ज्ञानवापी को लेकर क्या दावा कर सकता है मस्जिद पक्ष, जिला अदालत और हाई कोर्ट में खारिज हो चुकी है उनकी दलील

वाराणसी, BNM News : मस्जिद पक्ष ज्ञानवापी पर अपना दावा प्लेसेज आफ वर्शिप एक्ट 1991 के जरिये मजबूत करेगा। अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद के संयुक्त सचिव एसएम यासीन का कहना है कि मुसलमान देश की आजादी के काफी पहले से ज्ञानवापी में नमाज पढ़ते आ रहे हैं। हालांकि, वाराणसी की जिला अदालत के साथ ही हाई कोर्ट ने भी माना है कि ज्ञानवापी स्थित मां शृंगार गौरी के नियमित दर्शन-पूजन की मांग का मुकदमा प्लेसेज आफ वर्शिप एक्ट 1991 से बाधित नहीं होता है।
यासीन के अनुसार जौनपुर के रईस मुसलमान शेख मोहद्दीस ने ज्ञानवापी में मस्जिद को 804-42 हिजरी (वर्तमान में 1445 हिजरी चल रही है) के बीच बनवाया था। इसका जिक्र फारसी में लिखी गई किताब तजकिरतुल मुत्तकिन में मिलता है। इसमें बताया गया है कि जहां मस्जिद है, वहां की जमीन खाली थी और उस पर कोई निर्माण नहीं था। मस्जिद तीन चरण में बनाई गई थी। दूसरा चरण अकबर के शासन काल का था, जिसका जिक्र अबुल फजल की फारसी में लिखी किताब आइना-ए-अकबरी में है। तीसरे चरण में औरंगजेब के शासन काल में निर्माण और मरम्मत हुई। इस तरह अकबर के शासन काल से लगभग 150 साल पहले से मुसलमान ज्ञानवापी में नमाज पढ़ते आ रहे हैं और आज तक जारी है। इन साक्ष्यों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट में इस मुकदमे के प्लेसेज आफ वर्शिप एक्ट 1991 से बाधित होने की बात रखेंगे।
औरंगजेब ने मस्जिद बनाने के लिए वक्फ नहीं बनाया था
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास और संस्कृति विभाग के प्रोफेसर डा. एएस अल्टेकर ने अपनी पुस्तक ‘हिस्ट्री आफ बनारस’ में बताया है कि 1585 में जौनपुर के तत्कालीन राज्यपाल राजा टोडरमल ने अपने गुरु नारायण भट्ट के कहने पर उसी स्थान पर भगवान शिव का भव्य मंदिर बनवाया था। वह स्थान जहां मंदिर मूल रूप से अस्तित्व में था, यानी भूमि संख्या 9130 पर केंद्रीय गर्भगृह से युक्त आठ मंडपों से घिरा हुआ था। औरंगजेब ने 1669 में मंदिर को ध्वस्त करने का फरमान जारी किया था।
भगवान आदि विशेश्वर के प्राचीन मंदिर को आंशिक रूप से तोड़ने के बाद, वहां मस्जिद के रूप में नया निर्माण किया गया था। औरंगजेब ने उक्त स्थान पर मस्जिद निर्माण के लिए कोई वक्फ नहीं बनाया था। उधर, मुस्लिम पक्ष की ओर से 1944 की वक्फ संपत्ति के जिस गजट की बात की जा रही है, वह आलमगीर मस्जिद है और पंचगंगा घाट पर है। वक्फ संख्या 100 में जिस संपत्ति का उल्लेख है, उसके आराजी संख्या नहीं लिखी है। 1291 फसली के खसरा में आलमगीर दर्ज है, कहीं ज्ञानवापी की जिक्र नहीं है। इस तरह स्पष्ट है कि ज्ञानवापी कभी वक्फ में शामिल नहीं हुई।
ये है प्लेसेज आफ वर्शिप एक्ट
प्लेसेज आफ वर्शिप एक्ट 1991 के तहत प्रविधान है कि 15 अगस्त, 1947 को जो धार्मिक स्थल जिस स्थिति में था और जिस समुदाय का था, भविष्य में उसी का रहेगा।