हरियाणवी मॉडल मर्डर केस में खुलासा: कार में आरोपी बॉयफ्रेंड से मंगेतर का कॉल आने पर लड़ाई हुई, चाकू से गोदा

सुनील और शीतल। फाइल
नरेन्द्र सहारण, पानीपत : पानीपत पुलिस की सीआइए-वन टीम की गिरफ्त में दो दिन की रिमांड पर इसराना का सुनील अब वह शख्स नहीं था जो कुछ दिन पहले नहर से “बचाया गया” एक बेबस पीड़ित होने का नाटक कर रहा था। उसके चेहरे पर अब डर या सदमे का मुखौटा नहीं बल्कि अपने ही किए गए एक जघन्य अपराध का बोझ था। पुलिस की गहन पूछताछ के आगे उसका बनाया हुआ झूठ का किला ढह गया और उसने अपनी प्रेमिका, हरियाणवी मॉडल शीतल उर्फ सिम्मी चौधरी की हत्या की पूरी कहानी परत-दर-परत उगल दी।
उसका कबूलनामा किसी सुनियोजित साजिश की कहानी नहीं बल्कि महीनों से सुलग रही जलन, शक और एकाधिकार की उस जानलेवा भावना का भयावह अंत था, जिसे एक फोन कॉल ने बारूद की तरह भड़का दिया। डीएसपी सतीश वत्स द्वारा की गई प्रेस वार्ता और पुलिस द्वारा कराए गए “सीन री-क्रिएशन” ने शीतल के आखिरी घंटों की एक ऐसी तस्वीर पेश की है जो सुनकर ही रूह कांप जाती है। यह कहानी सिर्फ एक कत्ल की नहीं, बल्कि एक महिला की तड़पती हुई मौत और उसके बाद कातिल के ठंडे दिमाग से किए गए वहशीपन की है।
रिमांड पर टूटा वहशीपन का तिलिस्म
सोमवार देर शाम अस्पताल से गिरफ्तारी के बाद सीआइए-वन ने सुनील को कोर्ट में पेश कर दो दिन की रिमांड पर लिया। पुलिस का उद्देश्य केवल हत्या की पुष्टि करना नहीं, बल्कि ‘क्यों’ और ‘कैसे’ के हर पहलू को उजागर करना था। रिमांड के दौरान सुनील ने जो कुछ बताया, वह एक बीमार और अधिकारवादी मानसिकता को दर्शाता है।
उसने कबूल किया कि पिछले कई महीनों से शीतल उसे अनदेखा कर रही थी। उसका ध्यान अपने करियर और शायद किसी और पर था। सुनील को यह महसूस हो रहा था कि शीतल पर से उसका नियंत्रण खत्म हो रहा है। वह महिला जिसे वह अपनी “संपत्ति” समझता था अब अपनी मर्जी से जी रही थी और यह बात उसे अंदर ही अंदर खाए जा रही थी। उसने कई बार शीतल को किसी लड़के से फोन पर बात करने से रोका लेकिन शीतल ने उसकी पाबंदियों को मानने से इनकार कर दिया था। यह इनकार सुनील के पुरुषवादी अहंकार पर एक सीधी चोट थी। वह इसे अपनी तौहीन समझता था। शनिवार की रात इसी सुलगती हुई आग को एक फोन कॉल की हवा ने ज्वालामुखी बना दिया।
जब हैवानियत ने ली अंगड़ाई
पुलिस के लिए केवल कबूलनामा काफी नहीं था। वे हर सबूत को पुख्ता करना चाहते थे। इसी क्रम में सीआइए-वन की टीम सुनील को उसी कार में लेकर मतलौडा के पास उस सुनसान सड़क पर पहुंची जहां उसने शीतल की जिंदगी का सबसे खौफनाक अध्याय लिखा था।
सीन री-क्रिएशन का भयावह मंजर
पुलिस की जीप के आगे हथकड़ियों में जकड़ा सुनील कार से उतरा। रात के अंधेरे में उस सड़क पर शायद वैसा ही सन्नाटा था जैसा उस रात रहा होगा। सुनील ने पुलिस को बताया कि शनिवार रात लगभग 10 बजे वे अहर गांव की गोशाला से शूटिंग खत्म कर पानीपत के लिए निकले थे। शीतल अगली सीट पर उसके बगल में बैठी थी। कार में उसका पर्स, उसके कपड़े और उसका मोबाइल पड़ा था।
लगभग 12 बजे जब वे मतलौडा के पास थे, शीतल के मोबाइल पर एक लड़के की कॉल आई। सुनील ने उसे बात करने से मना किया, लेकिन शीतल नहीं मानी। वह फोन पर बात करती रही। यह सुनील के लिए बर्दाश्त की हद थी। उसे लगा कि शीतल खुलेआम उसे चुनौती दे रही है। उसने गुस्से में कार को सड़क के किनारे रोका। शीतल कुछ समझ पाती, उससे पहले ही सुनील ने डैशबोर्ड से एक चाकू निकाला जिसे वह शायद हमेशा अपनी कार में रखता था। और फिर उसने अपनी ही प्रेमिका पर ताबड़तोड़ हमला कर दिया। शीतल ने हाथ-पैर मारकर खुद को बचाने की भरपूर कोशिश की। उसके हाथ जो शायद चाकू को रोकने के लिए उठे होंगे, जख्मी हो गए। लेकिन सुनील के सिर पर खून सवार था। चाकू का एक गहरा वार शीतल की गर्दन पर लगा और खून का फव्वारा फूट पड़ा। पुलिस को उसी जगह से शीतल की एक सैंडिल मिली, शायद संघर्ष के दौरान कार से बाहर गिर गई होगी। यह सैंडिल उस बेबस लड़ाई की खामोश गवाह थी।
