Haryana News: ईद से पहले खुदा ने कुबूल की खदीजा की इबादत, 23 साल बाद मिली अपनों से

नरेन्द्र सहारण, झज्जर : Haryana News: इस्लाम में जुम्मे के दिन की जो ख़ास अहमियत है, उसे हर मुसलमान अच्छे से जानता है। इस दिन एक घड़ी ऐसी होती है जब अल्लाह अपनी बंदों की दुआ सुनता है और उन्हें काबिलियत की दरिया में डुबो देता है। यह एक ऐसी दरिया है जिसमें उम्मीदें, आंसू और इबादत सहेज कर रखी जाती हैं। यही कहानी है सरदार खदीजा की, जिन्होंने 23 वर्षों तक अपने बच्चों से बिछड़ने का गम सहा और जब जुम्मे का दिन आया, तब उनकी दुआ का असर हुआ।
खदीजा का सफर
दक्षिणी 24 परगना के एक छोटे से गांव की निवासी, 52 वर्षीय सरदार खदीजा को अपने बच्चों की याद और उनसे बिछड़ने का गम हर पल सालता था। एक दिन काम की तलाश में घर से निकली खदीजा ने कभी नहीं सोचा था कि उसकी जिंदगी में इतना बड़ा मोड़ आएगा। ज़िंदगी के इस सफर में खदीजा कई मुसीबतों का सामना करती रही। वे हरियाणा के बादली में पहुंच गईं, जहां उन्हें अजनबियों के बीच एक नई जिंदगी का सामना करना पड़ा।
संघर्ष और इबादत का रास्ता
उन्हें वहां कोई आसरा नहीं मिला, और उन्होंने एक पीर के पास ही अपने दिन गुजारने का फैसला किया। खाली प्लाट में रहकर, उन्होंने खुद को कूड़ा बीनने तक सीमित कर लिया, जिससे वो प्रतिदिन की आवश्यकताएँ पूरी कर सकें। परंतु इस कठिन समय में उनकी इबादत मुसलसल जारी रही। उनका विश्वास था कि अल्लाह ने उन्हें कभी नहीं छोड़ा है और वे हमेशा उन्हें सुन रहे हैं।
किस्मत का खेल
हालांकि खदीजा की कठिनाइयों का अंत नहीं हो रहा था, लेकिन किस्मत ने एक दिलचस्प मोड़ लिया। बीती होली के दिन बादली के कारोबारी मुनेश और दुजाना ने कूड़े में कांच के आइटम खरीदने के लिए खदीजा से मुलाकात की। इस बातचीत के दौरान खदीजा ने अपने जीवन की कहानी सुनाई। उन्होंने अपने बच्चों के बारे में बताया और यह भी कहा कि वे पिछले 23 वर्षों से अपने परिवार से बिछड़ी हुई हैं।
दूसरे लोगों की मदद
खदीजा की कहानी सुनकर, मुनेश और दुजाना का दिल पसीज गया। उन्होंने गूगल मैप का सहारा लेते हुए खदीजा के परिवार की खोज शुरू की। उन्होंने करीब 1600 किलोमीटर दूर दक्षिणी 24 परगना के विभिन्न ठिकानों को चिह्नित किया। उन्होंने परिवार के सदस्यों की तलाश में 20 से अधिक लोगों से बात की, जिससे अंततः खदीजा की छोटी बहन तक पहुंचने में सफल रहे।
वीडियो कॉल की जादुई छाया
जब मुनेश और दुजाना ने खदीजा की बहन से वीडियो कॉल की, तो वह एक भावुक क्षण बन गया। बहन और खदीजा की आंखों में आंसू थे, जो सच्चे स्नेह और बिछड़ने के दर्द का प्रतीक थे। इसके बाद परिवार के दूसरे सदस्यों से संपर्क में आने के बाद खदीजा की 23 वर्षों की तपस्या का फल उसे मिला।
पुनर्मिलन का जादू
फिर वही दिन आया जब खदीजा का छोटा बेटा सफीकुल सरदार उसे लेने बादली पहुंचा। वह खुशी का पल था जब मां और बेटे के बीच पुनर्मिलन हुआ। सफीकुल ने अपनी मां को पहचान लिया और उनकी बाहों में समा जाने के लिए भागा। 23 वर्षों का दर्द जैसे एक ही पल में धुल गया हो। वहां मौजूद सभी लोग इस भावनात्मक क्षण को देखकर भावुक हो गए।
विदाई का समय
इस पुनर्मिलन के बाद खदीजा को विदाई देने के लिए स्थानीय महिलाओं ने उन्हें ईद के उपहार भी दिए। सभी की आंखों में आंसू थे, क्योंकि खदीजा ने उन लोगों के साथ अपना बुरा और अच्छा समय बिताया था। उसकी सहायता करने वाले मुनेश और राजेश ने खदीजा को हर संभव आर्थिक सहायता प्रदान की, जिससे उसे अपने घर वापस आने में कोई दिक्कत न हो।
सोचने की बात
खदीजा की कहानी हमें यह सिखाती है कि संघर्ष और इबादत कभी निष्फल नहीं जाती हैं। कभी-कभी मानवता की सेवा और दया हमें शब्दों से परे ले जाती है। मुनेश और राजेश जैसे लोगों ने न केवल अपने धर्मों का पालन किया बल्कि इंसानियत की मिसाल भी पेश की। उनके साहस और दया ने खदीजा का जीवन बदल दिया।
खदीजा का नया जीवन
अंततः खदीजा अपने बच्चों के पास वापस आ गईं। यह एक नया प्रारंभ है, एक नई उम्मीद, एक नई जिंदगी। अब वह अपने बच्चों के साथ ईद मनाने जा रही हैं, और उनके जीवन में सच्ची खुशी की वह घड़ी लौट आई है। इस प्रकार जमा की गई थी जो दुआ, इबादत, प्रयास और मानवीयता का संबंध है। यह एक ऐसी कहानी है जो न केवल दिल को छूती है, बल्कि हमें सिखाती है कि हम कभी भी अपने प्रयासों को नहीं छोड़ना चाहिए, चाहे परिस्थितियां कितनी भी कठिन क्यों न हों।
अंत में यह कहानी हमें यह याद दिलाती है कि जब हम सच्ची भावना और इरादे से किसी की मदद करते हैं, तो अल्लाह हमारी दुआ को सुनता है और कभी-कभी वह हमारे साथ होता है जब हम सबसे ज्यादा उसकी आवश्यकता होती है।