CeaseFire Voilation: पाकिस्तान में दरार: सेना की अवज्ञा ने संघर्ष विराम को किया तार-तार, समझौते को मानने से इनकार!

नई दिल्ली/इस्लामाबाद, बीएनएम न्‍यूज: CeaseFire Voilation: दक्षिण एशिया में शांति की एक नाजुक किरण, जो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की कथित मध्यस्थता के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच हुए संघर्ष विराम समझौते से उभरी थी, कुछ ही घंटों में पाकिस्तानी सेना की बंदूक की गड़गड़ाहट और ड्रोनों की घुसपैठ में विलीन हो गई। यह घटनाक्रम न केवल दोनों परमाणु-सशस्त्र पड़ोसियों के बीच तनाव को एक नए खतरनाक मोड़ पर ले आया है, बल्कि इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यह पाकिस्तान के भीतर सत्ता के दो केंद्रों – नागरिक सरकार और सर्वशक्तिमान सेना – के बीच एक गहरे और खतरनाक गतिरोध की ओर स्पष्ट रूप से इशारा कर रहा है। जिस तरह पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने शांति वार्ता में सहयोग के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति का आभार व्यक्त किया, उसके ठीक बाद पाकिस्तानी रेंजर्स द्वारा की गई आक्रामक कार्रवाई यह सवाल खड़ा करती है कि क्या पाकिस्तानी सेना अपने ही राजनीतिक नेतृत्व के आदेशों की अवहेलना कर रही है और क्या वह इस क्षेत्र को अस्थिर करने पर तुली हुई है?

अमेरिकी भूमिका और पाकिस्तान का दोहरा चरित्र

 

शनिवार शाम को, भारत और पाकिस्तान के डीजीएमओ (सैन्य संचालन महानिदेशक) स्तर पर हुई वार्ता के बाद, भारतीय समयानुसार शाम 5 बजे से सभी मोर्चों पर पूर्ण संघर्ष विराम लागू करने पर सहमति बनी थी। इस समझौते की खबर से “ऑपरेशन सिंदूर” – जो भारत द्वारा 22 अप्रैल, 2025 को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब में पाकिस्तान स्थित आतंकी शिविरों पर की गई बड़ी कार्रवाई थी – के बाद उत्पन्न हुए अत्यधिक तनावपूर्ण माहौल में कुछ नरमी आने की उम्मीद जगी थी।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस समझौते का श्रेय लेते हुए इसे अमेरिकी मध्यस्थता का परिणाम बताया था। हालांकि भारत ने अमेरिकी मध्यस्थता के दावे को सिरे से खारिज करते हुए कहा था कि यह बातचीत द्विपक्षीय स्तर पर, सीधे दोनों देशों के डीजीएमओ के बीच हुई थी, जिसकी पेशकश पाकिस्तान की ओर से आई थी।

दिलचस्प रूप से, संघर्ष विराम लागू होने के लगभग पौने चार घंटे बाद, रात 8 बजकर 39 मिनट पर, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर एक पोस्ट के माध्यम से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का आभार व्यक्त किया। उन्होंने लिखा, “क्षेत्र में शांति के लिए वार्ता में सक्रिय भूमिका के लिए राष्ट्रपति ट्रंप को धन्यवाद। पाकिस्तान संघर्ष विराम को सुगम बनाने के लिए अमेरिका की सराहना करता है। हमने क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के हित में इसे स्वीकार किया है। दक्षिण एशिया में शांति के लिए उनके बहुमूल्य योगदान के लिए उपराष्ट्रपति जेडी वेंस और विदेश मंत्री मार्को रूबियो को भी धन्यवाद। पाकिस्तान का मानना है कि यह उन मुद्दों के समाधान की दिशा में नई शुरुआत है, जिन्होंने शांति, समृद्धि के मार्ग को बाधित किया है।”

शहबाज शरीफ का यह बयान एक ओर जहां पाकिस्तान के नागरिक नेतृत्व द्वारा शांति की इच्छा को दर्शाता है, वहीं दूसरी ओर, उनके इस पोस्ट के कुछ ही देर बाद पाकिस्तानी सेना द्वारा नियंत्रण रेखा पर जम्मू, अखनूर, राजौरी और आरएस पुरा सेक्टरों में तोपखाने से गोलाबारी और श्रीनगर के आसमान में ड्रोन भेजने की घटनाएं पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान के भीतर गहरे अंतर्विरोधों को उजागर करती हैं। यह स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि पाकिस्तानी सेना, जो वहां की विदेश और सुरक्षा नीति की वास्तविक नियंत्रक मानी जाती है, शायद इस शांति समझौते से सहमत नहीं थी या कम से कम इसके समय और शर्तों को लेकर उसकी गंभीर आपत्तियां थीं।

पाकिस्तानी सेना की अवज्ञा: क्या विद्रोह की आहट?

