Haryana Politics: रणजीत चौटाला के मंत्री बने रहने पर क्या हैं कानूनी रुकावट, क्या कहता है कानून
नरेन्द्र सहारण, चंडीगढ़। Haryana Cabinet: हरियाणा के राजनीतिक गलियारों में आजकल सिर्फ एक ही चर्चा है कि रानियां से निर्दलीय विधायक के पद से इस्तीफा दे चुके रणजीत सिंह चौटाला (Ranjit Singh Chautala) मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी (Nayab Singh Saini) की सरकार में मंत्री बने रह सकेंगे अथवा मंत्री पद से भी उन्हें इस्तीफा देना होगा। हरियाणा विधानसभा के इतिहास में आज तक ऐसा कोई उदाहरण नहीं है, जब विधायक पद से इस्तीफा देने के बाद भी कोई मंत्री बना रह सका हो। कानून ने हालांकि विधानसभा के मौजूदा सदन में गैर विधायक और पूर्व विधायक की परिभाषा में अंतर स्पष्ट कर रखा है, जिसके मुताबिक रणजीत सिंह चौटाला विधायक नहीं होते हुए भी मंत्री बने रह सकते हैं, लेकिन राज्य में पिछली ऐसी कोई हिस्ट्री नहीं होने की वजह से नैतिकता उन पर मंत्री पद से इस्तीफा देने का दबाव बना रही है।
भाजपा ने हिसार लोकसभा सीट से अपना उम्मीदवार बनाया
देश के पूर्व उप प्रधानमंत्री ताऊ देवीलाल के छोटे बेटे रणजीत सिंह चौटाला को भाजपा ने हिसार लोकसभा सीट से अपना उम्मीदवार बनाया है। सिरसा रैली के बाद जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह सिरसा में रणजीत चौटाला के घर चाय पीने गए, तभी से चौटाला की निगाह हिसार लोकसभा सीट पर टिक गई थी। कई मौके ऐसे आए, जब उन्होंने खुलकर हिसार लोकसभा सीट से टिकट मांगा, लेकिन उनकी इस मांग को राजनीतिक गलियारों में इसलिए अनदेखा किया जाता रहा, क्योंकि किसी को नहीं लग रहा था कि भाजपा रणजीत चौटाला को हिसार से टिकट देने का चौंकाने वाला निर्णय ले सकती है। ऐसा हुआ और टिकट के तलबगार कुलदीप बिश्नोई, रणबीर गंगवा, कैप्टन अभिमन्यु तथा कैप्टन भूपेंद्र सिंह की उम्मीदों पर तुषारापात हो गया।
क्या है भाजपा की रणनीति
रणजीत चौटाला को लोकसभा चुनाव लड़वाने के पीछे भाजपा ने ताऊ देवीलाल के परिवार के इधर-उधर छिटके वोट बैंक को अपनी तरफ आकर्षित कराने की रणनीति ने काम किया है। रणजीत चौटाला को जब टिकट मिला, तब वह रानियां विधानसभा सीट से निर्दलीय विधायक थे। उन्होंने विधानसभा स्पीकर के पास जो इस्तीफा भेजा, उस पर 24 मार्च की डेट है। यानी भाजपा में शामिल होने से पहले ही उन्होंने कागजों में इस्तीफा दे दिया था, जिसका मतलब साफ है कि चौटाला दल बदल कानून का उल्लंघन करने के दायरे में नहीं आते। अब सवाल उठता है कि विधायक पद से इस्तीफा दे चुके चौटाला बिजली व जेल मंत्री पद से इस्तीफा देंगे अथवा मंत्री बने रहेंगे।
रणजीत चौटाला के मंत्री पद को लेकर यह कहता है कानून
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार के अनुसार इस माह 12 मार्च को मंत्री पद की शपथ लेते समय रणजीत चौटाला विधायक थे, इसलिए उस आधार पर उनका मंत्रिमंडल से भी त्यागपत्र देना बनता है, जो मुख्यमंत्री के मार्फत राज्यपाल को सौंपा जा सकता है। हालांकि विधायक न होते हुए भी कोई व्यक्ति प्रदेश का मुख्यमंत्री या मंत्री नियुक्त हो सकता है, बशर्ते उस नियुक्ति के छह महीने के भीतर वह विधायक बन जाए, जैसे वर्तमान मुख्यमंत्री नायब सैनी भी मौजूदा विधानसभा के सदस्य नहीं हैं। रणजीत चौटाला के मामले में उनकी अधिकतम छह महीने तक मंत्री बने रहने की उपरोक्त अवधि उनके विधायक पद से दिए गए त्यागपत्र के स्वीकार होने की तारिख से ही आरंभ होगी। अभी तक रणजीत चौटाला का इस्तीफा स्वीकार नहीं हुआ है, सिर्फ स्पीकर के पास पहुंचा है। हेमंत के अनुसार आज से पहले ऐसा कोई उदाहरण नहीं है, जब कोई विधायक पद से त्यागपत्र देकर मंत्री बना रहा हो। भारत के संविधान के अनुच्छेद 164 (4) में यह प्रविधान है कि कोई भी व्यक्ति बिना विधायक बने भी छह माह तक मंत्री रह सकता है, लेकिन रणजीत चौटाला को भाजपा ने लोकसभा उम्मीदवार बनाया है तो ऐसे में नैतिकता के आधार पर उनका मंत्रिमंडल में रहने का कोई औचित्य नहीं बनता, परंतु इसमें कोई कानूनी अवरोध भी नहीं है।
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