Haryana Election 2024: हरियाणा के चुनावी रण में बन रहे दलितों में बिखराव के आसार

नरेन्द्र सहारण, चंडीगढ़। हरियाणा विधानसभा चुनाव में इस बार दलित मतदाताओं की भूमिका अहम होने वाली है, और राजनीतिक दल उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने के लिए पूरी ताकत झोंक रहे हैं। दलित वोट बैंक को लेकर कांग्रेस, भाजपा, इनेलो-बसपा, जजपा-आसपा गठबंधन और अन्य दलों के बीच जबरदस्त सियासी खेल चल रहा है। जहां कांग्रेस इसे अपना पारंपरिक वोट बैंक मान रही है, वहीं भाजपा दलित कल्याण की योजनाओं के साथ-साथ बंटते हुए दलित वोटों के लाभ की उम्मीद कर रही है। इस बिखराव का फायदा भाजपा को हो सकता है, जबकि कांग्रेस के लिए दलितों में एकजुटता फायदेमंद साबित हो सकती है।
हार-जीत के फैसले में निर्णायक भूमिका
हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों में से 17 सीटें अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित हैं और दलित मतदाता लगभग 20-22 प्रतिशत हैं। ऐसे में दलित मतदाता हार-जीत के फैसले में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। पिछले लोकसभा चुनाव के परिणामों से यह साफ हो गया था कि दलितों का झुकाव कांग्रेस की ओर था। 2019 में भाजपा ने राज्य की सभी 10 लोकसभा सीटों में से 5 पर ही जीत हासिल की, जबकि कांग्रेस ने 5 सीटें जीतकर दलितों का समर्थन प्राप्त किया। कांग्रेस ने इस समय भाजपा के संविधान से छेड़छाड़ करने के मुद्दे पर दलितों का विश्वास जीतने की कोशिश की थी, और इसका उसे फायदा भी हुआ था।
आरोप-प्रत्यारोप
इस बार विधानसभा चुनाव में भाजपा ने शुरुआत से ही संविधान और आरक्षण की रक्षा के मुद्दे को अपनी प्राथमिकता बना लिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के अन्य नेताओं ने बार-बार कहा कि उनकी सरकार संविधान और आरक्षण के खिलाफ नहीं है, बल्कि दलितों को उनका हक दिलाने का काम कर रही है। कांग्रेस दूसरी ओर, भाजपा पर आरोप लगा रही है कि वह संविधान विरोधी है और आरक्षण को खत्म करना चाहती है।
कांग्रेस ने पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के उस बयान को मुद्दा बनाकर प्रचार किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि कांग्रेस आरक्षण खत्म करने के बारे में विचार करेगी, जब सही समय आएगा। भाजपा ने इस बयान को प्रचारित कर यह संदेश दिया कि कांग्रेस आरक्षण खत्म करना चाहती है। हालांकि, भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने सफाई दी कि राहुल गांधी का बयान गलत तरीके से पेश किया गया था, और कांग्रेस आरक्षण को लेकर किसी भी तरह की छेड़छाड़ नहीं कर रही है।
सैलजा के अपमान का मुद्दा उठा
इस चुनाव में कांग्रेस की वरिष्ठ नेता कुमारी सैलजा का नाम भी चर्चा में है। भाजपा ने सैलजा के कांग्रेस कार्यक्रम में हुए अपमान को जोर-शोर से उठाया है, जिससे दलित समुदाय में असमंजस की स्थिति पैदा हो गई है। हालांकि कांग्रेस ने दावा किया है कि सैलजा को मनाने में सफलता पाई है, लेकिन भाजपा अभी भी इस मुद्दे को उठाकर दलित वोटों में अपनी ओर झुकाव की कोशिश कर रही है।
गठबंधनों के कारण बंट गया वोट
हरियाणा में दलितों का वोट बैंक गठबंधनों के कारण बंट गया है। इनेलो-बसपा गठबंधन और जजपा-आसपा गठबंधन में दलितों का एक बड़ा हिस्सा शामिल है। इनेलो और बसपा के गठबंधन को जाट और दलित वोटों का समर्थन मिलने की उम्मीद है, वहीं जजपा और आसपा गठबंधन को भी जाटों के साथ दलितों का समर्थन मिल सकता है। अगर दलित वोटों में बिखराव होता है, तो इसका सीधा फायदा भाजपा को हो सकता है। भाजपा के रणनीतिकार इस स्थिति को अपनी ओर फायदेमंद मानते हुए दलित वोटों को लुभाने के लिए काम कर रहे हैं।
इस चुनाव में दलितों के समर्थन को लेकर हर पार्टी अपनी-अपनी रणनीतियों पर काम कर रही है और यह देखना दिलचस्प होगा कि कौन सा दल इस महत्वपूर्ण वोट बैंक को अपने पक्ष में कर पाता है।
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