Panipat News: वैज्ञानिकों ने सुधारी धान की सेहत, विदेश में रिजेक्ट नहीं होगा हमारा बासमती चावल

फार्मर प्रोड्यूसर आर्गेनाइजेशन के अध्यक्ष डॉ. एसपी तोमर धान की फसल का निरीक्षण करते हुए।

नरेन्द्र सहारण, पानीपत : Panipat News: अंतरराष्ट्रीय बाजार में हमारा बासमती चावल कीटनाशक रसायनों की अधिकता के कारण रिजेक्ट नहीं होगा। करनाल और पानीपत में करीब एक हजार एकड़ में पायलट प्रोजेक्ट पर काम हुआ। इसमें सफलता भी मिली है। बासमती एक्सपोर्ट डेवलपमेंट फाउंडेशन मेरठ, आइआरआइ दिल्ली, एपिडा व नाबार्ड ने किसानों के संगठन के साथ मिलकर काम किया।

वैज्ञानिकों  की मदद से हमने ऐसे उपाय ढूंढ़े हैं। जिससे कि हमारा बासमती चावल अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खरा उतरेगा। इस शोध के दौरान वैज्ञानिको ने पाया कि बासमती में हम पेस्टीसाइड का अंधाधुंध इस्तेमाल कर रहे हैं। यदि उसका प्रयोग ठीक समय और जरूरत के अनुरूप ही करें तो चावल में पेस्टीसाइड की मात्रा न के बराबर होगी। पायलट प्रोजेक्ट के दौरान जिस बासमती चावल को उगाया गया, उसको बीईडीएफ की लैब में टेस्ट किया गया। 95 प्रतिशत किसानों के बासमती चावल में एमआरएल की मात्रा 0.01 प्रतिशत आई है, जो निर्यात के लिहाज से बेहतर मानी जाती है।

वैज्ञानिकों के शोध का परिणाम

 

बासमती को निर्यात योग्य बनाने के लिए वैज्ञानिकों ने जो शोध किया। उसका पूरा निचोड़ निकालकर किसानों को एक पैकेज बनाकर दिया है। किसानों को इस पैकेज के अनुसार बासमती धान को उगाएंगे तो निश्चित तौर पर उसका चावल निर्यात के योग्य होगा। पैकेज में विशेष किसानों को बताया गया है कि किस-समय किस रसायन का किस समय इस्तेमाल किया जाए, किस मात्रा में किया जाए। बासमती में आने वाली कुछ ऐसी बीमारियां हैं, जिनको एहतियात बरतें तो रसायन के छिड़काव से बचा जा सकता है।

यह है मेक्सिमम रेज्ड्यू लिमिट (एमआरएल)

 

यह पेस्टीसाइड की मापने की इकाई होती है। लैब में जब चावल की गुणवत्ता की जांची जाती है तो एमआरएल से हमें जानकारी मिलती है कि हमारे चावल में पेस्टीसाइड की मात्रा कितनी है। चावल में एमआरएल 0.01 पीपीएम। यानी 100 टन चावल में एक ग्राम एमआएल। इससे अधिक मात्रा होने पर चावल निर्यात के योग्य नहीं रहता।

सात राज्यों के 95 जिलों में बासमती उत्पादन

 

देशभर में बासमती उत्पादन करने वाले सात राज्य के 95 जिले हैं। हरियाणा, पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल व जम्मू-कश्मीर में बासमती धान के अनुकूल वातावरण है। हरियाणा की बात की जाए तो यहां पर करीब 7.8 लाख हेक्टेयर में बासमती की खेती होती है। जबकि 30 लाख टन बासमती का निर्यात यहां से होता है।

जहर मुक्त खेती की तरफ बढ़ता कदम

 

वैज्ञानिकों द्वारा शोध कर बासमती धान तैयार करने के लिए बनाए गए पैरामीटर जहर मुक्त खेती की तरफ भी एक कदम माना जा सकता है, क्योंकि धान में जिन रसायनों का प्रयोग होगा वह बिल्कुल संतुलित मात्रा में होंगे और फसल पकने तक उनका असर भी खत्म हो जाएगा।

अंधाधुंध रसायनों के प्रयोग से बिखड़ी छवि

फार्मर प्रोड्यूसर आर्गेनाइजेशन के अध्यक्ष डा. एसपी तोमर ने कहा कि बासमती में भी अंधाधुंध से हो रहे रसायनों के प्रयोग से हमारे चावल की गुणवत्ता पर सवाल उठने शुरू हुए। वैज्ञानिकों के साथ बासमती पर हुए बारीकी से काम में किसानों को यह जानकारी दी गई कि वह कम रसायनों का सही समय पर प्रयोग से अधिक पैदावार के साथ अच्छी गुणवत्ता भी ले सकते हैं।

किसान दृष्टिकोण बदलें, लाभ होगा

मेरठ के बीईडीएफ के प्रधान वैज्ञानिक डा. रीतेश शर्मा ने कहा कि किसान बासमती धान पैदा करते समय विशेष बातों का ध्यान रखें। शोध के बाद जो पैकेज दिया है, उस पर काम करने की जरूरत है। रसायनों के प्रयोग के प्रति अपनी धारणा बदलें। हमने किसानों से जब बात की तो यह बात निकलकर सामने आई कि बीमारी आने से पहले ही दवा का छिड़काव कर दिया। यह गंभीर बात थी। हमने धरातल पर काम किया। किसानों की सोच बदलने का प्रयास कर रहे हैं। इसमें सफलता भी मिल रही है। अच्छी गुणवत्ता का चावल पैदा करेंगे तो मार्केट आपका इंतजार कर रही है न कि आप मार्केट में भाव को लेकर चिंतित रहेंगे।

 

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