तड़प और क्रूरता की इंतहा
इस कहानी का सबसे वीभत्स हिस्सा अब शुरू होता है। सुनील के कबूलनामे के अनुसार, गर्दन पर चाकू लगने के बाद शीतल मरी नहीं थी। वह गंभीर रूप से घायल थी, खून से लथपथ थी और दर्द से तड़प रही थी। एक सामान्य इंसान शायद घबराकर उसे अस्पताल ले जाने की सोचता लेकिन सुनील एक कातिल बन चुका था। उसने प्रेमिका को उसी तड़पती अवस्था में कार में डाले रखा और मतलौडा से जाटल रोड स्थित दिल्ली पैरलल नहर की ओर चल पड़ा। यह लगभग एक घंटे का सफर था। एक घंटा जब शीतल जिंदगी और मौत के बीच झूल रही थी और उसका प्रेमी जो अब उसका हत्यारा था शांति से कार चला रहा था यह सोचते हुए कि इस शरीर और इस गुनाह से कैसे छुटकारा पाया जाए।
जब वह नहर पर पहुंचा तो उसने अपनी क्रूरता को और आगे बढ़ाया। उसने कार के चारों शीशे नीचे किए और कार को सीधे नहर में धकेल दिया। जब कार में तेजी से पानी भरने लगा और वह डूबने लगी तो उसने शीतल जो शायद तब तक अपनी आखिरी सांसें ले रही थी को खिड़की से बाहर खींचा और तेज बहाव वाली नहर में बहा दिया। उसने यह सुनिश्चित किया कि शरीर कार के साथ न मिले ताकि अगर कार बरामद हो भी तो शरीर न मिल पाए और कहानी एक हादसा ही लगे।
इसके बाद वह खुद तैरकर बाहर निकल आया और लोगों के आने पर बेहोश होने का वो नाटक किया जिसने शुरुआत में पुलिस को भी गुमराह करने की कोशिश की थी।
विशाल, टैटू और एक फोन कॉल
सुनील के कबूलनामे ने अब सारी बिखरी कड़ियों को एक साथ जोड़ दिया था।
टैटू का रहस्य: जब शीतल का शव सोनीपत में मिला था, तो उसकी पहचान उसके हाथ पर गुदे ‘विशाल’ नाम के टैटू से हुई थी। उसकी बहन नेहा ने बताया था कि शीतल पहले विशाल से शादी करना चाहती थी।
फोन कॉल का सच: अब सुनील ने बताया कि हत्या का कारण एक लड़के का फोन कॉल था। पुलिस को पूरा यकीन है कि यह फोन कॉल संभवतः उसी विशाल का था, जिसका नाम शीतल ने अपने हाथ पर गुदवा रखा था। यह एक दुखद विडंबना थी कि जिस व्यक्ति का नाम उसने अपने शरीर पर स्थायी रूप से अंकित करवाया था, उसी से बात करना उसकी मौत का तात्कालिक कारण बन गया।
अहम सबूत: पुलिस ने शीतल का मोबाइल फोन भी बरामद कर लिया है, जो इस मामले में एक महत्वपूर्ण सबूत है। कॉल लॉग्स से यह पुष्टि हो जाएगी कि आखिरी कॉल किसकी थी, जिससे सुनील के बयान की पुष्टि होगी और अभियोजन पक्ष का मामला और मजबूत होगा।
गुस्से और जुनून में की गई क्रूर हत्या
डीएसपी सतीश वत्स ने स्पष्ट किया कि यह मामला अब पूरी तरह से सुलझ चुका है। यह एक पूर्व नियोजित हत्या नहीं बल्कि गुस्से और जुनून में की गई एक क्रूर हत्या थी। लेकिन यह गुस्सा अचानक पैदा नहीं हुआ था। यह महीनों के शक, असुरक्षा और एक महिला को नियंत्रित करने की नाकाम कोशिश का नतीजा था।
शीतल चौधरी की कहानी सिर्फ एक क्राइम रिपोर्ट नहीं है। यह हमारे समाज के उस स्याह पहलू को उजागर करती है, जहां पुरुष अपनी साथी महिला को अपनी जागीर समझने की गलती कर बैठते हैं। जहां एक महिला का अपनी मर्जी से फोन पर बात करना भी उसकी जान लेने का कारण बन सकता है। शीतल ने अपने सपनों के लिए एक पारंपरिक जीवन छोड़ा था, लेकिन वह उस जहरीली मानसिकता से नहीं बच सकी जो प्यार के नाम पर अधिकार और हिंसा को जायज ठहराती है।
अब जबकि कातिल सलाखों के पीछे है और उसने अपना गुनाह कबूल कर लिया है कानून अपना काम करेगा। लेकिन यह मामला समाज के लिए गहरे चिंतन का विषय छोड़ गया है। शीतल के दो मासूम बच्चों का भविष्य अब क्या होगा? उसके परिवार को इस सदमे से उबरने में कितना समय लगेगा? और सबसे बड़ा सवाल आखिर कब तक प्यार और रिश्तों के नाम पर ऐसी हिंसक और जानलेवा मानसिकताएं जिंदगियों को खत्म करती रहेंगी? शीतल की रील की दुनिया भले ही खत्म हो गई हो, लेकिन उसकी असल जिंदगी का यह दर्दनाक अंत एक ऐसी हकीकत है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।