लोकतंत्र की मजबूती के लिए जरूरी हैं शब्द: मुकेश भारद्वाज

जगमोहन राय “सजल” के गजल-संग्रह “आईने, अक्स और साये के विमोचन एवं उस पर आयोजित संगोष्ठी में मौजूद अतिथिगण।
नई दिल्ली, बीएनएम न्यूज। फैज अहमद फैज की नज्म “हम देखेंगे / लाजिम है कि हम भी देखेंगे / वो दिन कि जिस का वादा है / जो लौह ए – अजल में लिख्खा है / जब जुल्म – ओ –सितम के कोह –ए- गिरां / रूई की तरह उड़ जाएंगें” – के बहाने जनसता के कार्यकारी संपादक और कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वक्ता मुकेश भारद्वाज ने कहा कि गजल, शायरी और कविता या कहें कि शब्दों में यह ताकत है कि वह सत्ता की कुर्सी हिला सकता है। फैज की नज्म ने पाकिस्तान में तानाशाही के खिलाफ लोकतंत्र की स्थापना में मदद की। हमारे यहां भी जरुरत है कि वैसी गजलें लिखी जाए जो लोकतंत्र को मजबूत करने में अपनी भूमिका निभाये। यह बात मुकेश भारद्वाज ने जगमोहन राय “सजल” के गजल-संग्रह “आईने, अक्स और साये के विमोचन एवं उस पर आयोजित संगोष्ठी में कही। उन्होंने कहा कि शब्दों में बहुत ताकत होती है उसे पहचानने और मजबूती से व्यक्त करने की जरुरत है।
गजलों में विविधता है, प्रेम भी है और दर्द भी
इससे पूर्व परमीत सिंह ने जगमोहन राय के गजलों का गायन किया और पुस्तक के लेखक ने अपनी चुनिंदा गजलों का पाठ किया। राजेन्द्र भवन में आयोजित इस कार्यक्रम के वक्ता विनय विश्वास ने कहा कि जगमोहन राय की गजलों में सहजता है। सादगी है और संघर्ष करने का माद्दा भी। उनकी गजलों में विविधता है। प्रेम भी है और दर्द भी। ‘‘पूछ रहे हैं सब ये हमसे क्यूं मुस्काना छोङ दिया, क्या बतलाएं के अब हमने दर्द छपाना छोड़ दिया।”
संवेदनाओं का मूल्यवान दस्तावेज
प्रारंभिक वक्तव्य देते हुए अनिरुद्ध ने कहा कि ‘आइने अक्स और साये’ को मैं एक संवेदनग्राही मन के संवेदनाओं का मूल्यवान दस्तावेज मानता हूं। कोई साहित्यकार कवि या शायर बड़ा तभी होता है जब वह जीवन के मूलभूत प्रश्नों पर विचार करता है। जिस समाज में स्त्रियों पर बर्बर यौन हिंसा के अपराध होते हों वहां एक पुरुष होना भर सजा से कम नहीं है। किसी संवेदनशील पुरुष को ऐसी हर खबर अपराधी होने के अहसास की यंत्रणा से गुज़ारती है – “अपने चेहरे को जो देखूं तो सिहर उठता हूं / मैं भी वहशी हूं मेरे पास न आए कोई ।“ यह अहसास जितना स्वाभाविक है, उतना ही दुर्लभ भी। साहित्य और जीवन में इस स्तर कीअनूभूति नहीं मिलती।
एक प्रहारपूर्ण राजनीतिक स्टेटमेंट है
मिथलेश श्रीवास्तव ने अपने वक्तव्य में जगमोहन राय के हवाले से कहा कि जिन्होंने ने अपने चेहरे पर कई-कई मुखोटे लगा रखे हैं, वे दूसरों को दर्पण दिखाने की कोशिश न करें – “जिनके चेहरे पे कई चेहरे हैं , आईना वो न दिखाएँ हमको।” यह एकदम साफ़ सोच वाली एक प्रहारपूर्ण राजनीतिक स्टेटमेंट है।वे अपने शेर “एक भटकी बूँद सहरा में गिरी, रेत ये समझी बहारें आ गयीं” में लोगों की मासूमियत का बहुत खूबसूरत वर्णन करते हैं। उन्होंने अपने दिल के सारे रहस्यअपने इस ग़ज़ल-संग्रह में खोलकर रख दिए हैं – “जो दिल के राज़ थे वो सब बता चुका हूँ मैं / नहीं है कोई वजह अब तो कुछ छुपाने की।”
भाषा में है “वचन–वक्रता”
कार्यक्रम का संचालन करते हुए राजकुमार ने कहा कि जगमोहन राय की गजलों में भले इनोसेंस, सरलता, सहजता दिखता है लेकिन उनकी भाषा में “वचन–वक्रता” है। “कौन समझेगा अगर ये बात कर भी लूं कुबूल / वो मेरा जान-ए-जिगर था, और कुछ रिश्ता न था” शेर के हवाले से कहा कि जगमोहन राय एक ही पंक्ति में भाव-विपर्यय का सामर्थ्य रखते हैं। जिसके कारण भाषा में तनाव पैदा होता है और काव्य में सौंदर्य का प्रस्फुटन।
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