 

विश्लेषकों का मानना है कि पाकिस्तानी सेना के भीतर कट्टरपंथी और भारत-विरोधी तत्व, जिन्हें अक्सर “डीप स्टेट” या “अदृश्य सत्ता” का हिस्सा माना जाता है, किसी भी कीमत पर भारत के साथ शांति प्रक्रिया को पटरी से उतारना चाहते हैं। यह भी संभव है कि “ऑपरेशन सिंदूर” से हुई भारी क्षति और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुई किरकिरी के बाद सेना का एक बड़ा वर्ग अपने राजनीतिक नेतृत्व पर दबाव बना रहा हो कि वह भारत के सामने किसी भी तरह की नरमी न दिखाए।

यह सवाल अब गंभीर रूप से पूछा जा रहा है कि क्या पाकिस्तानी सेना अपने राजनीतिक नेतृत्व के खिलाफ एक प्रकार के मूक विद्रोह की स्थिति में है? क्या सेना का एक हिस्सा या कुछ कट्टरपंथी गिरोह इस समझौते को मानने से इनकार कर रहे हैं? जिस तरह से प्रधानमंत्री द्वारा सार्वजनिक रूप से शांति की प्रतिबद्धता जताने के बावजूद सीमा पर सेना ने आक्रामकता दिखाई, उससे यह आशंका और भी पुष्ट होती है कि पाकिस्तानी सेना नागरिक सरकार के नियंत्रण से बाहर है और वह अपने एजेंडे पर चल रही है। यह स्थिति न केवल पाकिस्तान की आंतरिक स्थिरता के लिए बल्कि पूरे दक्षिण एशियाई क्षेत्र की शांति और सुरक्षा के लिए भी बेहद खतरनाक है। यदि सेना अपने ही प्रधानमंत्री के निर्देशों का पालन नहीं कर रही है, तो अंतरराष्ट्रीय समझौतों और द्विपक्षीय सहमतियों का क्या अर्थ रह जाता है?

पाकिस्तानी सेना का इतिहास ऐसी घटनाओं से भरा पड़ा है जहां उसने नागरिक सरकारों को अस्थिर किया है या महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णयों को वीटो किया है। भारत के साथ संबंधों के संदर्भ में, यह लगभग एक स्थापित पैटर्न रहा है कि जब भी शांति की कोई पहल होती है, पाकिस्तानी सेना या उसके द्वारा संरक्षित आतंकी गुट कोई ऐसी बड़ी घटना कर देते हैं जिससे पूरी प्रक्रिया बाधित हो जाती है। कारगिल युद्ध (1999), मुंबई आतंकी हमला (2008) और पठानकोट एयरबेस पर हमला (2016) इसके प्रमुख उदाहरण हैं, जो शांति प्रयासों की पृष्ठभूमि में या उनके तुरंत बाद हुए।

भारत का कड़ा रुख: “एक्ट ऑफ वॉर” की चेतावनी

 

पाकिस्तान के इस दोहरे रवैये और संघर्ष विराम के उल्लंघन के बाद भारत ने अपनी नीति और भी सख्त कर ली है। केंद्र सरकार के सूत्रों से जो सबसे महत्वपूर्ण बयान सामने आया है, वह यह है कि ‘अगर भविष्य में भारत पर कोई भी आतंकी हमला होता है, तो इसे ‘एक्ट ऑफ वॉर’ (युद्ध की कार्रवाई) माना जाएगा।’ यह भारत के सुरक्षा सिद्धांत में एक बड़े बदलाव का संकेत है। अब तक भारत आतंकी हमलों को “सीमा पार आतंकवाद” या “राज्य प्रायोजित आतंकवाद” के रूप में देखता रहा है और उसी के अनुरूप प्रतिक्रिया देता रहा है, जिसमें सर्जिकल स्ट्राइक और हवाई हमले (“ऑपरेशन सिंदूर”) शामिल हैं।

लेकिन “एक्ट ऑफ वॉर” की घोषणा का अर्थ है कि भारत भविष्य में किसी भी आतंकी हमले को सीधे तौर पर पाकिस्तानी राज्य द्वारा किया गया हमला मानेगा और उसकी प्रतिक्रिया भी उसी स्तर की होगी, जो पारंपरिक युद्ध की श्रेणी में आ सकती है। यह पाकिस्तान के लिए एक स्पष्ट और अंतिम चेतावनी है कि वह अपनी धरती से संचालित होने वाले आतंकी गुटों पर निर्णायक कार्रवाई करे, अन्यथा उसे गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।

विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने पहले ही पाकिस्तान को डीजीएमओ स्तर के समझौते के उल्लंघन के लिए पूरी तरह जिम्मेदार ठहराते हुए सेना को सख्त कार्रवाई के निर्देश देने की बात कही थी। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी स्पष्ट किया था कि भारत आतंकवाद पर किसी भी तरह का समझौता नहीं करेगा और “ऑपरेशन सिंदूर” का मकसद पूरी तरह सफल रहा है, जिसने न केवल आतंकी ठिकानों को नष्ट किया बल्कि भारत की त्रि-सेवाओं के बीच समन्वय का भी सफल परीक्षण किया।

“ऑपरेशन सिंदूर”: एक निर्णायक मोड़

 

22 अप्रैल, 2025 को पहलगाम में निर्दोष पर्यटकों पर हुए बर्बर आतंकी हमले के बाद भारत पर निर्णायक कार्रवाई का भारी दबाव था। “ऑपरेशन सिंदूर” उसी दबाव का परिणाम था, जिसमें भारतीय सेना ने 7-8 मई की मध्यरात्रि और फिर 8-9 मई की मध्यरात्रि को पाकिस्तान के नौ शहरों में स्थित आतंकी शिविरों और लॉन्चपैड पर सटीक हमले किए थे। इन हमलों में 100 से अधिक आतंकियों के मारे जाने और आतंकी ढांचे को भारी नुकसान पहुंचने की खबरें थीं। भारत ने स्पष्ट कर दिया था कि यह कार्रवाई पाकिस्तान की संप्रभुता के खिलाफ नहीं, बल्कि उसकी धरती से सक्रिय उन आतंकी गुटों के खिलाफ थी जो भारत में लगातार हमले करते रहे हैं। इस ऑपरेशन ने पाकिस्तान को यह भी दिखा दिया कि भारत अब पारंपरिक सैन्य विकल्पों का इस्तेमाल करने से नहीं हिचकेगा।

अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की भूमिका और चिंताएं

 

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा मध्यस्थता का दावा और फिर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री द्वारा उनका आभार व्यक्त करना, जबकि जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां कर रही है, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए भी एक चिंता का विषय है। यह दर्शाता है कि पाकिस्तान के मामले में बाहरी शक्तियां किस हद तक प्रभावी हो सकती हैं, खासकर जब देश के भीतर ही सत्ता के कई केंद्र हों और उनमें तालमेल का अभाव हो।

यदि पाकिस्तानी सेना वास्तव में अपने नागरिक नेतृत्व की अवहेलना कर रही है, तो यह परमाणु-सशस्त्र देश की स्थिरता को लेकर गंभीर सवाल खड़े करता है। एक ऐसी सेना, जो अपने ही प्रधानमंत्री के शांति प्रयासों को पलीता लगाने पर आमादा हो, क्षेत्रीय और वैश्विक शांति के लिए एक बड़ा खतरा है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय, विशेषकर अमेरिका को, इस स्थिति की गंभीरता को समझना होगा और पाकिस्तान पर यह दबाव बनाना होगा कि वह एक जिम्मेदार राष्ट्र की तरह व्यवहार करे और अपनी धरती से आतंकवाद का खात्मा करे।

अनिश्चित भविष्य और भारत की दृढ़ता

 

कुल मिलाकर संघर्ष विराम की घोषणा के कुछ ही घंटों के भीतर उसका उल्लंघन और उसके पीछे पाकिस्तानी सेना की संभावित अवज्ञा ने दक्षिण एशिया में शांति की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। यह घटनाक्रम पाकिस्तान की आंतरिक राजनीतिक और सैन्य संरचना की जटिलताओं को उजागर करता है, जहां नागरिक सरकार अक्सर सेना की बंधक नज़र आती है।

भारत के लिए, यह स्थिति उसकी दृढ़ता और सतर्कता की परीक्षा है। “एक्ट ऑफ वॉर” की नई घोषणा यह दर्शाती है कि भारत अब आतंकवाद के मुद्दे पर किसी भी तरह की नरमी बरतने को तैयार नहीं है। आने वाले दिनों में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या पाकिस्तानी नागरिक सरकार अपनी सेना पर नियंत्रण स्थापित कर पाती है और शांति के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को ज़मीन पर उतार पाती है, या फिर पाकिस्तानी सेना की मनमानी इस क्षेत्र को और अधिक अस्थिरता और संघर्ष की ओर धकेल देगी। भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वह अपनी सुरक्षा के लिए सभी आवश्यक कदम उठाने को तैयार है, और अब गेंद पाकिस्तान के पाले में है कि वह शांति का मार्ग चुनता है या टकराव का। फिलहाल, नियंत्रण रेखा पर तनावपूर्ण शांति है, लेकिन यह शांति किसी भी समय भंग हो सकती है, खासकर तब जब एक पड़ोसी देश की सेना अपने ही नेतृत्व के शांति प्रयासों को विफल करने पर आमादा दिखे।

 

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