Ghazipur Loksabha Seat: विधानसभा की 5 में से 4 सीटें हारने के बाद भी जानें कैसे BJP उम्मीदवार के पक्ष में हैं समीकरण?

लखनऊ, BNM News: Ghazipur Loksabha Seat: गाजीपुर लोकसभा सीट से इंडिया गठबंधन ने उम्मीदवार मैदान में उतार दिया है। समाजवादी पार्टी ने अफजाल अंसारी (Afzal Ansari) को यहां से उम्मीदवार बनाया है। दूसरी तरफ बीजेपी ने अभी तक अपना उम्मीदवार नहीं उतरा है। माना जा रहा है कि इस बार मनोज सिन्हा (Manoj Sinha) के बेटे अभिनव सिन्हा (Abhinav Sinha) को बीजेपी उम्मीदवार बना सकती है। हालांकि, उनके अलावा कई और नामों पर भी चर्चा है। इस सीट से दो बार 2004 और 2019 में अफजाल अंसारी सांसद रह चुके हैं। भाजपा के मनोज सिन्हा तीन बार 1996, 1999 और 2014 में सांसद रह चुके हैं। वह इस समय वक्त जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल हैं। जातीय समीकरण के हिसाब से यह सीट भाजपा के लिए काफी मुश्किल मानी जाती है, लेकिन, ओमप्रकाश राजभर (Omprakash Rajbhar) की सुभाषपा के एनडीए में शामिल होने से गाजीपुर लोकसभा सीट पर भाजपा की राह थोड़ी आसान हुई है। इसके अलावा 2019 में मनोज सिन्हा के हारने से गाजीपुर में विकास कार्य रूक गए, जो 2014 से 2019 के बीच हुए थे। इससे आम लोगों में निराशा है। अफजाल अंसारी गाजीपुर में कोई विकास कार्य नहीं करा पाए। लोगों में जबरदस्त निराशा है। ऐसे में लोग बदलाव चाहते हैं।

गाजीपुर की चार सीटों पर सपा का कब्जा

गाजीपुर लोकसभा क्षेत्र में कुल पांच विधानसभा क्षेत्र हैं। फिलहाल इनमें से चार विधानसभा सीटें समाजवादी पार्टी के कब्जे में हैं। एक विधानसभा सीट पर सुभाषपा का कब्जा है. सैदपुर विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी के अंकित भारती, गाजीपुर सदर पर सपा के जयकिशन, जंगीपुर में सपा के वीरेंद्र यादव और जमनिया सीट पर सपा के ही ओमप्रकाश सिंह विधानसभा चुनाव में जीते थे और जखनिया सीट से सुभाषपा के त्रिवेणी राम ने जीत हासिल की थी। विधानसभा चुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी और ओमप्रकाश राजभर की सुभाषपा पार्टी गठबंधन में थी. लेकिन, फिलहाल सुभाषपा फिर एनडीए के पाले में चली गई है।

ये समीकरण सबसे मजबूत

गाजीपुर लोकसभा सीट पर सर्वाधिक संख्या यादव वोटरों की हैं। इसके बाद दलित और फिर मुस्लिम वोटरों की संख्या है। गाजीपुर लोकसभा क्षेत्र में यादव, दलित और मुस्लिम वोटरों की कुल संख्या कुल वोटरों की आधी आबादी है। यही वजह है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन की वजह से अफजाल अंसारी ने मनोज सिन्हा को एक लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से चुनाव हराया था। कुशवाहा समाज की आबादी यहां पर ढाई लाख से अधिक है तो वहीं डेढ़ लाख से अधिक बिंद समाज के लोग हैं। इसके अलावा एक लाख के आसपास वैश्य मतदाता हैं। राजपूत मतदाता तकरीबन पौने दो लाख हैं। भाजपा के मुख्य वोटरों में सवर्ण और ओबीसी की कुछ जातियां हैं। सवर्ण के साथ ओबीसी वोट बैंक जुड़ने से भाजपा के उम्मीदवार की जीत निश्चित होती है।

गाजीपुर में मुस्लिम वोट बैंक

वैसे 2019 के मुकाबले इस बार का जातीय समीकरण अलग होगा क्योंकि पिछली बार समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी के गठबंधन की वजह से यादव, दलित और मुसलमान ने अफजल अंसारी को वोट कर दिया था. तो इस बार बहुजन समाज पार्टी (बसपा) अपना उम्मीदवार अलग से चुनावी मैदान में उतर रही है। लिहाजा, दलित वोट बैंक का बड़ा हिस्सा बसपा के उम्मीदवार को जाने की संभावना है. तो वही मुस्लिम वोट बैंक समाजवादी पार्टी-कांग्रेस गठबंधन और बहुजन समाज पार्टी में बंटने से मामला रोचक हो जाएगा।

इस बार कुशवाहा वोटर निर्णायक

 

पिछली बार 2019 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने कुशवाहा जाति के ही प्रत्याशी को चुनावी मैदान में उतारा था। लिहाजा, कुशवाहा वोटरों ने कांग्रेस पार्टी की तरफ रुख कर लिया था. लेकिन, इस बार कुशवाहा वोटर निर्णायक भूमिका में होंगे। ओपी राजभर की पार्टी सुभाषपा का एनडीए गठबंधन में शामिल होने से इस सीट पर भाजपा उम्मीदवार और ज्यादा मजबूत होंगे क्योंकि पूर्वांचल में राजभर का अलग वोट बैंक है। इसका फायदा बीते विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव उठा चुके हैं, लेकिन, इस बार ओमप्रकाश राजभर एनडीए के पाले में हैं।

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