डीयू में बीकॉम ऑनर्स में गणित को अनिवार्य विषय बनाने की तैयारी, छात्रों ने दी तीखी प्रतिक्रिया

नई दिल्ली, बीएमएस न्यूज: Delhi University: दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) में बीकॉम ऑनर्स के प्रवेश प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण बदलाव किया गया है, जिसके अनुसार अब छात्रों को गणित विषय पढ़ना अनिवार्य होगा। पहले, छात्रों को गणित और अकाउंटेंसी के बीच चयन करने का विकल्प था, लेकिन अब निर्णय लिया गया है कि गणित को अनिवार्य विषय बनाया जाए। इस बदलाव का उद्देश्य पिछले कुछ वर्षों में बीकाम आनर्स कार्यक्रम में छात्रों के खराब प्रदर्शन को सुधारना है।
प्रवेश प्रक्रिया में बदलाव
दिल्ली विश्वविद्यालय में बीकॉम ऑनर्स कार्यक्रम के लिए प्रवेश प्रक्रिया हाल के वर्षो में कामन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट (सीयूईटी) के माध्यम से होती आ रही है। पहले गणित का विकल्प केवल एक विकल्प था, लेकिन अब इसे अनिवार्य किया गया है। इस निर्णय का मुख्य कारण यह है कि पिछले तीन सालों में बीकम आनर्स के छात्रों का प्रदर्शन अपेक्षाकृत कमजोर रहा है। डीयू के कामर्स विभाग के अध्यक्ष प्रो. अजय सिंह ने इस बदलाव की पुष्टि की है और कहा है कि गणित को अनिवार्य करने का निर्णय छात्रों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए लिया गया है।
गणित के बिना छात्रों की चुनौतियां
इस बदलाव के कारण उन छात्रों के लिए समस्या खड़ी हो गई है जिन्होंने 12वीं कक्षा में गणित का अध्ययन नहीं किया। ऐसे छात्रों को अब बीकाम आनर्स में प्रवेश पाने के लिए संघर्ष करना पड़ेगा। गणित के बिना वे इस कोर्स में दाखिला नहीं ले सकेंगे, जिससे उनके भविष्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। विशेष रूप से वे छात्र जो पहले से ही अन्य विषयों में अच्छा प्रदर्शन कर रहे थे, अब गणित की कमी के कारण इस अवसर से वंचित हो सकते हैं।
डीयू के राजधानी कॉलेज में गणित के प्रोफेसर और इंटेक के चेयरमैन प्रो. पंकज गर्ग ने चेतावनी दी है कि यह निर्णय उन छात्रों के लिए धोखे जैसा है जो बिना गणित के सीयूईटी में अच्छे अंक प्राप्त कर चुके थे। उन्होंने कहा कि हजारों छात्र ऐसे हैं जिन्होंने गणित को एक विषय के रूप में चुना नहीं था और अब वे इस नए नियम के कारण प्रभावित होंगे।
छात्रों की प्रतिक्रियाएं
इस निर्णय के खिलाफ छात्र समुदाय में व्यापक असंतोष है। सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर छात्रों ने अपनी भावनाएँ व्यक्त की हैं और इस निर्धारित नियम को छात्रों के हितों के खिलाफ बताया है। डीयू के छात्र संगठन डूसू के अध्यक्ष रौनक खत्री ने इस मुद्दे पर अपनी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा, “हम 12वीं कक्षा में गैर-गणित की पढ़ाई कर रहे छात्रों के साथ हैं। यह निर्णय छात्र समुदाय के हितों के खिलाफ है और इसे वापस लिया जाना चाहिए।”
छात्रों ने यह भी सवाल उठाया है कि पिछले साल कोई निर्णय क्यों नहीं लिया गया, इस दौरान कई छात्र बिना गणित के अच्छे अंक प्राप्त करके विभिन्न प्रतिष्ठित कॉलेजों में अध्ययन कर रहे हैं।
भविष्य की संभावनाएं
गणित को अनिवार्य बनाने का निर्णय न केवल वर्तमान छात्रों को प्रभावित करेगा, बल्कि भविष्य में प्रवेश लेने वाले छात्रों पर भी इसका बड़ा असर पड़ेगा। यदि छात्र बीकॉम प्रोग्राम में दाखिला लेते हैं और चार वर्ष बाद उन्हें ऑनर्स डिग्री प्राप्त होती है, तो उनकी डिग्री रिसर्च के साथ नहीं होगी। बाजार में बीकम आनर्स की मांग बनी हुई है, और इस निर्णय ने छात्र समुदाय में एक अंसतोष की लहर पैदा कर दी है।
दूसरी ओर, डीयू प्रशासन का मानना है कि यह कदम आवश्यक है क्योंकि बीकॉम ऑनर्स के छात्रों ने पिछले सालों में महत्त्वपूर्ण समझ और कौशल का प्रदर्शन नहीं किया है। गणित का ज्ञान व्यापारिक जगत में महत्वपूर्ण है, और इसलिए इसे अनिवार्य करते हुए छात्रों की क्षमता को बढ़ावा देने की कोशिश की जा रही है।
क्या यह निर्णय उचित है?
इस निर्णय के पीछे की सोच भी सही है, क्योंकि गणित आज के कारोबारी वातावरण में एक आवश्यक कौशल है। लेकिन इसका क्रियान्वयन छात्रों के मौजूदा बैचों पर क्या प्रभाव डालेगा, यह एक बड़ा प्रश्न है। क्या छात्रों को भविष्य की अनिवार्यताओं को ध्यान में रखते हुए फिर से एक बार गणित के महत्व को समझाना चाहिए? या फिर क्या उन्हें बिना गणित के अपने सपनों को पूरा करने के लिए संघर्ष करना होगा?
इस स्थिति का हल क्या हो सकता है? क्या डीयू मौजूदा छात्रों के लिए एक समायोजन कर सकती है जिससे वे बिना गणित के भी कुछ विकल्पों का उपयोग कर सकें? या फिर क्या उन्हें अपने भविष्य के लिए किसी अन्य मार्ग की तलाश करनी पड़ेगी?
छात्रों के लिए चौंकाने वाला निर्णय
दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा बीकॉम आनर्स में गणित को अनिवार्य बनाने का निर्णय छात्रों के लिए चौंकाने वाला है। इस निर्णय ने छात्रों के बीच चिंता और असंतोष की लहर पैदा कर दी है। मिश्रित प्रतिक्रियाओं के बीच, यह स्पष्ट है कि वर्तमान छात्रों के लिए इस निर्णय का नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और उन्हें अपनी पढ़ाई की दिशा में पुनर्विचार करने पर मजबूर करना पड़ेगा।
इस विषय पर शिक्षा अधिकारियों, प्राध्यापकों और छात्रों के बीच संवाद होना आवश्यक है, ताकि सभी की प्रतिभा और ज्ञान को ध्यान में रखते हुए उचित निर्णय लिया जा सके। छात्रों के साथ संवाद ही उनके भविष्य को स्पष्ट दिशा देने में मददगार सिद्ध होगा।
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