Maidan Film Review: जोश-जज्बे और इमोशन्स से भरी है ‘मैदान’, बेमिसाल है अजय देवगन का अभिनय
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मुंबई, बीएनएम न्यूज। Maidan Film Review: जिंदगी की भागदौड़ में हम काल्पनिक कहानियों में इतना खो जाते हैं कि असल जिंदगी के ‘सुपरहीरोज’ पर हमारा ध्यान ही नहीं जाता। ऐसे ही एक अनजाने ‘सुपरहीरो’ की कहानी को फिल्म ‘मैदान’ के साथ लेकर अजय देवगन बड़े पर्दे पर आए हैं।
सैयद अब्दुल रहीम के जीवन पर बनी फिल्म
मैदान फिल्म में एक संवाद है कि फुटबाल पूरी दुनिया में ऐसा खेल है, जिसमें किस्मत हाथों से नहीं, पैरों से लिखी जाती है। वर्ष 1962 के एशियाई खेलों में भारतीय फुटबाल टीम ने फाइनल में दक्षिण कोरिया को हराकर इसे साबित किया था। 1950 से 1963 तक भारतीय फुटबाल टीम के कोच रहे सैयद अब्दुल रहीम के नेतृत्व में टीम को ब्राजील आफ एशिया का दर्जा मिला था। उन्हीं के जीवन पर यह फिल्म बनी है।
1952 में नंगे पैर खेल रही भारतीय टीम की हार से शुरुआत
कहानी की शुरुआत 1952 में नंगे पैर यूगोस्लाविया के साथ खेल रही भारतीय फुटबाल टीम की हार से होती है। इसका सारा ठीकरा कोच सैयद अब्दुल रहीम (अजय देवगन) पर फोड़ दिया जाता है। वह कहते हैं कि 1956 में मेलबोर्न में होने वाले ओलिंपिक के लिए टीम वह चुनेंगे। सिकंदराबाद से लेकर कोलकाता, मुंबई, पंजाब तक स्वयं जाकर वह खिलाड़ी चुनते हैं। ओलिंपिक में टीम चौथे स्थान तक पहुंचती है। 1960 के ओलिंपिक में हार के बाद फुटबाल फेडरेशन उन्हें कोच पद से हटा देता है। फेफड़ों के कैंसर से जूझ रहे सैयद अब्दुल करीम दोबारा 1962 के एशियन खेलों के लिए कोच पद पर लौटते हैं।
सिनेमाहाल को स्टेडियम बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी
खेल पर बनी चुनिंदा फिल्मों में शाह रुख खान अभिनीत चक दे! मैदान उसे टक्कर देती है। निर्देशक अमित रवींद्रनाथ शर्मा ने सिनेमाहाल को स्टेडियम बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। अतीत में हो चुके मैच का परिणाम पता होते हुए भी उन्हें देखने का रोमांच बना रहता है। इसका श्रेय सिनेमैटोग्राफर तुषार कांति राय, फ्योदोर ल्यास, तस्सदुक हुसैन व क्रिस्टोफर रीड को जाता है। मैदान के भीतर फुटबाल खेलते हुए वह ऐसा दृश्य ले आए हैं, जिससे लगता है कि आप खुद मैदान के भीतर हैं। मध्यांतर से पहले फिल्म धीमी है, खासकर खिलाड़ियों के चुनाव वाले दृश्यों को अमित कम समय में रोमांचक बना सकते थे। 1956 के ओलिंपिक में जाने से पहले कोच के साथ खिलाड़ियों की बातचीत या ट्रेनिंग वाला दृश्य ना होना खलता है। हालांकि ये सारी कमियां दूसरे हिस्से में दूर कर दी गई हैं।
फिल्म को लेकर शोध की गहराई दिखी
मध्यांतर के बाद कोच के साथ फुटबाल की ट्रेनिंग से लेकर अंत में ड्रेसिंग रूम के भीतर कोच का टीम को हौसला देने वाला संवाद भी है। फिल्म के लेखन में सैयद अब्दुल रहीम का भारतीय फुटबाल टीम को विश्वस्तरीय बनाने का सपना, उन दिनों की कमेंट्री और जकार्ता ओलिंपिक में फाइनल से पहले भारतीय टीम पर हमले आदि की बात बताना, उस दौर को लेकर किए गए शोध की गहराई दर्शाता है। कास्टिंग डायरेक्टर की सराहना करनी बनती है, जो पीके बनर्जी, चुन्नी गोस्वामी, तुलसीदास बलराम व जरनैल सिंह जैसे खिलाड़ियों की तरह दिखने वाले व कमाल का अभिनय करने वाले कलाकार ले आए।
अजय देवगन का शानदार अभिनय
सैयद अब्दुल रहीम के स्वभाव और फुटबाल के प्रति जुनून को अजय देवगन ने बखूबी निभाया है। घर में वह जितने शांत दिखते हैं, मैदान पर उतने ही तेज-तर्रार। फाइनल मैच से पहले ड्रेसिंग रूम में जीत के मायने बताते हुए उनका कहना कि मैदान में उतरना 11, लेकिन दिखना एक, दिल को छू लेता है। खेल पत्रकार राय चौधरी की निगेटिव भूमिका में गजराज राव प्रभावित करते हैं। सैयद अब्दुल रहीम की सहयोगी पत्नी सायरा की भूमिका में प्रियामणि का काम सराहनीय है। ए आर रहमान का बैकग्राउंड स्कोर और टीम इंडिया हैं हम… गाना जोशीला है। आप इस फिल्म को देख सकते हैं। यह आप पर अलग किस्म का छाप छोड़ेगी।
Tag- Maidan Film Review, Ajay Devgan, Bony Kapoor, AR Rahmen, Priyamani
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