मंडी में होते हैं, किसान परेशान, समस्याएं अनेक न कोई समाधान

नरेन्द्र सहारण कलायत। कलायत मे किसान चौंक पर  भारतीय किसान यूनियन  जिला स्तरीय मासिक मिटींग जिले सिंह मोर की अध्यक्षता में हुई व मुख्य तौर पर सहारण खाप के पूर्व प्रधान रामपाल सहारण उपस्थित रहे भारतीय किसान यूनियन की इस मीटिंग में गेहूं की पक्की हुई फसल को मंडी में बेचने के समय किसानों को आने वाली समस्याओं पर चर्चा करके समस्याओं का समाधान करने का कार्य किया गया है। किसानो की समस्या के कुछ मुख्य बिंदुओं पर विचार विमर्श कर मामले को एसडीएम के संज्ञान में ज्ञापन रूप में सोंपा गया।

कृषि बाजार विपणन निति का विरोध किया।

 

भारतीय किसान यूनियन के जिला संयोजक गुरनाम सिंह सहारण ने बताया कि फसलों के थोक बाजार के लिए केंद्र सरकार द्वारा तैयार की गई राष्ट्रीय कृषि विपणन नीति के मसौदे (ड्राफ्ट) ने किसानों की चिंता फिर से बढ़ा दी है। किसान संगठन इसे थोक बाजारों के निजीकरण की ओर बढ़ाया गया एक और कदम मान रहे हैं।ध्यान रहे कि ये थोक बाजार किसानों की उपज की बिक्री का सबसे महत्वपूर्ण पहला पड़ाव होता है। ये बाजार अकेले व्यापार केंद्र नहीं हैं, बल्कि वे सभी फसलों की मांग, कीमतों और अंत में ये किसानों की आजीविका को निर्धारित करते हैं।इस बारे में संयुक्त किसान मोर्चे का कहना है कि हमें लगता है कि यह मसौदा केंद्र सरकार द्वारा 2020-21 में लाए गए कृषि कानूनों को पिछले दरवाजे से लाने की एक अदद कोशिश है।

 

ध्यान रहे कि इन्हीं कृषि कानूनों के विरोध में देशभर के किसानों ने विरोध प्रदर्शन किया था, क्योंकि उनको लगता था कि इन कानूनों से कृषि पर नियंत्रण मुट्टीभर कारपोरेट के हाथों हवाले कर दिए जाएंगे। पुरानी मसौदा नीति 25 नवंबर 2024 को जारी की गई थी, जिसमें टिप्पणियों के लिए केवल 14 दिनों की अल्प अवधि दी गई थी।इसमें कहा गया है कि भारत में 27 राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों में लागू कृषि उपज विपणन समिति (एपीएमसी) कानूनों के तहत विनियमित 7,057 एपीएमसी की मंडियां हैं। साथ ही 125 निजी थोक बाजार और लगभग 500 अनियमित थोक बाजार हैं। देश में ग्रामीण हाट और अन्य छोटे बाजार भी हैं जो या तो एपीएमसी के अधीन हैं या निजी स्तर पर और स्थानीय निकायों द्वारा चलाए जाते हैं।हालांकि 15 राज्यों ने निजी थोक बाजारों को अनुमति दी है।लेकिन वे वर्तमान में सीमित सफलता के साथ केवल पांच राज्यों में संचालित होते हैं। फिर भी मसौदा नीति उन्हें देश भर में विस्तारित करने का प्रस्ताव करती है।इसके अलावा 21 राज्यों में बागवानी उत्पादों के विपणन में निजी व्यापारियों को अनुमति दी गई है। सिंह कहते हैं, “फिर भी किसानों को जल्दी खराब होने वाली फसलों पर खराब रिटर्न मिल रहा है। ये उच्च मूल्य वाली फसलें हैं और उन्हें बाजार की ताकतों के भरोसे छोड़ने से किसानों के हितों की पूर्ति नहीं करेगा।” मसौदा नीति अधिक निजी भागीदारी पर जोर दे रही है लेकिन निजी बाजारों में बिक्री करने वाले किसानों के लिए एक मजबूत शिकायत निवारण तंत्र प्रदान नहीं करती है, जिसकी मांग किसान 2020-21 से करते आ रहे हैं।मसौदे में आगे एपीएमसी और राज्य कृषि बाजार बोर्डों द्वारा एकत्र किए जाने वाले बाजार शुल्क को खराब होने वाले उत्पादों के लिए 1 प्रतिशत और गैर-खराब होने वाले उत्पादों के लिए 2 प्रतिशत तक सीमित करने का प्रस्ताव है। पंजाब सरकार ने इस कदम का विरोध करते हुए तर्क दिया है कि राजस्व का उपयोग ग्रामीण सड़क नेटवर्क स्थापित करने और मंडी के बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए किया जाता है।

 

 

