MP Congress: मप्र कांग्रेस की राजनीति में थम नहीं रही गुटबाजी, अकेले पड़े कमल नाथ

भोपाल, BNM News: MP Congress: मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद से कांग्रेस में गुटबाजी थम नहीं रही है। प्रदेश में सबसे ताकतवर माने जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ पार्टी में अकेले पड़ गए हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने के बाद ग्वालियर-चंबल अंचल में पार्टी में आई रिक्तता को भरने के लिए चार बार लोकसभा चुनाव लड़ चुके अशोक सिंह को राज्यसभा का टिकट देकर कद बढ़ाया गया है, लेकिन प्रत्याशी चयन के मुद्दे पर मची खींचतान ने गुटबाजी को सार्वजनिक कर दिया है। राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी और कमल नाथ के बीच की खटास भी जगजाहिर हो गई। हालांकि, अशोक सिंह को राज्यसभा भेजने के पीछे भी कमल नाथ की रणनीति ही रही। कमल नाथ ओबीसी राजनीति के नाम पर राहुल गांधी की पसंदीदा प्रत्याशी और पूर्व सांसद मीनाक्षी नटराजन को रोकने में सफल रहे, वहीं इसी वर्ग के अशोक सिंह का नाम बढ़ाकर अन्य बड़े ओबीसी नेताओं अरुण यादव और जीतू पटवारी की उम्मीदवारी ही खत्म कर दी।

राहुल गांधी से बढ़ रही खटास

 

दरअसल, मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव हारने के बाद से कमल नाथ का मन मध्य प्रदेश में नहीं लग रहा है। इसकी शुरुआत तब हुई, जब राहुल गांधी की नाराजगी के कारण ही विधानसभा चुनाव के ठीक बाद कमल नाथ को हटाकर जीतू पटवारी को मध्य प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था। यही नहीं, कमल नाथ को नेता प्रतिपक्ष न बनाकर आदिवासी नेता उमंग सिंघार को यह पद सौंप दिया गया। इसी मनमुटाव की वजह से कमल नाथ मध्य प्रदेश की राजनीति में सक्रिय न रहकर खुद दिल्ली लौटना चाहते हैं। वह यह भी नहीं चाहते कि बेटे और छिंदवाड़ा सांसद नकुल नाथ को प्रभावित किया जाए इसलिए अन्य विकल्पों पर भी समानांतर रूप से प्रयास कर रहे हैं।

अलग-थलग पड़े कमल नाथ

 

कांग्रेस में भी कमल नाथ अलग-थलग पड़ गए हैं। जब कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव हो रहा था, तब कमल नाथ का नाम भी अध्यक्ष की दौड़ में आगे बढ़ाया गया था। तब कमल नाथ ने यह सोचकर अपने कदम पीछे खींच लिए थे कि वे मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सरकार बना लेंगे तो पार्टी में ज्यादा ताकतवर होकर उभरेंगे लेकिन परिणाम कुछ और हुआ, कांग्रेस हार गई। कमल नाथ का पार्टी में रुतबा घट गया। कांग्रेस के नजदीकी सूत्र तो यह भी कहते हैं कि प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी बनाए गए रणदीप सिंह सुरजेवाला जैसे नेता दिल्ली में उनके खिलाफ विष उगल रहे हैं। दरअसल, विधानसभा चुनाव के दौरान कई विषयों को लेकर सुरजेवाला और कमल नाथ के बीच असहमति रही। इसे लेकर केंद्रीय नेतृत्व से शिकायत भी हुई थी। कमल नाथ और दिग्विजय सिंह से दिल्ली बुलाकर बात की गई थी।

पुत्र प्रेम में बढ़ रही गुटबाजी

 

कांग्रेस को नजदीक से देखने वाले राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि चाहे कमल नाथ हों या दिग्विजय सिंह, दोनों के पुत्र प्रेम के कारण प्रदेश कांग्रेस में गुटबाजी बढ़ रही है। दोनों नहीं चाहते कि प्रदेश में जीतू पटवारी, उमंग सिंघार या अरुण यादव जैसे युवाओं के नेतृत्व में पार्टी मजबूत हो। यदि ऐसा हुआ तो नकुल नाथ और दिग्विजय सिंह के विधायक बेटे जयवर्धन सिंह का राजनीतिक भविष्य संकट में पड़ जाएगा। इसी कारण दोनों दिग्गज युवा नेताओं को रोकने के लिए एक हो जाते हैं। बताया जा रहा है कि मीनाक्षी नटराजन के नाम का विरोध होने पर पार्टी नेतृत्व अरुण यादव को राज्यसभा भेजना चाहता था लेकिन दोनों ने ऐसी चाल चली कि ज्योतिरादित्य सिंधिया का प्रभाव कम करने के लिए इसी वर्ग के अशोक सिंह के नाम पर सहमति बना ली गई।

 

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