फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए हाई कोर्ट ने सुनाया फैसला, कहा- पिता या पति परिवार के प्रति कर्तव्य से विमुख नहीं हो सकता

नरेन्द्र सहारण, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने कहा है कि अदालत अपराध प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 या भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) की धारा 144 के तहत अंतरिम गुजारा भत्ता प्रदान कर सकती है, जिसमें एकपक्षीय आदेश भी शामिल हैं।

जस्टिस सुमित गोयल ने कहा कि अदालत के पास अंतरिम गुजारा भत्ता प्रदान करने की शक्ति होगी, जिसमें एकपक्षीय अंतरिम गुजारा भत्ता भी शामिल है, क्योंकि ऐसी शक्ति अदालत में निहित हो सकती है। हालांकि कानून में अंतरिम या अंतिम भरण-पोषण देने का स्पष्ट प्रविधान नहीं है, लेकिन इस पर कोई रोक नहीं है।

अंतरिम गुजारा भत्ता केवल असाधारण मामलों में ही देना चाहिए

कोर्ट ने यह भी चेताया कि इस तरह का अंतरिम गुजारा भत्ता केवल असाधारण मामलों में ही दिया जाना चाहिए। अंतरिम गुजारा भत्ते की मांग करने वाले ऐसे पक्ष को अपनी याचिका के समर्थन में अपनी संपत्ति और देनदारियों का खुलासा करते हुए हलफनामा दाखिल करना होगा।

हाई कोर्ट गुरुग्राम फैमिली कोर्ट के उस आदेश के खिलाफ एक पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें एक व्यक्ति को अपनी पत्नी और बच्चे को प्रतिमाह 15 हजार रुपये अंतरिम गुजारा भत्ता के रूप में देने का निर्देश दिया गया था।

अति आवश्यक अस्थायी व्यवस्था

पति के वकील ने तर्क दिया कि धारा 125 सीआरपीसी के तहत गुजारा भत्ते के लिए आवेदन के निपटान तक अंतरिम या अंतरिम भरण-पोषण देने के लिए कोई विधायी आदेश नहीं है। कोर्ट ने प्रविधान की विस्तार से जांच की और कहा कि एक पिता या पति अपने परिवार के प्रति अपने कर्तव्य से विमुख नहीं हो सकता।

अंतरिम राहत का अर्थ समझाते हुए कोर्ट ने कहा कि यह एक अति आवश्यक अस्थायी व्यवस्था है। वर्तमान मामले में हाई कोर्ट ने पाया कि अंतरिम गुजारा भत्ते का आदेश तब पारित किया गया था, जब गुजारा भत्ते के लिए आवेदन आठ महीने तक लंबित रहा।

60 दिनों के भीतर फैसला किया जाना चाहिए

इस प्रकार फैमिली कोर्ट के पास अंतरिम गुजारा भत्ता के लिए आदेश पारित करने का कोई अवसर नहीं था और संबंधित न्यायालय को गुजारा भत्ता आवेदन पर ही एक तर्कसंगत आदेश पारित करना चाहिए था।

हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश को खारिज कर दिया और फैमिली कोर्ट को छह सप्ताह के भीतर अंतरिम भरण-पोषण अनुदान के लिए आवेदन पर निर्णय लेने का निर्देश दिया। कोर्ट ने साफ किया कि वैधानिक प्रविधान के अनुसार गुजारा भत्ता के लिए याचिका पर नोटिस की तारीख से 60 दिनों के भीतर फैसला किया जाना चाहिए।

 

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