Haryana Politics: जानें क्यों हरियाणा में टूट गया कांग्रेस और आप का गठबंधन, कैसे राष्ट्रीय नेतृत्व की उम्मीदों पर फेरा पानी

राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल।

नरेन्द्र सहारण, चंडीगढ़। Haryana Politics: हरियाणा में लोकसभा चुनाव मिलकर लड़ने वाली कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के राज्यस्तरीय नेता नहीं चाहते थे कि विधानसभा चुनाव में दोनों दलों का फिर से गठजोड़ हो। दोनों दलों के नेताओं की अपनी-अपनी महत्वाकांक्षाएं इसका बड़ा कारण रही हैं। कांग्रेस और आप के राष्ट्रीय नेताओं ने ही दोनों दलों के बीच विधानसभा चुनाव में गठबंधन की बातचीत शुरू की थी, लेकिन गठबंधन पर कांग्रेस का कोई स्पष्ट जवाब आने से पहले आम आदमी पार्टी के राज्यस्तरीय नेताओं ने 20 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए।

आप की थी खाता खोलने की तैयारी

कांग्रेस नेता राहुल गांधी और संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल की सोच हरियाणा में आप से गठबंधन कर अगले साल दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनाव में इसका लाभ उठाने की थी। आम आदमी पार्टी में राज्यसभा सदस्य राघव चड्ढा, राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) डा. संदीप पाठक और राज्यसभा सदस्य संजय सिंह की रणनीति भी कांग्रेस को सहारा बनाते हुए हरियाणा में पहली बार खाता खोलने की थी। इसके उलट प्रदेश में कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, प्रदेशाध्यक्ष चौधरी उदयभान, हरियाणा में आम आदमी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डा. सुशील गुप्ता तथा वरिष्ठ प्रदेश उपाध्यक्ष अनुराग ढांडा सभी 90 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की रणनीति पर डटे रहे। गठबंधन की संभावनाओं को देखते हुए पहले चरण में सिर्फ 32 प्रत्याशी घोषित करने वाली कांग्रेस इस पर कोई अंतिम निर्णय लेती, इससे पहले ही आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के विरोध में प्रत्याशी उतारकर गठबंधन के सारे रास्ते बंद कर दिए हैं। कांग्रेस नेतृत्व का मानना है कि अगर हरियाणा में दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन होता तो दिल्ली का रास्ता कांग्रेस के लिए आसान हो जाता, लेकिन भूपेंद्र सिंह हुड्डा को इस समय सिर्फ हरियाणा में सरकार बनाने की चिंता है।

कई दौर की बातचीत हुई नाकाफी

पिछले दो विधानसभा चुनावों में कांग्रेस दिल्ली में खाता नहीं खोल सकी है। हरियाणा में कांग्रेस मजबूत है तो दिल्ली में आप का मजबूत जनाधार है। इसका लाभ उठाने के लिए दोनों पार्टियों के शीर्ष नेताओं में गठबंधन को लेकर कई दौर की बातचीत हुई, लेकिन सीटों की संख्या को लेकर सहमति नहीं बन सकी। आप की तरफ से वार्ता कर रहे राघव चड्ढा पंजाब और दिल्ली के साथ लगती 10 सीट पर अड़े रहे, जबकि दीपक बाबरिया और केसी वेणुगोपाल सिर्फ पांच सीटें देने को तैयार थे।

आप के प्रत्याशी कांग्रेस को पहुंचाएंगे नुकसान

आप ने विभिन्न विधानसभा सीटों पर ऐसे उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं जो जातिगत व अन्य समीकरणों से कांग्रेस प्रत्याशी को सीधा नुकसान पहुंचाएंगे। इसका फायदा सीधे-सीधे सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को होगा। खासकर लोकसभा चुनावों में जिन 33 सीटों पर हार-जीत का अंतर काफी कम रहा था, वहां आप प्रत्याशी कांग्रेस के समीकरण बिगाड़ सकते हैं।

कांग्रेस में बगावत का भी था डर

हरियाणा के नेताओं को डर था कि आप से गठबंधन की स्थिति में उसके स्थानीय नेता और कार्यकर्ता बगावत कर सकते हैं, जिसका असर चुनाव परिणामों पर पड़ेगा। लोकसभा चुनाव में दिल्ली और हरियाणा में आप से गठबंधन का कोई खास लाभ नहीं हुआ। समाजवादी पार्टी (सपा) से समझौते में भी हरियाणवी क्षत्रपों को कोई फायदा नहीं दिखा। हालांकि कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व की सोच आप और सपा से समझौता कर खुद को बड़े भाई के रूप में दिखाने की थी। ठीक वैसे ही, जैसी भूमिका भाजपा ने महाराष्ट्र और बिहार में निभाई है।

 

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