फालतू काम के नाम पर गुलजार और पंचम ने बना डाला था दिल पड़ोसी है एल्बम

मुंबई, बीएनएम न्यूज। दिल को सुकून पहुंचाने वाले गानों को बनाने के लिए गीतकार, संगीतकार और गायक समेत पूरी टीम बड़ी मेहनत करती हैं। हालांकि कई बार सिर्फ हंसी मजाक के बीच बनकर भी कुछ गाने लोगों के दिलों पर छा जाते हैं। गुलजार का लिखा तथा आर डी बर्मन और आशा भोसले का गाया हुआ साल 1987 में रिलीज गजल एल्बम दिल पड़ोसी है कुछ ऐसे ही बना। इस एल्बम के बनने का किस्सा हाल ही में स्वयं गुलजार ने सुनाया।
90वीं जन्मतिथि पर गुलजार
मौका था मुंबई में उनके अगले गजल एल्बम दिल परेशान करता है की लांचिंग का। इस मौके पर उन्होंने कहा, ‘मैं खुद बड़ा बेसुरा हूं, न कभी गाया, न गुनगुनाया। (हसंते हुए) लेकिन जो गाते हैं उनसे रश्क (जलन) तो जरूर करता हूं और सुनकर अच्छा लगता है। संगीत के साथ एक जुड़ाव तो किसी न किसी कारण से लगा ही रहा, पर हारमोनियम पर नहीं बैठ सका।’ हाल ही में अपनी 90वीं जन्मतिथि मनाने वाले गुलजार ने आगे बताया कि मेरे घर पर एक हारमोनियम है।
हेमंत कुमार जी (संगीतकार) ने कोलकाता से लाकर दिया था। मैं उसकी मरम्मत करवाता रहा हूं, वो अब भी मेरे पास है। उस पर सलिल दा (संगीतकार सलिल चौधरी) ने भी हाथ फेरा है और पंचम (आर डी बर्मन) ने भी। जब हम दिल पड़ोसी है एल्बम बना रहे थे। तब आशा जी (आशा भोसले) पंचम को बार-बार याद दिला देती थी कि देखो देखो फलां एल्बम करनी है। इससे वो तंग हो जाते तो म्यूजिक रूम से उठकर मुझसे कहते कि चलो वो फालतू काम तुम्हारे घर पर करते हैं। वो फालतू काम दिल पड़ोसी है, जो आपके सामने आया।’
When your hard work and dedication are acknowledged, it fuels your courage. And when such praise comes from a revered figure like Gulzar Sahab, it deepens your sense of responsibility.
May Gulzar Sahab’s guidance always be with us.🔗https://t.co/LVtMPAPjKx#Gulzar #Guftagoo pic.twitter.com/D81V0nN9Yn
— Irfan (@irfaniyat) August 1, 2024
गुलज़ार ने एक बार एक अजीब संयोग की ओर इशारा किया था जो उनकी कविताओं को उनके बहुत याद किये जाने वाले मित्र राहुल देव बर्मन की रचनाओं से जोड़ता है।
पंचम के सबसे पसंदीदा गीतों में से एक, फिल्म इजाज़त में मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है, में गुलज़ार ने पंक्ति लिखी थी एक सौ सोलह चाँद की रातें, एक तुम्हारे काँधे का तिल ।
आँखों से आँसुओं के मरासिम पुराने हैं
मेहमाँ ये घर में आएँ तो चुभता नहीं धुआँ
यूँ भी इक बार तो होता कि समुंदर बहता
कोई एहसास तो दरिया की अना का होता
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