य प्रदेश सरकार द्वारा छह महिला सिविल जजों की सेवाओं को उनके असंतोषजनक प्रदर्शन के आधार पर खत्म करने पर सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया है। जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस संजय करोल की पीठ ने सुप्रीम कोर्ट को लिखे गए इन छह में से तीन पूर्व क्लास-2 सिविल जजों (जूनियर डिवीजन) के प्रार्थना-पत्र पर संज्ञान लिया और उसे रिट याचिका मानने का फैसला किया। पीठ ने इस मामले में अधिवक्ता गौरव अग्रवाल को न्यायमित्र नियुक्त किया है।

तीन पूर्व जजों ने भेजा था प्रार्थना-पत्र

 

सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड की गई आफिस रिपोर्ट के मुताबिक, अपने प्रार्थना-पत्र में इन पूर्व जजों ने कहा है कि उन्हें इस तथ्य के बावजूद बर्खास्त कर दिया गया कि कोविड महामारी के कारण उनके कार्य का मात्रात्मक मूल्यांकन नहीं किया जा सका। आफिस रिपोर्ट के मुताबिक, उन्हें मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा में नियुक्त किया गया था और निर्धारित मानकों पर खरा नहीं उतरने के कारण सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। एक प्रशासनिक समिति और फुल कोर्ट मीटिंग में प्रोबेशन अवधि के दौरान उनका प्रदर्शन असंतोषजनक पाए जाने के बाद प्रदेश के न्याय विभाग ने जून, 2023 में उनकी बर्खास्तगी के आदेश जारी किए थे।

प्रार्थना-पत्र में कहा, प्रक्रिया का पालन किए बिना कर दिया बर्खास्त

 

इनमें से एक पूर्व जज द्वारा अधिवक्ता चारू माथुर के जरिये दाखिल प्रार्थना-पत्र के मुताबिक, चार वर्षों का बेदाग सर्विस रिकार्ड और कोई भी प्रतिकूल टिप्पणी नहीं होने बावजूद उन्हें कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना बर्खास्त कर दिया गया। उन्होंने इसे अनुच्छेद-14 (कानून के समक्ष समानता का अधिकार) एवं अनुच्छेद-21 (जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार) के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया। यह भी कहा कि अगर मात्रात्मक कार्य मूल्यांकन के दौरान मातृत्व एवं बच्चे की देखभाल के अवकाश पर भी विचार किया गया था तो यह उनके साथ गंभीर अन्याय है।

 

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