Health News: बाडी तो बना ली, लेकिन शुक्राणु गंवा दिया, जिम जाने वाले युवाओं में बढ़ रही एजोस्पर्मिया
नरेन्द्र सहारण, कैथल/गुरुग्राम : Health News: गुरुग्राम निवासी 32 साल के युवक ने सुंदर पत्नी के सामने स्मार्ट दिखने के लिए जिम में जमकर पसीना बहाया। टेस्टोरोन सप्लीमेंट, हार्मोंस के इंजेक्शन, प्रोटीन पावडर खाकर शरीर तो आकर्षक बन गया, लेकिन इसके शुक्राणु नष्ट हो गए। युवक को पता तब चला, जब वह अपनी पत्नी के बच्चा न होने पर जांच कराने डाक्टर के पास गया था। डाक्टरों ने बताया कि टेस्टोरोन सप्लीमेंट के सेवन, हार्मोंस के इंजेक्शन और कीटनाशक युक्त खानपान से न सिर्फ शुक्राणुओं की गुणवत्ता घटी, बल्कि कई युवाओं में शुक्राणु पूरी तरह खत्म मिले। इसे एजोस्पर्मिया कहते हैं, को युवाओं में तेजी से बढ़ी है। महीने में ऐसे 100 से ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं। कई युवाओं को शुक्राणु के लिए डोनर से संपर्क करना पड़ा।
शुक्राणु खोजने की जटिल प्रक्रिया
क्लाउडनाइन अस्पताल की वरिष्ठ सलाहकार व एसोसिएट निदेशक डा.रचिता मुंजाल ने बताती हैं कि
एजोस्पर्मिया दो प्रकार हो सकते हैं। पहला कि किसी ब्लाकेज के कारण शुक्राणु बाहर नहीं आना। दूसरा कि शुक्राणु बनना बंद हो गए हैं। ब्लाकेज की स्थिति में हार्मोंस की जांच कर डायग्नोस किया जाता है। स्लूटर अल्ट्रासाउंड में साइज, वाल्यूम आदि देखा जाता है। इसमें अगर सभी जांचे सामान्य आती हैं तो, फिर टेस्टिकुलर स्पर्म एस्पिरेशन के माध्मय से स्पर्म को निकाला जाता है। इसी की दूसरी प्रक्रिया है माइक्रो टजी है। इसमें एक कट के माध्यम से टीसू निकालकर लैब में माइक्रोस्कोप की सहायता से उस टीसू के अंडर से शुक्राणु को अलग किया जाता है। फिर आइवीएफ लैब में शुक्राणु को अंडों के साथ जोड़कर एमव्रो बनाकर आगे महिलाओं के यूट्रस में ट्रांसफर कर दिया जाता है।
शुक्राणु नहीं बन रहा तो डोनर का आसरा
बेबीजाय फर्टिलिटी की वरिष्ठ आईवीएफ सलाहकार डा. गरिमा सिंह बताती हैं कि नान एस्प्रेक्टिव एजोस्पर्मिया में ऐसे पुरुष शामिल है जिनमें शुक्राणु बनना बंद हो गया है। ऐसे हालत में डोनर से संपर्क किया जाता है। यह फ्रीज बैंक एआरटी एक्ट के तहत कार्य करते हैं। वहां से शुक्राणु सैंपल लिए जाते हैं। डोनर की एचआइवी समेत विभिन्न जाच की जाती है। डोनर शुक्राणु से दो तरह की प्रक्रिया होती है। इसमें पहला इंट्रा यूटेराईन इन्सेमिनेशन (आइयूआइ) करते हैं। वहीं कई बार महिला में कोई कमी सामने आती है तो आइवीएफ या आइयूआइ किया जाता है।
5 प्रतिशत बढ़े पुरुषों में शुक्राणु काउंट शून्य के मामले
विशेषज्ञों की माने तो, तीन सालों में पुरुषों में एजोस्पर्मिया के मामलों में पांच प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई है। कुछ पुरुषों में को जेनेटिक कारणों के चलते यह समस्या सामने आती थी। लेकिन अब बाडी, मांस, मांसपेशियों का निर्माण करने के लिए टेस्टोरोन सप्लीमेंट का अधिक सेवन, हार्मोंस के इंजेक्शन आदि लगवाने वाले पुरुष एजोस्पर्मिया का शिकार हो रहे हैं।
30 प्रतिशत बढ़े आइवीएफ के मामले
विशेषज्ञों की माने तो बदलती जीवनशैली के साथ-साथ लोगों का आइवीएफ के प्रति भी भरोसा बढ़ा है। पांच सालों में गौर करें तो आइवीएफ में 25-30 प्रतिशत इजाफा दर्ज किया गया है। पहले जहां 15-18 प्रतिशत लोग आइवीएफ को पसंद करते थे।
केस: 1
पेशे से बिजनेसमैन, बच्चा नहीं होने पर कराई जांच
37 वर्षीय पुरुष पेशे से बिजनेसमैन है। उनकी शादी को 15 साल हो गए। सुंदर पत्नी के सामने स्मार्ट दिखने के चक्कर में वह सात सालों से बाडी व मसल्स बनाने के लिए टेस्टोरोन इंजेक्शन व सप्लीमेंट पाउडर आदि का सेवन कर रहे थे। वह जब बच्चा नहीं हुआ तो जांच में पाया कि उनके शुक्राणु शून्य हो गए है। इसके बाद उन्हें डोनर उपलब्ध कराया गया।
केस:2
दूसरा बच्चा नहीं हुआ तो कराई जांच
34 वर्षीय युवक पेशे से पायलट हैं। इसका पहला बच्चा सामान्य हुआ लेकिन दूसरा बच्चा नहीं होने के पर कारण जानने के लिए जांच कराई तो सामने आया कि शुक्राणु शून्य है। इसका कारण वह पांच सालों से टेस्टोरोन इंजेक्शन का सेवन कर रहे थे। इस कारण उन्हें इस समस्या का सामना करना पड़ा।
– जिले में हैं 50 से ज्यादा फ्रीज बैंक
– 15 से 20 हजार रुपये में मिलता है डोनर
– 1.5 लाख रुपये आइवीएफ में आता है खर्च
– 1.6 लाख रुपये आइयूआइ कराने में होता है खर्च
– 10 दिन का लगता है आइयूआइ कराने में समय
– 1.5 महीने का समय आइवीएफ में लगता है
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