 

हालांकि इनमें से कई उपाय पहले से ही लागू हैं। उदाहरण के लिए 25 राज्यों ने पहले ही बाजार शुल्क को युक्तिसंगत बनाने की अधिसूचना जारी कर दी है। 15 राज्य निजी बाजारों को अनुमति देते हैं और 12 राज्यों के पास ई-ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म हैं। रामकुमार कहते हैं, “अब वही पुराने बिंदु फिर से पेश किए गए हैं।”मसौदे में एक महत्वपूर्ण चूक यह है कि इसमें पशुधन विपणन को शामिल नहीं किया गया है जो किसान की आय का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। सैनी कहती हैं, “किसानों के लिए पशुधन उनकी आय का एक अभिन्न अंग है। हालांकि नीति निर्माण में पशुधन मंडियां अनाथ बनी हुई हैं।”

 

जब तक M.S.P. गारंटी कानून नहीं बनता तब तक BK.U का संघर्ष जारी रहेगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर दिया था. अब आज से शुरू हो रहे शीतकालीन सत्र में इन कानूनों को निरस्त कर दिए जाएगा।तलेकिन किसान नेता अब भी न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को गारंटी देने के लिए एक कानून बनाए जाने की मांग कर रहे हैं।

 

किसान नेता गुरनाम सहारण ने कहा है कि जब तक न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानून नहीं आता तब तक पर प्रदर्शन करेंगे. समर्थन मूल्य पर किसानों की मांग है क्या ? और सरकार इसके लिए तैयार क्यों नहीं है?इन्हीं सवालों का जवाब तलाशने के लिए पिछले साल दिसंबर में हमने ये रिपोर्ट लिखी थी।किसान संगठन लंबे समय से MSP गारंटी कानून की मांग कर रहे हैं, ताकि किसान अपनी फसल को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बेच सकें और उन्हें उनके उत्पाद का उचित मूल्य मिल सके. यह कानून किसानों के हित में होगा और उन्हें बाजार में दामों की अनिश्चितता से बचाएगा. किसान नेताओं का कहना है कि बिना MSP गारंटी के, किसान बाजार की मनमानी और व्यापारी वर्ग की असंवेदनशीलता का शिकार होते हैं. ऐसे में, MSP गारंटी कानून से किसानों को आर्थिक सुरक्षा मिलेगी और वे अपनी मेहनत का सही मूल्य प्राप्त कर सकेंगे.

 

 

कृषि विपणन मंडी बोर्ड द्वारा बनाई गई सड़कों का है खस्ता हाल।

 

खेतों से फसल अनाज मंडी तक लाने के लिए बनाई गई सड़क खुर्द बुर्द हो चुकी हैं गेहूं के सीजन की देखते हुए मार्केट कमेटी का दौरा कर एस डी एम के संज्ञान में दिया ।समय रहते हुए पिंजुपरा से कलायत मंडी रोड व बालू से कलायत रोड़ पर गड्डे बने हुए है उनको तत्काल प्रभाव से ठीक किया जाए।

 

मंडी में पानी व सौचालय की सुविधा हो,बारदाने ,फसल उठान समय पर होना चाहिए। 

 

अनाज मंडी में पेयजल और शौचालय की समस्या होने से अपनी फसल को छोड़कर शौच व पेयजल के लिए जाना पड़ रहा है। इससे परेशानी होती है।  समय से फसल का उठान बारदाने की उपलब्धता पर मार्केटिंग बोर्ड काे संज्ञान लेना चाहिए ।

 

किसान चौक के निर्माण से लेकर आज तक का लेखा जोरता प्रस्तुत किया गया।

नेशनल हाईवे 165 नंबर पर किसानों के सम्मान का प्रतीक किसान चौक निर्माण करवाया गया था,इस किसान चौक के निर्माण में धनराशि खर्च हुई इसका लेखा-जोखा इस मीटिंग में दिया गया है, किसान यूनियन के प्रधान व सदस्यों के समक्ष किसान चौक निर्माण मे उपयोग की गई सामग्री व  मजदूरी सहित सभी प्रकार के उल्लेखों को स्पष्ट किया गया।

 

 

जिला अध्यक्षण गुरनाम सिंह सहारण ने आम जन से अपील की कोई भी साथी गेहूं सीजन को देखते हुए भीडी, सीग्रेट न पीयें और किसान साथियों से से निवेदन किया जलदबाजी में किसान नमी की गेहूं की कटाई न करे।इस  मौके पर जिला संरक्षक बन्नी सिंह राणा, जोरा सिंह मोर, कृष्ण शिमला, सुरेंद्र चौशाला, लहरी मटौर बीरा रामगढ़, दिनेश मटोर, रामशेर दुब्बल, सरजीत  बलकार सहारण, आदि मौजूद रहे।प्रीतम सिंह जाखड़, जगदीश सहारण

 

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