Lateral Entry: लैटरल एंट्री पर राहुल ने घेरा तो भाजपा ने मोइली आयोग का दे दिया हवाला, जानिए कांग्रेस के वक्त क्या हुआ था?

नई दिल्ली, बीएनएम न्यूजः Lateral Entry UPSC से सीधी भर्ती मामले में राहुल गांधी ने एक बार फिर केंद्र सरकार पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि प्रशासनिक सुधार आयोग दलित, ओबीसी और आदिवासियों पर हमला है। राहुल गांधी ने एक्स पर पोस्ट किया कि भाजपा का रामराज्य का विकृत संस्करण संविधान को नष्ट करने और बहुजनों से आरक्षण छीनने का प्रयास है।

अब भाजपा ने राहुल गांधी पर पलटवार किया है। भाजपा का कहना है कि यह अवधारणा सबसे पहले कांग्रेस नीत यूपीए सरकार की तरफ से ही लाई गया था। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि लेटरल एंट्री के मामले में कांग्रेस का पाखंड दिख रहा है।

राहुल गांधी ने सोशल मीडिया मंच एक्स पर एक पोस्ट कर हमला बोला था। उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी संघ लोक सेवा आयोग की जगह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के जरिए लोकसेवकों की भर्ती कर संविधान पर हमला कर रहे हैं। केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में महत्वपूर्ण पदों पर लेटरल एंट्री के जरिए भर्ती कर खुलेआम एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग का आरक्षण छीना जा रहा है।

उन्होंने कहा, ‘मैंने हमेशा कहा है कि टॉप ब्यूरोक्रेसी समेत देश के सभी शीर्ष पदों पर वंचितों का प्रतिनिधित्व नहीं है, उसे सुधारने के बजाय लेटरल एंट्री द्वारा उन्हें शीर्ष पदों से और दूर किया जा रहा है। यह यूपीएससी की तैयारी कर रहे प्रतिभाशाली युवाओं के हक पर डाका और वंचितों के आरक्षण समेत सामाजिक न्याय की परिकल्पना पर चोट है।’

कांग्रेस सरकार में आई पहली बार अवधारणा

लेटरल एंट्री का मतलब निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों की सीधी भर्ती से है। इसके माध्यम से केंद्र सरकार के मंत्रालयों में संयुक्त सचिवों, निदेशकों और उप सचिवों के पदों की भर्ती की जाती है। यह अवधारणा सबसे पहले कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के दौरान पेश की गई थी। 2005 में वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में बने दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग (एआरसी) ने इसका समर्थन किया था।

वहीं इस मामले में पलटवार करते हुए केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा था कि सीधी भर्ती को लेकर पहला प्रयास यूपीए सरकार ने किया था। प्रशासनिक सुधा आयोग को 2005 में यूपीए सरकार में ही विकसित किया गया था।

उन्होंने कहा कि वरिष्ठ कांग्रेस नेता वीरप्पा मोइली ने प्रशासनिक सुधार आयोग की अध्यक्षता की थी। आयोग को भारतीय प्रशासनिक प्रणाली को अधिक प्रभावी, पारदर्शी और नागरिक अनुकूल बनाने के लिए सुधारों की सिफारिश करने का काम सौंपा गया था।

इसकी एक प्रमुख सिफारिश यह थी कि उच्च सरकारी पदों पर लेटरल एंट्री शुरू की जाए, जिसके लिए विशेष ज्ञान और कौशल की आवश्यकता होती है। उन्होंने कहा कि एनडीए ने इस सिफारिश को लागू किया है। इसके तहत यूपीएससी से पारदर्शी और निष्पक्ष भर्ती की जाएगी और शासन में सुधार होगा।

एआरसी ने ये दिए थे तर्क

  • कुछ सरकारी भूमिकाओं के लिए विशेष ज्ञान की आवश्यकता होती है जो पारंपरिक सिविल सेवाओं के भीतर हमेशा उपलब्ध नहीं होता है। इसलिए विषय विशेषज्ञों को शामिल करना जरूरी है।
  • इससे विशेषज्ञों का एक पूल तैयार होगा। ये विषय विशेषज्ञ अर्थशास्त्र, वित्त, प्रौद्योगिकी और सार्वजनिक नीति जैसे क्षेत्रों में नए दृष्टिकोण और विशेषज्ञता लाएंगे।
  • लेटरल एंट्री को मौजूदा सिविल सेवाओं में इस तरह से एकीकृत किया जाए कि सिविल सेवा की अखंडता और लोकाचार को बनाए रखते हुए उनके विशेषज्ञ कौशल का लाभ उठाया जा सके।

जानें- कब तैयार किया गया था इसका आधार

1966 में मोरारजी देसाई की अध्यक्षता वाले पहले प्रशासनिक सुधार आयोग ने इसका आधार तैयार किया था। हालांकि आयोग ने लेटरल एंट्री की कोई वकालत नहीं की थी। बाद में मुख्य आर्थिक सलाहकार का पद लेटरल एंट्री के जरिये भरा जाने लगा। नियमों के अनुसार, इसके लिए 45 वर्ष से कम आयु होनी चाहिए और वह अनिवार्य रूप से एक प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री हो। इसी तर्ज पर कई अन्य विशेषज्ञों को सरकार के सचिवों के रूप में नियुक्त किया जाता है।

मोदी सरकार में लेटरल एंट्री की औपचारिक शुरुआत

लेटरल एंट्री योजना औपचारिक रूप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में शुरू हुई। 2018 में सरकार ने संयुक्त सचिवों और निदेशकों जैसे वरिष्ठ पदों के लिए विशेषज्ञों के आवेदन मांगे थे। यह पहली बार था कि निजी और सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों के पेशेवरों को इसमें मौका दिया गया।

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