Chhath Puja 2024: सूर्योपासना का 4 दिवसीय छठ महापर्व आज से शुरू, जानें क्या है नहाय-खाय की परंपरा
नई दिल्ली, बीएनएम न्यूजः छठ पूजा हिंदू धर्म का बेहद महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है। इस साल इस महापर्व की शुरुआत नहाय-खाय के साथ आज यानी 5 नवंबर से हो गई है। इस चार दिवसीय त्योहार में 36 घंटे का कठोर उपवास रखा जाता है, जो सूर्य देव और उनकी बहन छठी माता को समर्पित है।
छठ पूजा बिहार और यूपी के सबसे बड़े और प्रमुख त्योहारों में से एक है, जहां घरों की सफाई से लेकर पूजा सामग्री, सूप खरीदने तक की तैयारी कई दिन पहले ही शुरू हो जाती है। यह पर्व (Chhath Puja 2024) वैदिक युग से चला आ रहा है, तो आइए इस महत्वपूर्ण पर्व से जुड़ी प्रमुख बातों को जानते हैं, जो इस प्रकार हैं।
नहाय-खाय परंपरा
दिवाली के चौथे दिन यानी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को नहाय-खाय की परंपरा होती है। इस दिन कुछ खास रीति-रिवाजों का पालन किया जाता है। इस साल छठ पूजा 5 नवंबर नहाय-खाय से शुरू हो रही है। इस दिन घर का शुद्धिकरण किया जाता है।
इसके बाद छठ व्रती स्नान कर शुद्ध सात्विक भोजन ग्रहण कर अपना व्रत शुरू करते हैं। नहाय-खाय में व्रती चावल के साथ लौकी की सब्जी, छोले और मूली आदि का सेवन करते हैं। उपवास करने वाले व्रती के भोजन करने के बाद ही परिवार के बाकी सदस्य इस महाप्रसाद का सेवन करते हैं।
नहाय-खाय का धार्मिक महत्व (Nahay Khay Significance)
नहाय-खाय को छठ पूजा की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। इस दिन व्रत करने वाले व्यक्ति किसी पवित्र नदी या तालाब में स्नान करते हैं और प्रसाद के रूप में कच्चे चावल, चने और लौकी की सब्जी भोजन के तौर पर ग्रहण करते हैं। यह भोजन शुद्ध और पवित्र माना जाता है। इस दिन नमक वाला भोजन केवल एक बार ही किया जाता है।
नहाय-खाय का सार पवित्रता से जुड़ा हुआ है, क्योंकि इस शुभ दिन पर व्रती खुद को शुद्ध करते हैं और सात्विक और पवित्र तरीके से छठ व्रत शुरू करते हैं।
क्यों मनाया जाता है छठ पर्व?
शास्त्रों के अनुसार, कार्तिक मास में सूर्य अपनी नीच राशि में होता है, इसलिए सूर्यदेव की विशेष उपासना की जाती है। ताकि स्वास्थ्य की समस्याएं परेशान ना करें। षष्ठी तिथि का सम्बन्ध संतान की आयु से होता है, इसलिए सूर्य देव और षष्ठी की पूजा से संतान प्राप्ति और उसकी आयु रक्षा दोनों हो जाती है। नहाए-खाए छठ महापर्व के पहले दिन की विधि होती है, जिसमें व्रती अपने शरीर और मन को शुद्ध करने के लिए इस प्रक्रिया का पालन करते हैं। यह दिन मुख्यतः शुद्धता और सरल भोजन के लिए होता है।
नहाए-खाए से छठ व्रत की शुरुआत
व्रती पहले दिन सुबह-सुबह किसी पवित्र नदी, तालाब या घर में स्नान करते हैं। पानी में थोड़ा सा गंगाजल जरूर मिला लें. स्नान के बाद पूरे घर की विशेष रूप से रसोई की सफाई की जाती है। रसोई को शुद्ध और पवित्र रखा जाता है। इसके बाद व्रती पूरे मन और आत्मा से छठ पूजा के नियमों का पालन करने का संकल्प लेते हैं।
नहाए-खाए के दिन व्रती सिर्फ सादा, सात्विक भोजन करते हैं। आमतौर पर चावल, चने की दाल और कद्दू की सब्जी बनाई जाती है। भोजन में लहसुन, प्याज या किसी भी तरह के मसालों का प्रयोग नहीं होता है। भोजन मिट्टी या कांसे के बर्तनों में पकाया जाता है और उसे लकड़ी या गोबर के उपलों पर पकाना पारंपरिक होता है। व्रती इसे शुद्धता के साथ ग्रहण करते हैं और उसके बाद ही परिवार के अन्य सदस्य भोजन करते हैं।
दूसरे दिन खरना
दूसरे दिन को “लोहंडा-खरना” कहा जाता है। इस दिन लोग उपवास रखकर शाम को खीर का सेवन करते हैं। खीर गन्ने के रस की बनी होती है। इसमें नमक या चीनी का प्रयोग नहीं होता है।
तीसरे दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य
छठ पर्व में तीसरे दिन उपवास रखकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। साथ में विशेष प्रकार का पकवान “ठेकुवा” और मौसमी फल चढ़ाया जाता है। अर्घ्य दूध और जल से दिया जाता है।
चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य
चौथे दिन बिल्कुल उगते हुए सूर्य को अंतिम अर्घ्य दिया जाता है। इसके बाद कच्चे दूध और प्रसाद को खाकर व्रत का समापन किया जाता है।
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