Gurmeet Ram Rahim Singh Case: साध्वियों के यौन शोषण मामले में सजा काट रहे डेरा मुखी गुरमीत सिंह की अपील पर हाई कोर्ट में सुनवाई शुरू

गुरमीत राम रहीम सिंह।

नरेन्द्र सहारण, चंडीगढ़ : Gurmeet Ram Rahim Singh Case: साध्वियों के यौन शोषण मामले में सजा काट रहे डेरा मुखी गुरमीत सिंह की सजा के खिलाफ अपील पर पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने सात साल बाद सुनवाई शुरू कर दी है। हाई कोर्ट के जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर व जस्टिस ललित बतरा की खंडपीठ ने सभी पक्षों को बहस के लिए तैयार होने का आदेश देते हुए सुनवाई 25 सितंबर तक स्थगित कर दी। डेरे की दो साध्वियों के यौन शोषण मामले में पंचकूला की सीबीआइ कोर्ट ने अगस्त 2017 में डेरा मुखी को दोषी करार देते हुए 10-10 साल की सजा सुनाई थी। साथ ही 30 लाख 20 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया था।

सजा को डेरा मुखी ने हाई कोर्ट में चुनौती

 

पहले मामले में 10 वर्ष की सजा पूरी होने के बाद दूसरे मामले में 10 वर्ष की सजा शुरू होनी है। सजा को डेरा मुखी ने हाई कोर्ट में चुनौती देते हुए अपील दायर की थी। वहीं, दोनों पीड़ित साध्वियों ने भी तब हाई कोर्ट में अपील दाखिल कर डेरा मुखी को उम्रकैद की सजा सुनाई जाने की मांग की थी। तब हाईकोर्ट ने इन अपील को एडमिट कर लिया था। अक्टूबर 2017 में हाई कोर्ट ने डेरा मुखी पर लगाए गए जुर्माने पर रोक लगाते हुए दो महीनों के भीतर जुर्माने की यह राशि सीबीआइ कोर्ट में जमा करवाने के आदेश दिए थे। साथ ही जमा करवाई जाने वाली जुर्माने की इस राशि को किसी नेशनलाइज बैंक में एफडी करवाने को कहा था। तब हाई कोर्ट ने इन अपील को एडमिट कर लिया था।

सीबीआइ ने छह वर्षों के बाद रिकार्ड किए थे

 

गुरमीत सिंह ने हाई कोर्ट में अपील दायर कर कहा, सीबीआइ अदालत ने उसे बिना उचित साक्ष्यों और गवाहों के दोषी ठहरा सजा सुना दी है, जो कि तय प्रक्रिया के अनुसार गलत है। पहले इस मामले में एफआइआर ही दो-तीन वर्षों की देरी से दायर हुई। यह एक गुमनाम शिकायत पर दर्ज की गई, जिसमें शिकायतकर्ता का नाम तक नहीं था। पीड़िता के बयान ही इस केस में सीबीआइ ने छह वर्षों के बाद रिकार्ड किए थे। सीबीआइ का कहना था कि साल 1999 में यौन शोषण हुआ था, लेकिन बयान वर्ष 2005 में दर्ज किये गए। जब सीबीआइ ने एफआइआर दर्ज की, तब कोई शिकायतकर्ता ही नहीं था। अपनी अपील में डेरा मुखी ने सवाल उठाया कि यह कहना कि पीड़िताओं पर कोई दबाव नहीं था, गलत है। क्योंकि दोनों पीड़िता सीबीआइ के संरक्षण में थी। ऐसे में प्रासिक्यूशन का उन पर दबाव था। 30 जुलाई 2007 तक बिना किसी शिकायत के जांच की जाती रही और पूरी की गई।

सभी आरोपों को खारिज किये जाने की मांग

उसके पक्ष के साक्ष्य और गवाहों पर सीबीआइ अदालत ने गौर ही नहीं किया। यहां तक कि सीबीआइ ने डेरा मुखी के मेडिकल एग्जामिनेशन तक की जरूरत नहीं समझी कि डेरा मुखी के खिलाफ जो आरोप लगाए गए हैं, वह सही भी हो सकते हैं या नहीं। लिहाजा इन सभी आधारों को लेकर डेरा मुखी ने अपने खिलाफ सुनाई गई सजा को रद कर उसके खिलाफ लगाए गए सभी आरोपों को खारिज किये जाने की हाई कोर्ट से मांग की है। इस केस का पूरा रिकार्ड ट्रायल कोर्ट से हाई कोर्ट पहुंच चुका है।

 

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