Haryana Politics: हरियाणा की राजनीति में परिवारवाद पर भूपेंद्र हुड्डा का पलटवार, बोले- अपनी पार्टी देखो, मुझे अपने परिवार पर गर्व

नरेन्‍द्र सहारण, चंडीगढ़। Haryana Politics: हरियाणा की राजनीति में इन दिनों परिवारवाद का मुद्दा जोरों पर है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके बेटे, राज्यसभा सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा, को लेकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो), और जननायक जनता पार्टी (जजपा) ने उन्हें “बापू-बेटा” कहकर तीखे हमले किए हैं। हालांकि, हुड्डा ने लंबे समय तक चुप्पी साधे रखी थी, लेकिन अब उन्होंने विरोधियों को करारा जवाब दिया है। उन्होंने न केवल अपने परिवार का गौरवपूर्ण इतिहास गिनाया बल्कि विपक्ष के नेताओं को भी परिवारवाद के मुद्दे पर आईना दिखाया।

भाजपा और अन्य दलों के निशाने पर हुड्डा परिवार

हरियाणा में जब भी विधानसभा चुनाव नजदीक आते हैं, परिवारवाद का मुद्दा उठाया जाता है। कांग्रेस की हार के बाद भी भाजपा ने इसे बार-बार मुद्दा बनाया। हुड्डा और उनके बेटे दीपेंद्र को “बापू-बेटा” कहकर निशाना बनाया गया। इन हमलों में भाजपा की राज्यसभा सदस्य किरण चौधरी और पूर्व सांसद कुलदीप बिश्नोई भी शामिल रहे। भाजपा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी और पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कांग्रेस को “बापू और बेटा की पार्टी” कहते हुए परिवारवाद पर सवाल उठाए।

यह सिर्फ भाजपा तक ही सीमित नहीं रहा। कई बार वे नेता भी परिवारवाद का आरोप लगाते रहे, जो कभी हुड्डा के करीब थे। कांग्रेस से भाजपा में गए नेता भी इस मुद्दे को उठाने में पीछे नहीं रहे। परिवारवाद के आरोप और राजनीतिक हमले एक लंबे समय से चलते आ रहे हैं, लेकिन हुड्डा ने इन आरोपों का सामना करने के बाद अब विरोधियों पर पलटवार किया है।

हुड्डा का परिवारवादी हमलों पर करारा जवाब

भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने परिवारवाद के मुद्दे पर चुप्पी तोड़ते हुए विरोधियों को सख्त जवाब दिया। उन्होंने अपने पारिवारिक इतिहास और राजनीतिक योगदान को गर्व से गिनाया। हुड्डा ने कहा, “परिवारवाद की भाषा मेरी समझ में नहीं आई। मुझे अपने परिवार पर गर्व है। मेरे दादा स्वतंत्रता सेनानी थे। शहीद भगत सिंह के चाचा और मेरे दादा को काले पानी की सजा मिली थी। मेरे दादा ने महात्मा गांधी को हरियाणा लेकर आने का काम किया। मेरे पिता आठ बार जेल गए, जिनमें चार जेल पाकिस्तान में थीं और चार भारत में। जिस संविधान के तहत हम यहां बैठे हैं, उस पर मेरे पिता चौधरी रणबीर सिंह हुड्डा के हस्ताक्षर हैं।”

हुड्डा ने यह भी बताया कि उनके पिता सात विधायी सदनों के सदस्य रहे और उन्होंने खुद ब्लॉक समिति के चेयरमैन से राजनीतिक करियर शुरू किया। वे कई बार विधायक, दो बार मुख्यमंत्री और विपक्ष के नेता रह चुके हैं। “यह हमारा परिवारवाद हो गया? आप अपनी पार्टी में देखिए। मेरे को ईर्ष्या नहीं है। मेरे साथियों के बच्चे मंत्री बने हैं, और मैंने उन्हें आशीर्वाद दिया है,” हुड्डा ने कहा।

 

विपक्षी नेताओं पर तीखा हमला

हुड्डा ने भाजपा नेताओं पर इशारों में निशाना साधते हुए किरण चौधरी और उनकी बेटी श्रुति चौधरी, राव इंद्रजीत सिंह और उनकी बेटी आरती राव, तथा कुलदीप बिश्नोई और उनके बेटे भव्य बिश्नोई की राजनीति को उजागर किया। उन्होंने यह भी कहा कि परिवारवाद पर आरोप लगाने वालों को पहले अपने गिरेबान में झांकना चाहिए।

बड़े राजनीतिक घरानों का परिवारवाद

भाजपा का परिवारवाद पर स्टैंड स्पष्ट होने का दावा किया जाता है, लेकिन हरियाणा की राजनीति में यह आरोप हर दल पर लगता रहा है। जब हुड्डा ने सोशल मीडिया पर परिवारवाद का मुद्दा उठाया, तो इसे लेकर एक नई बहस छिड़ गई। विरोधियों ने तत्कालीन उपप्रधानमंत्री देवीलाल, पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल और भजनलाल के परिवारवाद को भी निशाने पर लिया।

