मतदान की तारीखों के ऐलान से पहले चुनाव आयुक्त का इस्तीफा, कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों ने जताई चिंता

नई दिल्ली, BNM News: लोकसभा चुनाव की घोषणा होने से एन पहले चुनाव आयुक्त अरुण गोयल ने शनिवार को अपने पद से त्यागपत्र दे दिया है। इससे राजनीतिक माहौल को गरमा दिया है। उनके त्यागपत्र को राष्ट्रपति ने तुरंत स्वीकार कर लिया है। हालांकि, उनके इस्तीफे का कारण स्पष्ट नहीं हो सका है, लेकिन इसके पीछे उनकी नियुक्ति को लेकर उठे विवाद को बड़ी वजह के तौर पर देखा जा रहा है। गोयल के इस्तीफे के साथ ही चुनाव आयोग में अब चुनाव आयुक्त के दोनों पद खाली हो गए हैं। इससे पहले फरवरी में अनूप चंद्र पांडेय के सेवानिवृत्त होने से चुनाव आयुक्त का एक पद खाली हो गया था।

कांग्रेस ने जताई चिंता

 

वहीं चुनावों की घोषणा से ठीक पहले कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने अरुण गोयल के इस्तीफे पर चिंता जताई है। कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कहा कि यह काफी चौंकाने वाला है। चुनाव की घोषणा से ठीक पहले चुनाव आयुक्त ने इस्तीफा दे दिया है। इस चुनाव आयोग में क्या हो रहा है। मुझे लगता है कि भारत सरकार स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव नहीं चाहती…यह देश के लिए चौंकाने वाली खबर है।

त्यागपत्र के बाद स्थिति और जटिल

अरुण गोयल ने अपने पद से त्यागपत्र ऐसे समय दिया है, जब चुनाव आयोग में चुनाव आयुक्त के खाली पड़े एक पद को भरने की प्रक्रिया चल रही थी। माना जा रहा था कि लोकसभा चुनाव की घोषणा से पहले आयोग में नए आयुक्त की तैनाती कर दी जा सकती है। हालांकि, गोयल द्वारा अचानक दिए गए त्यागपत्र के बाद स्थिति और जटिल हो गई है। लोकसभा चुनाव के समय अब चुनाव का पूरा जिम्मा मुख्य चुनाव आयुक्त के कंधों पर ही आ गया है। बता दें कि गोयल का बतौर चुनाव आयुक्त पांच दिसंबर, 2027 तक कार्यकाल था। अगले साल फरवरी में राजीव कुमार के सेवानिवृत्त होने के बाद वह देश का मुख्य चुनाव बन सकते थे।

इससे पहले अशोक लवासा ने दिया था इस्तीफा

सूत्रों की मानें, तो लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बनी स्थिति से निपटने के लिए सरकार जल्द ही चुनाव आयुक्त के दोनों रिक्त पदों को भरने का फैसला ले सकती है। 2019 के लोकसभा चुनाव में आचार संहिता उल्लंघन से जुड़े कई फैसलों में असहमति दर्ज कराने वाले अशोक लवासा ने अगस्त 2020 में चुनाव आयुक्त के पद से त्यागपत्र दिया था। मूल रूप से चुनाव आयोग एक सदस्यीय होता था। पहली बार दो अतिरिक्त चुनाव आयुक्त 16 अक्टूबर, 1989 को नियुक्त किए गए थे, लेकिन उनका कार्यकाल बहुत छोटा रहा। वे एक जनवरी, 1990 तक ही पद पर रहे। बाद में एक अक्टूबर, 1993 को एक बार फिर से दो अतिरिक्त चुनाव आयुक्त नियुक्त किए गए। तब से तीन सदस्यीय चुनाव आयोग काम कर रहा है। आयोग में कोई निर्णय बहुमत से होता है।

सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था गोयल की नियुक्ति का मामला

अरुण गोयल की नियुक्ति के समय से विवाद था। पूरा मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था। शीर्ष अदालत ने भी उनकी नियुक्ति पर सवाल उठाया था। अदालत ने चुनाव आयुक्त के करीब एक साल से खाली पड़े पद को आनन-फानन में भरे जाने को लेकर भी सवाल किया था। दरअसल, स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने के दूसरे दिन ही गोयल की चुनाव आयुक्त के पद पर नियुक्ति कर दी गई थी। वह इससे पहले केंद्र सरकार के भारी उद्योग मंत्रालय में सचिव के पद पर थे। वह 1985 बैच के आइएएस अधिकारी रहे हैं। चुनाव आयुक्त के पद उनकी नियुक्ति 19 नवंबर, 2022 को की गई थी।

चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के नए कानून पर भी हुआ था हंगामा

सुप्रीम कोर्ट की ओर से चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर सवाल खड़े किए जाने और इसे लेकर एक पारदर्शी व्यवस्था के निर्देश के बाद सरकार की ओर से हाल ही में इसको लेकर एक कानून बनाया गया। इसमें इनकी नियुक्ति के लिए प्रधानमंत्री की अगुआई में एक तीन सदस्यीय समिति गठित की गई। इसके दो अन्य सदस्यों के रूप में पीएम की ओर से नामित कोई वरिष्ठ मंत्री (मौजूदा समय में कानून मंत्री) के साथ ही लोकसभा में विपक्ष के नेता या फिर सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता को रखा गया है। हालांकि विपक्षी पार्टियां इसको लेकर सवाल खड़ा कर रही थीं। साथ ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा इनकी नियुक्ति को लेकर बनाई गई अस्थायी समिति को ही बरकरार रखने की मांग कर रही थीं। पीएम की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय अस्थायी समिति में सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश और लोकसभा में विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी के नेता को रखा गया था। इससे पहले इनके चयन को अंतिम मंजूरी चयन समिति की सिफारिश पर पीएम ही देते थे।

 

 

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