Kaithal News: धरना दे रहे अध्यापक नए साल से शुरू करेंगे भूख हड़ताल, उप विषयों को बंद करने का विरोध

नरेन्‍द्र सहारण, कैथल : Kaithal News: महर्षि वाल्मीकि संस्कृत विश्वविद्यालय, जो कि हरियाणा के मूंदड़ी गांव में स्थापित हो रहा है, इन दिनों अध्यापकों की एक महत्वपूर्ण समस्या के केंद्र में है। विश्वविद्यालय में उप विषयों के रूप में हिंदी, अंग्रेजी, और राजनीतिक विज्ञान को बंद करने के फैसले के खिलाफ दो महीनों से धरना दे रहे अध्यापकों ने अब नए साल से भूख हड़ताल शुरू करने का ऐलान किया है। ये अध्यापक विश्वविद्यालय प्रशासन के इस निर्णय से न केवल नाराज हैं, बल्कि इसके पीछे के कारणों पर भी प्रश्न उठा रहे हैं, जिसमें भ्रष्टाचार और नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति की अवहेलना शामिल है।

अध्यापकों की मांगें

धरना दे रहे अध्यापकों में डॉ. ओमपाल शामिल हैं, जिन्होंने बताया कि वह पिछले 70 दिनों से विवि के अस्थायी परिसर में उप विषयों के फिर से शुरू करने की मांग कर रहे हैं। उनका आरोप है कि विवि प्रशासन ने उनकी चिंताओं को अनदेखा किया और उनके वेतन को भी दो माह से रोक रखा है। उनका कहना है कि यह अवहेलना केवल इसलिए की जा रही है क्योंकि वे हरियाणा से संबंधित हैं और उप विषयों को फिर से शुरू करने की बात कर रहे हैं।

विवि की कर्मचारी स्थिति

डॉ. ओमपाल ने यह भी कहा कि विश्वविद्यालय का शैक्षणिक और प्रशासनिक स्टाफ बाहरी राज्यों से है, जबकि विश्वविद्यालय के पांच अध्यापक ही स्थानीय हैं। इसमें से अधिकांश ने नेट (नेट क्वालीफाइंग परीक्षा) पास की है, लेकिन जेआरएफ (जूनियर रिसर्च फेलोशिप) प्राप्त नहीं किया है, इसलिए उन्हें विवि से हटाने की कोशिश की जा रही है। इस स्थिति को सही ठहराने के लिए विश्वविद्यालय ने उप विषयों को बंद करने का निर्णय लिया है।

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का उल्लंघन

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में यह स्पष्ट किया गया है कि एक मुख्य विषय के साथ उप विषयों का अध्ययन करना आवश्यक है। लेकिन, महर्षि वाल्मीकि संस्कृत विश्वविद्यालय में इस नीति का पालन नहीं किया जा रहा है। उप विषयों को बंद करने के बाद विश्वविद्यालय में छात्रों की संख्या में कमी आ रही है, जिसने अध्यापकों की चिंताओं को और बढ़ा दिया है। उन्होंने यह भी बताया कि अन्य संस्कृत विद्यालय उप विषयों की पढ़ाई करते हैं, वहीं उनका विवि क्यों नहीं कर सकता?

धरने का राजनीतिक पहलू
अध्यापकों ने यह भी आरोप लगाया कि विश्वविद्यालय की ओर से उनकी समस्याओं को नजरअंदाज किया जा रहा है। इस मुद्दे पर एक तीन सदस्यीय समिति का गठन भी किया गया था, जिसने अपनी जांच की लेकिन इसके परिणामस्वरूप ही उप विषयों के बंद होने का निर्णय लिया गया। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या विश्वविद्यालय प्रशासक अपनी जिम्मेदारी निभा रहा है?

छात्रों की कठिनाईयां

शिक्षकों का कहना है कि उप विषयों को बंद करने से विद्यार्थियों को भी नुकसान पहुंच रहा है। जब दाखिले के समय विद्यार्थियों को उप विषयों के पढ़ाए जाने की बात बताई गई थी, लेकिन अब उन्हें केवल संस्कृत पढ़ाने का आदेश दिया जा रहा है। इससे न केवल छात्र संख्या में कमी आ रही है, बल्कि छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने में भी बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है।

भूख हड़ताल की घोषणा

अध्यापकों ने यह निर्णय लिया है कि वे एक जनवरी से भूख हड़ताल शुरू करेंगे। उनका मानना है कि यह कदम विश्वविद्यालय प्रशासन को उनकी मांगों की गंभीरता से विचार करने के लिए मजबूर करेगा। अध्यापकों का दृढ़ विश्वास है कि यदि उनकी समस्याओं का समाधान नहीं निकाला गया, तो स्थिति और भी गंभीर हो सकती है।

विश्वविद्यालय प्रशासन का पक्ष

महर्षि वाल्मीकि संस्कृत विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर, प्रो. रमेश चंद्र भारद्वाज ने भी इस मामले पर अपनी टिप्पणी दी है। उन्होंने बताया कि उप विषयों के बंद होने का निर्णय समिति की रिपोर्ट के आधार पर लिया गया था। उन्होंने कहा कि सेमेस्टर खत्म होने से पहले विद्यार्थियों की एसाइनमेंट भी जमा नहीं की गई, जिसके चलते अध्यापकों का वेतन रोका गया है।

विश्वविद्यालय के लिए समस्या

महर्षि वाल्मीकि संस्कृत विश्वविद्यालय में चल रहा यह विवाद न केवल अध्यापकों की समस्याओं का प्रतिनिधित्व करता है, बल्कि यह शिक्षा प्रणाली की कमियों और नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के लागू होने में चुनौतियों को भी दर्शाता है। यदि विश्वविद्यालय प्रशासन ने शीघ्र ही इस समस्या का समाधान नहीं किया, तो अध्यापकों का भूख हड़ताल का निर्णय न केवल उनकी स्थिति को और बिगाड़ सकता है, बल्कि यह पूरे विश्वविद्यालय के लिए समस्याएं पैदा कर सकता है। सभी की निगाहें आगामी घटनाक्रम पर हैं और देखना यह है कि प्रशासन इस गंभीर मुद्दे को कैसे संबोधित करता है।

 

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