देवीलाल के परिवार से ओमप्रकाश चौटाला, रणजीत चौटाला, अभय चौटाला, अजय चौटाला, नैना चौटाला, सुनैना चौटाला, आदित्य देवीलाल, दुष्यंत चौटाला, दिग्विजय चौटाला, अर्जुन चौटाला और करण चौटाला जैसे नाम हरियाणा की राजनीति में सक्रिय हैं। बंसीलाल के परिवार से सुरेंद्र चौधरी, किरण चौधरी और श्रुति चौधरी राजनीति में हैं। इसी तरह, भजनलाल के परिवार में जसमा देवी, चंद्रमोहन बिश्नोई, कुलदीप बिश्नोई, रेणुका बिश्नोई और भव्य बिश्नोई सक्रिय हैं।

सोशल मीडिया पर बहस

परिवारवाद का मुद्दा सोशल मीडिया पर भी गर्माया हुआ है। हुड्डा समर्थकों ने भाजपा नेताओं के परिवारवाद को उजागर करते हुए कई नाम गिनाए। राव इंद्रजीत सिंह के साथ उनकी बेटी आरती राव और शमशेर सिंह सुरजेवाला के साथ रणदीप सुरजेवाला और आदित्य सुरजेवाला का नाम भी चर्चा में आया।

हरियाणा की राजनीति में परिवारवाद एक ऐसा मुद्दा है जो हर चुनाव से पहले उभरता है। हालांकि, भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने विरोधियों के हमलों का जवाब देते हुए अपने परिवार की राजनीतिक विरासत पर गर्व व्यक्त किया है। उनका मानना है कि परिवार में यदि राजनीतिक पृष्ठभूमि है, तो यह उनकी उपलब्धियों को छोटा नहीं करता। उन्होंने यह भी कहा कि वे किसी अन्य नेता के परिवार के सदस्यों के राजनीति में आने से ईर्ष्या नहीं करते, बल्कि खुश हैं। अब यह देखना होगा कि परिवारवाद की इस बहस में कौन सा राजनीतिक दल कितनी बढ़त बना पाता है।

हुड्‌डा परिवार की राजनीतिक यात्रा

 

भूपेंद्र सिंह हुड्‌डा की राजनीतिक यात्रा हमेशा से उल्लेखनीय रही है। वह लगातार दो बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और चार बार सांसद रह चुके हैं। उनके पिता रणबीर हुड्‌डा भी तीन बार सांसद और हरियाणा सरकार में मंत्री रह चुके हैं। अब, हुड्‌डा परिवार की तीसरी पीढ़ी भी राजनीति में सक्रिय है। दीपेंद्र हुड्‌डा चौथी बार लोकसभा सांसद चुने गए हैं और प्रदेशभर में कांग्रेस के प्रचार अभियान में मुख्य भूमिका निभाते रहे हैं।

भाजपा की जीत और कांग्रेस में असंतोष

हालांकि हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भूपेंद्र हुड्‌डा की अगुआई में जोर-शोर से प्रचार किया था, फिर भी भाजपा ने 90 में से 48 सीटें जीतकर बहुमत हासिल किया। कांग्रेस 37 सीटों पर ही सिमट गई। इसके बाद से कांग्रेस के भीतर असंतोष की आवाजें उठने लगीं और हुड्‌डा परिवार को लेकर विवाद बढ़ गया।

भाजपा और JJP के निशाने पर रहने के बावजूद, हुड्‌डा ने कभी भी चुनाव प्रचार के दौरान व्यक्तिगत हमलों का जवाब नहीं दिया। उन्होंने अपनी गरिमा बनाए रखी और बाद में विधानसभा में ही अपना पक्ष रखा। उनके बयानों ने उनके समर्थकों को और भी मजबूत कर दिया।

तीन बार देवीलाल को हराया

भूपेंद्र हुड्‌डा ने अपने राजनीतिक करियर में कई बड़े नेताओं को मात दी है। उन्होंने हरियाणा के कद्दावर नेता और पूर्व डिप्टी प्रधानमंत्री देवीलाल को तीन बार चुनावों में हराया। यह उपलब्धि उनके राजनीतिक कौशल और लोकप्रियता को दर्शाती है।

भविष्य की रणनीति

हुड्‌डा अब कांग्रेस पार्टी में अपनी स्थिति को और मजबूत बनाने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि कांग्रेस के भीतर असंतोष और उनके खिलाफ बढ़ते विरोध से चुनौतियां कम नहीं हैं। फिर भी, वे अपने समर्थकों को एकजुट रखने और विपक्ष के आरोपों का मजबूती से सामना करने का इरादा रखते हैं। उनका मानना है कि उनकी मेहनत और अनुभव ही उन्हें और उनके परिवार को राजनीतिक क्षेत्र में आगे बढ़ने में मदद करेगा।

इस पूरे घटनाक्रम से यह स्पष्ट हो गया है कि भूपेंद्र हुड्‌डा न केवल एक अनुभवी नेता हैं, बल्कि अपने परिवार और विरासत पर गर्व करने वाले व्यक्ति भी हैं। उनकी भावनाएं और प्रतिक्रियाएं यह दर्शाती हैं कि वे अपने विरोधियों के तंजों से विचलित नहीं होते, बल्कि उन्हें मजबूती से सामना करने का हौसला रखते हैं।

 

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